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बुधवार, 9 अगस्त 2023

वशुदेव श्री कृष्ण

हे मेरे हृदय के प्यारे वासुदेव कृष्ण तू सब पे मेहर करने वाला तू सम्पूर्ण लोको का भरण पोषण करने वाला दाता दीनानाथ है । तू द्रोपदी माता की लाज बचाने वाला है तू कलियां पूतना कंश का साक्षात् काल है तू कौरवों का नाश है तू सम्पूर्ण लोको के दुष्टों का नाश करने वाला और अपने भक्तो की रक्षा करने वाला है तू आदि मध्य अंत से रहित है तू ही आदि मध्य अंत भी है तू सनातन धर्म की रक्षा करने वाला है तू साधु संतो की रक्षा करने वाला है तू वेद पुराण गुरुवाणी तथा संत वाणी की रक्षा करने वाला है तू शास्त्रों का जनक है स्वयं में लीन करने वाला है । हे मधुसूदन दामोदर मेरा मेरे पितामह माता पिता भाई बहन गुरु और भगवान मेरे प्यारे स्वामी तू मेरा और मेरे मन बुध्दि अहंकार आत्मा और इन्द्रियों का स्वामी है । तू गोपी मैया यशोदा मैया तथा इस अर्जुन प्यारा है । तू ब्रह्मण सुदामा के हृदय का टुकड़ा है। तू राधा माता की आत्मा है तू सम्पूर्ण लोको स्वामी है तू अन्नत स्वरूप वाला है तेरे उदर में अरबों लोक व्याप्त है तेरे मुख में अन्नत लोक व्याप्त है तू ब्रह्मानो का मुख क्षत्रिय का एस्वरिये है । तू ही वैश्य का व्यापार और शुद्रो की सेवा है । तू सभी कर्मो से निर्लिप्त है तू सूत्रात्मा है सर्वात्मा है तू संतो का हृदय है तू श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीमद्भगवतम मानस पुराण और वेद हैं। तू बुद्धिमानो की बुध्दि और बलवानो का बल है तू शक्तिशालियो की शक्ति और युद्ध में विजय है तू ब्रहाम्नो का तेज और उसके हाथ में परशु है । हे वासुदेव श्री कृष्ण तेरे सिवाय कुछ नही है । कुछ नही है कुछ नही है सब तू वासुदेव ही है । मैं तेरे शरण में आकर अन्नत जन्मों के लिए तेरी सेवा में अपने अर्पण कर दिया है तू जैसा चाहता है वैसा कर ...

रामपाल का पर्दाफाश।

*श्रीमद्भगवद्गीता के कुछ ऐसे श्लोक जिसका उपयोग उम्र कैद की सजा काट रहे हठी मुर्खो के जगत गुरु नकली कबीर पंथी रामपाल जी महराज स्वयं को भगवान और श्री कृष्ण को आम मनुष्य घोषित करने में लगे है। तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत । तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ।। *हे भारत[१] ! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शान्ति को तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा । – B.G 18.62* *कौन से परमात्मा की शरण में जाना है ?* *श्रीभगवानुवाच* अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थित: । अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ।। *हे अर्जुन[१] ! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अन्त भी मैं ही हूँ ।।– BG 10.20* सर्वस्य चाहं हृदि संनिविष्टो मत्त: स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च । वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ।। *मैं ही सब प्राणियों के हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित हूँ तथा मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन होता है और सब वेदों[१] द्वारा मैं ही जानने के योग्य हूँ तथा वेदान्त का कर्ता और वेदों को जानने वाला भी मैं ही हूँ । – BG.15.15* मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा । निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वर: ।। *मुझ अन्तर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मुझ में अर्पण करके आशा रहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर युद्ध कर।* ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देश्ऽर्जुन तिष्ठति । भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ।। *हे अर्जुन[१] ! शरीर- रूप यन्त्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है । – B.G 18.61* *जैसे इंजिनियर प्रत्येक मसीनो को घुमाता है , भगवानरूपी इंजीनियर इंजन (माया) के द्वारा सारे जीवो के गले में पट्टा डालकर घुमा रहा है । इंजीनियर जिस का पट्टा निकाल देता है वह नहीं घूमता उसकी शरण में जाओ तो वह पट्टा निकाल देता है पट्टा निकाल देने पर शांत हो जाता यही शांति प्राप्ति होती है।* इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्राद्गुह्रातरं मया । विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु ।। *इस प्रकार यह गोपनीय से भी अति गोपनीय ज्ञान मैंने तुझसे कह दिया। अब तू इस रहस्य युक्त ज्ञान को पूर्णतया भलीभाँति विचार कर, जैसे चाहता है वैसे ही कर । –B.G18.63* सर्वगुह्रातमं भूय: श्रृणु मे परमं वच: । इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ।। *सम्पूर्ण गोपनीयों से अति गोपनीय मेरे परम रहस्य युक्त वचन को तू फिर भी सुन तू मेरा अतिशय प्रिय है, इससे यह परम हितकारक वचन मैं तुझसे कहूँगा ।। –BG.18.64* सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ।। *सम्पूर्ण धर्मों को अर्थात् सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर ।। –B.G – 18.66* *संस्कृत व्याकरण के अनुसार "वज्र" का अर्थ "आ" और "जा" दोनो होता है इसलिए इस श्लोक के अनुवाद में "आ"और "जा" दोनो बताए गए हैं। इसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को स्वयं की शरण में आने को कह रहे हैं न की किसी अन्य अजर अमर से रहित नशवान शरीरधारी मनुष्य की शरण में जाने को कह रहे हैं । श्री हरि विष्णु अवतार भगवान कृष्ण और भगवान श्री राम मनुष्य शरीर रूप आजीवन युवा रहे हैं अर्थात वो अजर है वही श्री हरि विष्णु के मनुष्य रूप में अवतार भगवान परशुराम और महर्षी वेदव्यास चिरंजीवी है अर्थात अमर हैं। उसी प्रकार पर ब्रह्म शिव जी भी हनुमान जी अवतार में अजर और अमर हैं।* यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तम: । अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथित: पुरुषोत्तम: ।। *क्योंकि मैं नाशवान् जडवर्ग क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूँ, इसलिये लोक में और वेद[१] में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ ।। – B.G – 15.18* ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन: । मन:षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ।। *इस देह में यह सनातन जीवात्मा मेरा ही अंश है और वही इन प्रकृति में स्थित मन और पाँचों इन्द्रियों को आकर्षण करता है ।।B.G 15.7* मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु । मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ।। *मुझमें मनवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर। इस प्रकार आत्मा को मुझ में नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा ।। – BG 9.34* अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।। *जो अनन्य प्रेमी भक्त जन मुझ परमेश्वर को निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से भजते हैं, उन नित्य-निरन्तर मेरा चिन्तन करने वाले पुरुषों का योग क्षेम में स्वयं प्राप्त कर देता हूँ ।। – BG.9.22* येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता: । तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्।। *हे अर्जुन[१] ! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैं, वे भी मुझको ही पूजते हैं, किंतु उनका वह पूजन अविधिपूर्वक अर्थात् अज्ञानपूर्वक है ।। – BG 9.23* अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च । न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्यवन्ति ते ।। *क्योंकि सम्पूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूँ; परंतु वे मुझ परमेश्वर को तत्त्व से नहीं जानते, इसी से गिरते हैं अर्थात् पुनर्जन्म को प्राप्त करते हैं ।। – BG 9.24* *आदि नारायण भगवान श्री कृष्ण स्वयं अपने मुख से भगवदगीता अध्याय 7 और अध्याय 10 में अर्जुन को तत्वज्ञान प्रदान कर रहे हैं जिसको जान कर कोई भी जीव उस तत्त्वज्ञान के अनुशार प्रेम भक्ति करते हुए परमात्मा को प्राप्त हों सकता है जिसके बाद वो पुनर्जन्म से मुक्त हो जाएगा।* यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रता: । भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् *देवताओं को पूजने वाले देवताओ को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं, और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसीलिये मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता । – BG 9.25* न रूपमस्येह तथोपलभ्यते नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा । अश्वत्थमेनं सुविरूढमूलमसग्ङशस्त्रेण दृढेन छित्वा ।। तत: पदं तत्परिमार्गितव्यं यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूय: । तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यत: प्रवृत्ति: प्रसृता पुराणी ।। *इस संसार वृक्ष का स्वरूप जैसा कहा है वैसा यहाँ विचार काल में नहीं पाया जाता। क्योंकि न तो इसका आदि है, न अन्त है तथा न इसकी अच्छी प्रकार से स्थिति ही है। इसलिये इस अहंता, ममता और वासना रूप अति दृढ मूलों वाले संसार रूप पीपल के वृक्ष को दृढ वैराग्य रूप शस्त्र द्वारा काटकर उसके प्रश्चात् उस परम पद रूप परमेश्वर को भली-भाँति खोजना चाहिये, जिसमें गये हुए पुरुष फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परमेश्वर से इस पुरातन संसार-वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है, उसी आदि पुरुष नारायण के मैं शरण हूँ- इस प्रकार दृढ निश्चय करके उस परमेश्वर का मनन और निदिध्यासन करना चाहिये ।। – BG.15.3,4* न मां दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा: । माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता: ।। *माया के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किये हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते हैं ।।– BG 7.15* *पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामह: ।* *वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक्साम यजुरेव च ।। *इस सम्पूर्ण जगत् का धाता अर्थात् धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, पवित्र ओंकार तथा ॠग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ ।।17।।* – BG 9.17 अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धय: । परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ।। *बुद्धिहीन पुरुष मेरे अनुत्तम अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मन-इन्द्रियों से परे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा को मनुष्य की भाँति जन्म कर व्यक्ति भाव को प्राप्त हुआ मानते हैं ।–BG.7.24* ❤️🙏 👉रामभक्त (राहुल झा)

मानस पूजा

*मानसिक पूजा* मन के मंदिर में बसाना हर किसी के वश की नही है खेलना पड़ता है जीवन के केरियर से जिंदगी और मौत से ... भक्ति इतनी भी सस्ती नही है न हम तुम्हें कभी देखे न हम दोनो कभी मिले फिर कौन सा अटूट सम्बन्ध है पीड़ा कैसी भी हो एकमात्र माता आदिशक्ति तुम्हारी याद आती है और तुझे अपने साथ छाया की भांति महसूस करता हूं। जिस प्रकार बिना रस के जल का कोई महत्व नहीं ,बीना तेज के अग्नि का कोई महत्व नहीं ,बिना वेग के वायु का कोई अस्तित्व नही , उसी प्रकार देख माता तेरी चरण भक्ति के बीना मेरा कोई अस्तित्व नही और यही सत्य प्रेम है । माता मुझ अज्ञानी को सब कुछ देना किंतु दिखावे करने की कला से वंचित रखना क्योंकि तू मेरे भीतर बाहर से ओत प्रोत है तू मेरे भीतर और बाहर दोनों स्थिती में है तुम से कुछ भी नही छुपा है । मेरे भीतर दुर्गुणों का नाश कर अपने सद्गुणों की सागर लहरा दो । क्योंकि तुच्छ सा दिखावे करने की राह में कही स्वयं वास्तविकता को न खो बैठू । तेरे अनेकों पुत्र हैं उन सबों में मै ही सबसे बड़ा महापापी और महाअज्ञानी हूं। किंतु तेरी दया से पतित पुत्र भी पवित्र हो जाते हैं । इसलिए संसार में कुपुत्र पैदा हो सकता है किंतु कही भी कु माता नही होती। माता तू अनादि है तू जन्म रहित है तू परब्रह्म है तू सूत्रात्मा है सम्पूर्ण जगत की शक्ति समुदाय को तू अपने एक अंश मात्र में धारण कर स्थित है । तेरी शक्ति के बीना प्रत्येक जीवआत्मा और परमात्मा भी शक्तिहीन हैं, बीना शक्ति के ब्रह्मा, विष्णु,महेश का भी कोई स्तित्व नही। कोई ब्रह्माहीन विष्णुहीन या शिवहीन हो तो चल सकता है किंतु शक्तिहीन हो कर कोई स्तित्व में नही आ सकता। तू ब्रम्हा विष्णु महेश के अभिमान का नाश करने वाली है मेरे अहंकार का भी भक्षण करो। मैं तेरा पुत्र हूं। तेरे बनाए पुतले रूपी शरीर को तुझे ही तेरी सेवा के लिए समर्पित करता हूं। मुझ में तेरी आत्मा तुझे समर्पित करता हूं। अब मुझ में जो कुछ बचा वो सब भी तेरे ही सेवा के लिए समर्पित करता हूं क्योंकि मै तेरा ही बनाया पुतला हूं। तेरा तुझे समर्पित करता हूं। तू देवताओं के भय का नाश करने वाली माता दुर्गा है। तू मुझे जैसे रखेगी वैसे रहूंगा। तू मुझे 84 लाख योनि में जहां रखना है रख दे । तू चाहे मुझे दंडित कर नर्क कुंड में ही डाल दे दरिद्र ही बना दे । किंतु जहां भी रखना तेरा ही नाम और तेरा ही चरण कमल मेरे हृदय में स्थित रहे। जहां भी रहु तेरी सेवा करता रहूं। जहां भी जाऊ तेरे नाम की स्मृति बनी रहे । तू मेरी स्वामिनी मै तेरा सेवक , तू मेरी माता मै तेरा पुत्तर, तू ही मेरा गुरु मैं तेरा शिष्या हूं। तुझ में मै और मुझ में तू, तेरी कृपा का कोई अंत नही । तूही सदा शिव और महाविष्णु है तू राधे का श्याम और सीता का राम है तू जगत की माता पिता है तू विश्वरूप है । हे माता जो दीन दुखीया साधु सन्त कष्ट में तुम्हे याद करते हैं मुझ से पहले उनके उपर दया कर दे। उन्हे आत्म स्वरुप का ज्ञान दो मोह पर विजय पाने की शक्ती दो उन्हे ज्ञान प्राप्ति का यश प्रदान करो और उनके काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो । हे माता जो असहाय भूख से पीड़ित बालक भक्ति पूर्वक तुम्हे कष्ट में याद करे तुम उन्हे मुझ से पहले भोजन प्रदान करों। हे माता जो असहाय वृद्धा पवित्र मन से तेरे चरणो मे मस्तक झुकाते हैं मुझ से पहले उन्हें आरोग्य और शक्ति प्रदान करो। हे माता जो घोर अत्याचार से पीड़ित स्त्री तेरे चरण में मस्तक झुकाती है मुझ से पहले उसे घोर रूपिणी दुष्टों और अत्याचारियों का नाश करने की शक्ति प्रदान कर अत्याचार से मुक्त कराओ। तू परमेश्वर और परमेश्वरी है तुम ही जगत में पुरुष और प्राकृतिक हो। तू ही अदृश्य और दृश्य हो। तेरी चरणो में अपना मस्तक झुका स्वयं को समर्पण करता हूं। मैं दोषी पुत्र हूं मुझे दंडित कर तू अपनी सेवा के लिए मुझे स्वीकार करो। 🙏❤️🌷🌺🌙

भागवत प्राप्ति की पहली सीढ़ी

आपकी दृष्टि जहाँ तक जा रही है या जहाँ तक नहीं भी जा रही है वहाँ तक परमत्मा ही परमत्मा है उसके शिवाय यहाँ कुछ नहीं है जिस प्रकार एक सूर्य की प्रकाश से अनेको रंग दीखते है उसी प्रकार से यहाँ परमत्मा भिन्न भिन्न रूपों में विराजमान है जिस प्रकार दूध से घी दही मिठाई छाछ लस्सी बनते है इन सभी में दूध का ही अंश होता है उसी प्रकार से परमत्मा से ही ये समस्त जगत बना है अर्थात परमत्मा अपने एक अंश मात्र में धारण किए हुए है जिस प्रकार मकड़ी से उसके जाल निकलते है फिर वही जाल को मकड़ी अपने भीतर समा लेती है उसी प्रकार भगवती मूल प्राकर्तिक अर्थात परमत्मा से ये समस्त जगत प्रकट होते है और फिर उसी में विलीन हो जाते हैं *हम यहाँ क्यों आते है* हम जीव शरीर धारण क्यों करते हैं जिस प्रकार बच्चे अपने उम्र के अनुसार विद्यालय शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं उसी प्रकार हम अज्ञानी जीव यहाँ स्वयं और परमात्मा के विषय में अध्यात्म ज्ञान प्राप्ति के लिए आते हैं अगर इस जन्म में ज्ञान की प्राप्ति या परमत्मा की भक्ति नहीं हुई तों ये जीवन व्यर्थ हैं अनुभव के आधार पर और कुछ नहीं कहूंगा आप सिर्फ इतना विश्वास रखो यहाँ वहाँ दाया बाया ऊपर निचे जहाँ देखो वहाँ परमत्मा ही परमत्मा हैं उसके शिवाय कुछ नहीं हैं यहाँ हमें अज्ञानता की माया ने हमें अंधा बना दिया हैं जिसके कारण परमत्मा को नहीं देख पाते हैं जिस प्रकार एक वृक्ष का अस्तित्व जड़ से पत्ती तक होता हैं उसी प्रकार परमत्मा का अस्तित्व अनंत ब्रह्माण्ड में हैं उसके शिवाय और कुछ नहीं हैं। जिस प्रकार एक गुलाब के पौधे से कांटे और फूल उतपन्न होते हैं उसी प्रकार एक परमत्मा से देव- असुर, अच्छे -बुरे लोग उतपन्न होते हैं उसी प्रकार एक माँ से असुर और देव प्रकृति के संतान उतपन्न होते हैं। इन दोनों में परमत्मा का ही अंश हैं माया के द्वारा जिसका ज्ञान नेत्र अंधा हो गया वो स्वयं को या परमत्मा को नहीं जानता हैं इसलिए वो अच्छे बुरे कर्मो में भेद नहीं कर पाते हैं इन्द्रियों के विषय में आप कितना ही विषयी हो आप उस पर ध्यान मत दो आप सिर्फ अपने आस पास परमत्मा के अनंत रूपों पर ध्यान दो आप अपने हृदय सिर्फ इतना ही धारण कर लो " मैं परम् ब्रम्ह परमत्मा माँ काली -दुर्गे, माँ राधेकृष्ण माँ गौरीशंकर माँ सीताराम, माँ सरस्वती - ब्रम्हा जी का प्रिय संतान हूँ और ये सब मुझ पवित्र आत्मा के माता पिता जी हैं आप कितना ही इन्द्रियों के विषयी हो आपका नाश नहीं हो सकता हैं। हम करोड़ो जन्मों से भटक रहे हैं अज्ञानता के कारण.... हमारी इन्द्रियों ने यहाँ फसा रखा हैं हमारी व्यर्थ इक्षाओं ने यहाँ फसा रखा हैं जबकि आप स्वयं सब कुछ से परिपूर्ण आत्मा हो आप सब कुछ पा सकते हो बस आवश्यकता हैं तों सिर्फ इतना की आप दुःख सुख नाकारत्मक ऊंच नीच गरीब अमीर को समान समझने की... समझने की आवशयकता इतनी हैं की आपके किसी विषय पर केंद्रित ध्यान से प्रवाह होने वाली ऊर्जा का सही उपयोग करने की... अगर आप दुःख पर ध्यान देते हैं तों वो और बढ़ेगा जिससे आप स्वयं परेशान होकर सुखी होने के लिए वहाँ से ध्यान हटा कर मन बहलाने की कोसिस करते हो, अगर आप सुख पर सिर्फ ध्यान देते हो तों वो और बढ़ता जाता हैं उसमे आपके केंद्रित ध्यान से प्रवाहित होने वाली ऊर्जा ही हैं ज़ो सुख दुःख वाली घटना को निर्माण करता हैं अब आप सुख दुख धन दौलत शांति अशांति पर ध्यान देते कैसे हो अगला व्यख्यान इस पर कल दूंगा तब तक के लिए आज आपको अपने ऊर्जा का सही उपयोग करने का मार्ग बताने का प्रयास करूंगा। जैसा की आप जानते हैं परमत्मा सर्व व्याप्त हैं और आपके भीतर आत्मा उन्ही का अंश है आँख बंद करें हाथ पाव मोड़ कर बैठ जाए पीठ सीधी या ढीली कर ले हाथ पाँव भी ढीली कर ले घरी का समय देख ले ५ -१० मिनट सिर्फ अपने साँसो पर ध्यान, सांस को अपने अनुसार चलने दीजिये आप सिर्फ अपने सांस पर ध्यान केंद्रित कीजिए और उस प्राण वायु को परमत्मा का स्वरुप समझ कर ग्रहण करें। किसी विचारो पर ध्यान मत दीजिए आपनी ऊर्जा व्यर्थ के विचारो पर बर्बाद न करें आप सिर्फ चल रहे शांसे पर ध्यान दे शांति महसूस कीजिए १० मिनट के बाद आप कहने के साथ दिमाग़ में तस्वीर देखिए " मैं परमत्मा का प्रिय पुत्र हूँ मुझ में परमत्मा का प्रेम भक्ति और प्रेम शक्ति समा रही हैं मैं आत्म शांति को इसी समय प्राप्त कर रहा हूँ मैं परमत्मा के चरणों में मस्तक झुक कर प्रणाम और धन्यवाद करता हूँ अपनी प्रेम भावनाओ को बढ़ने दे। मेरे और भगवत भक्तो के सभी विघ्न को भगवान गणेश नाश कर रहे हैं मैं उनके चरणों में हृदय से प्रणाम और धन्यवाद अर्पण करता हूँ मेरे और भगवत भक्त के भीतर माँ दुर्गा और माँ काली सभी दुर्गनो का नाश कर धर्म की स्थापना कर रही हैं मेरे और भगवत भक्तो के दुष्ट शत्रु को नाश कर रही हैं मैं माता दुर्गा और माता काली के चरणों में हृदय से प्रणाम और धन्यवाद कर रहा हूँ। मुझे और सृस्टि के सभी ज्ञानियों को माता सरस्वती के कृपा से ज्ञान प्राप्त हो रहा हैं मैं माता सरस्वती और ब्रम्हा जी के चरणों में हृदय से प्रणाम और धन्यवाद अर्पण करता हूँ मुझे और भगवत भक्तो को माता लक्ष्मी धन सम्पदा सुख समृद्धि शांति इसी समय प्रदान कर रही हैं मैं माता लक्ष्मी और श्री हरि के चरणों में हृदय से प्रणाम और धन्यवाद अर्पण करता हूँ। मुझे और भगवत भक्तो को माता पार्वती इसी समय जन्म मृत्यु से मुक्त कर रही हैं मैं माता पार्वती और महादेव के चरणों में हृदय से प्रणाम और धन्यवाद करता हूँ। इस व्यख्यान को ध्यान में 9 बार दोहराए। रात्रि को शीघ्र सोए ब्रम्ह मुहूर्त तीन बजे जागकर शौच आदि होकर मुँह पर पानी मारे हो सके तों स्नान कर ले फिर ध्यान में बैठे। आप ध्यान कभी भी कर सकते हैं कही भी कर सकते हैं किसी समय में कर सकते हैं किन्तु अपने शरीर और मन को किसी मंदिर की भांति पवित्रता बनाए रखे। ध्यान करने से पहले मुँह हाथ पाँव अवश्य धोए । 🚩जय श्री राम 🚩 :–शक्तिपुत्र राहुल झा

माता दुर्गे

हे माता दुर्गे हे माता अंबिके हे माता परम् ईश्वरी हे माता सृष्टि स्वरूपिणी हे माता तुलसी हम आपके सन्तान आपके चरणो में हृदय से प्रेम पूर्वक दंडवत प्रणाम और नमस्कार करते हैं । 1 हे माता ज्ञान स्वरूपिणी विद्या स्वरूपिणी प्राण स्वरूपिणी आदिशक्ति हम आपके चरणों में बार बार प्रणाम करते हैं । 2 हे माता मृदुल भाषिणी संकट मोचिनी विघ्न विनाशिनी हम आपके सन्तान आपके चरणों में शरण लेकर आपको मस्तक झुका बार बार प्रणाम करते हैं । 3 हे माता राधिके हे माता दुर्गे हे माता सरस्वती आप मुझे अपने चरणों में आश्रय और अपनी भक्ति प्रदान करो । 4 हे माता विंधेस्वरी हे माता विश्वंभरी हे ब्रजेश्वरी आप कृपा हमारे हृदय में अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर भक्ति ज्ञान करूणा पराक्रम तथा आप अपने चरणों में समर्पण प्रेम रूपी दीपक प्रज्वलित करो। 5 हे माता जगदीश्वरी हे माता माहेश्वरी हे माता परमेश्वरी आप मेरे अंतः कारण में धारण /स्थित होकर हमे आत्म स्वरूप वृति प्रदान करो । 6 हे माता लक्ष्मी हे माता उमा हे हे माता सरस्वती आप मेरे हृदय के अंतःकरण में धारण होकर सभी दोष दुर्गुण को मिटा कर हृदय को सद्गुणों से प्रकाशित कर मुझे मेरे योग्य पति प्रदान करो । 7 हे माता नारायणी हे कालीके हे माता भैरवी आप मेरी सब प्रकार से रक्षा करें तथा सभी दोष दुर्गुणों पाप से रक्षा करो। 8 हे माता पार्वती हे माता जगदम्बा स्वरूपिणी हे माता सृष्टि स्वरूपिणी आप मुझे उत्तम पति प्रदान करो । 9 हे माता त्रिपुर सुंदरी हे माता लक्ष्मी हे माता सरस्वती आप मुझे पूर्ण सम्मान और समर्पण प्रेम देने वाला पत्निव्रता पति प्रदान करों। 10 हे माता आदिशक्ति हे माता राधिका महारानी हे माता दुर्गे महारानी आप मुझ में और मेरे होने वाले पति स्वामी में दुर्गुण दोष दूर कर हृदय में सद्गुण प्रकट करो । 11 हे माता विश्वंभरी हे माता जगत स्वरूपिणी हे माता भवानी आप मुझे मन के अनुकूल चलने वाला उत्तम स्वामी पति प्रदान करों। 12 हे माता भैरवी हे महालक्ष्मी हे माता श्याम सुंदरी आप मुझे ऐसे मनमोहक पति प्रदान करे जो मेरे मन के अनुकूल हो । 13 हे माता लक्ष्मी हे माता सीता हे माता गौरी मुझे ऐसे पति प्रदान करो जो नारायण की भांति अपनी पत्नी के प्रति समर्पित हो माता पिता का आज्ञाकारी हो सभी दुर्गुणों से रहित हो जो भाई बंधुओ का प्रेमी हो जो सब का हित चाहने वाला हो । जो मंगल करने वाला हो जो इस भाव सागर से पार उतारने वाला हो। 14 हे माता इंद्राणी हे माता वैष्णवी हे माता तुलसी महारानी आप मुझे मेरे योग्य उत्तम पति प्रदान करो जिसे पा कर मेरे माता पिता दादा दादी मेरे हित चाहने वाले और मुझको अपार प्रसन्नता और संतुष्टि हो। 15 – श्रीरामभक्त (राहुल.झा वत्स) रचित स्त्रोत

संत स्तुति

।। संत स्तुति ।। सबसे पहले हम माता सरस्वती और भगवान गणेश जी के चरणो मे प्रेम पूर्वक सिर स्पर्श कर स्वयं को समर्पित करते हुए उन्हें बार बार प्रणाम करते हैं जिनकी कृपा हृदय से मान कर संत स्तुति लिखने की कोशिश कर रहे हैं । हम अपने हृदय के भाव को सनातनी हिन्दू संतों के बीच रखना चाहते हैं वो जहां कही भी किसी भी लोक में होंगे। जहां जिस रूप में होंगे। जहां कही भी वो ज्ञान रूप में विचरण कर रहे हैं। जिन सज्जनों के बीच श्रीरामभक्त साधु, संतो, योगियों और महत्माओं की नित्य सत्य वाणियां का रसपान हो रहा है वहां से हम दीन मलिन बुद्धि , अल्पज्ञाणी अपने हृदय के भाव को आपके प्रति जो आस्था थी वो आपके चरणों में समर्पित कर रहे हैं । आप हमारे स्तुति को प्रेम पूर्वक स्वीकार करें। उसमे जो त्रुटि दिखे तो हम इस के लिए आप क्षमा कर हमारे दोषों को दूर करेंगे। हम साधु संतो के रक्षक प्रभु श्री राम और हम दीनो की माता जानकी के चरणों में प्रणाम करते हैं। हे विवेक धारण करने वाले रामदूत महावीर हनुमान , हे समाज को सुधारने वाले संत समाज हम आपके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम करते हैं । हे करुणा निधान संत महराज हम आपके चरणों में सिर रख कर हृदय से प्रणाम करते हैं। हे दुखियों का दुःख हरने वाले संत महराज हम आपके चरणों की धूल मागंते हैं । हे राम के चरणो से जोड़ने वाले रामभक्त संत आपके दया का अंत किसी कीमत पर मुझ कपटी, अल्पज्ञानी, अल्प बुद्धि से नही लिखे जा सकते। आप ही आपने ज्ञान और बुद्धि से भक्तों में संतुष्टि और परम आनन्द प्रदान कराते हैं । हे भारत के संत समाज आप ही महात्मा बुद्ध रूप नस्तिको पर भी दया करके उसे "अपना दीपक स्वयं बणों" का उपदेश देते हैं आप रैदास ,नानक और कबीर रूप में अपने ज्ञान और प्रभाव से कलयुग के घोर अन्धकार में दया, क्षमा, करुणा, ज्ञान, भक्ति और प्रेम रूपी प्रकाश जलाते है । हे भारत के संत गुरु महराज आप ही गुरु तेग बहादुर , गुरु गोबिंद सिंह और बंदा सिंह वैरागी के रुप में सनातन धर्म और भारतीय समाज के लिए परिवार सहित अपना बलीदान देकर अपने मृतभूमि और यहां की सनातन संस्कृति की रक्षा करते हैं । हे संत समाज गोबिंद में आप और आपमें गोबिंद निवास करता है ऐसा जानकर और मानकर कर हम आपके चरणों की धूल की अपने सिर पर लगाना चाहते हैं । हे हठी दुष्टों का दमन करने वाले धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने वाले अवध, वीर साधु महराज हम आपके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम करते हैं। आप ही दया दृष्टि से पीढ़ी दर पीढ़ी सत्य सनातन ज्ञान का आदान प्रदान होता है। हे साधु महराज मैं छोटी बुध्दि से आपके वैराग ,विवेक और सैयम का गुणगान करने में असमर्थ हूं। समाज को अपनी आत्मा मान कर उन्हे अपने विचारो से पवित्र करने वाले हे साधु महराज आपके ही तपो बल से पृथ्वी मैया गंगा मैया को पाकर पवित्र हुई । हे साधु महराज आपके ही तप से प्रसन्न होकर स्वयं आदि नारायण पृथ्वि पर आकर हम पापियों का पाप धोते हैं। हे साधु महराज आपके ही दया के पात्र श्री हरि जी को जान पाते हैं । हे साधु महराज आपके मुख से निकला एक अक्षर यदि चंडाल के कान में पड़ जाए तो वो भी मधुर वाणी का उत्तम वक्ता बन जाता है। हे साधु महराज आप स्वयं भूखे रहकर इस घोर कलियुग में अल्पज्ञानियो द्वारा तिरस्कृत होकर भी हमेशा हरि के जनो का कल्याण ही करते हैं । हे साधु महराज आपके ही तपो बल से आपके चिन्मय शरीर का सपर्श पाकर पापी मनुष्य पवित्र हो । जाते हैं । हे साधु महराज आपके चिन्मय शरीर से ही देवता लोग वज्र बनाके आशुरो का नाश करने में समर्थ होते हैं ...हे साधु महराज दुष्टों द्वारा इस घोर कलयुग में आपके शरीर की हत्या की जाती है फिर भी आप दया स्वभाव वश उन्हे क्षमा कर देते हैं पर एक बात है आप तो उन्हे परमात्मा अंश या प्रारब्ध कारण मान कर उन्हे क्षमा कर देते हैं । हे साधु महराज हम आपसे कुछ प्रश्न करते हैं यदि आपकी कृपा हो तो हमे अवश्य उत्तर देंगे । क्या कलयुग की अंधेरी रात हमेशा के लिए मिटना भगवान के वश की बात नही है ? कलयुग के संतान गोविन्द को गालियां बकते हैं। उन्हे तो कष्ट नही होता किंतु ये सब देखकर मुझ भक्त को आत्म हत्या करने को जी करता है ताकि इन आंखों से गोविंद का अपमान नही देखा जाता। क्या कलयुग में कन्या की रक्षा द्रोपदी मां की भांति गोविंद नही कर सकते। क्या कलयुग में गोविंद ने गौ माता से सम्बन्ध तोड़ लिया क्योंकि जब उसकी दुर्गति देखता हूं ऐसा लगता है किसी ने मेरी आत्मा को जूते से मसल दिया। क्या कलयुग को बनाना जरूरी था? कलयुग में ईश्वर को पुकारने पर वो आते क्यो नही है जब की वो सर्व्यापी अन्तर्यामी है वो जड़ चेतन रूप में है उसके सिवाय कुछ यहां वहां कुछ नही है। वो ही वासुदेव सर्वम, शिवमय, देवीमय एक अदृश्य कण से अनंत दृश्य अदृश्य जगत में व्याप्त हैं । कलयुग में भक्तों की दुर्गति होना अनिवार्य है ? कलयुग में जब गोविंद शिव और माता आदिशक्ति का अश्लील तरीके से अपमान होना था तब गोविंद मुझे ये सब देखने से पहले मृत्यु क्यो नही देता। जब भी ईश्वर से इन सवाल का उत्तर मांगता हूं तो अद्वैत ज्ञान कही न कहीं से आ जाता है किंतु साक्षात आकर उत्तर क्यो नही देता है ? यदि आपके पास उत्तर है तो जवाब दे नही तो गोविन्द गौ से अपना प्रेम हमेशा के लिए हटा लूंगा ताकि उसका अपमान भी हो तो मुझे घोर दुःख न हो । मुझे पता है आप उत्तर नही दोगे कहां आप ज्ञानी संत स्वभाव के पुरुष .... कहां मैं तुच्छ पापी अभागा जो अपने ईष्ट का अपमान देखने वाला और जानवरो से लड़ते लड़ते जानवर पुरुष बनने वाला । मुझे पता है आप उत्तर नही देंगे । क्योंकि आप जेसे संतो की शक्ति मुझ जैसे पापी की शब्दो को देखकर कही क्षिण जो हो जायेगा । हे दुष्टों का नाश करने वाले भगवान कल्कि महराज , हे दुष्टों का नाश करने भगवान परशुराम , हे दुष्टों का नाश करने वाले रामभक्त हनुमान , हे संघार करने वाले देवाधिदेव महाकाल अपना विराट मुख खोलो और या तो मुझे मिटा दे या तो कलि पुरुष को हमेशा के लिए मिटा दे। इस पृथ्वी पर या तो अपने भक्तो को रखो या तो कलयुग को रखो परंतु दोनों में से कोई एक को रखो । – श्रीरामभक्त राहुल झा वत्स 🙏🙏🙏 पर हम श्रीरामभक्त रा.झा वत्स उन्हें कभी क्षमा नही कर सकते। हमे क्षमा किजिएगा क्योंकी हे साधु महराज किसी को तो इन साधु हत्याओं को रोकने के लिए आगे आना होगा । जब जब साधुओं को खून से लत पथ देखता हूं तब मेरी आत्मा रो देती है इन हत्याओं के कारण हृदय में जो क्रोध की वेग उठती है उसे रोकने में असमर्थ हो जाता हूं । यदि ऐसे हत्यारे हाथ में आ जाएं तो शकाहारी होते हुए भी मांसाहारी बन जाऊ । वासुदेव सर्वम अनुभव करने वाले हे दुर्लभ महात्मा आप ही बताइए हम उन्हे परमात्मा के अंश कैसे माने जो गौ ब्रह्मण स्त्री निर्दोष साधुओं और निर्दोष पशु पक्षियों की निर्मम हत्या करते हैं ? हम उन्हे परमात्मा का अंश कैसे माने जो अभिमान के वशीभूत मेरे प्यारे गोबिंद को गालियां तक दे देते हैं क्या यही सब दिखाने हरि जी ने मुझे भेजा था। हे साधु महराज ये सब देखने से पहले मेरी मृत्यु क्यों नही हुई।

माताओं को राम तक पहुंचाने का प्रयास

मेरा मन अपनी माताओं को संदेश देता है पर स्वयं राम को भुलाए बैठा है । 👇👇👇 ꧁༺🙏❤️🌷|| राम ||🌷❤️🙏༻꧂ ━╬٨ـﮩﮩ❤٨ـﮩﮩـ╬━ हे मां आप कुछ नही है आप और आपकी दृष्टि में एकमात्र राम(राममय, वसुदेव सर्वम, या राधा मई ) है उसके सिवाय कुछ नही है आप राम (बिहारी जी )से अटूट प्रेम करो क्योंकि राम मार्ग है राम ही नित्य घर है राम ही आपका लक्ष्य है आपकी वाणी भी राम है तेरे विचार भी राम हैं । राम ही तेरा प्रिय है । राम आपके हृदय से अनंत ब्रह्मांड में व्याप्त हैं । राम ही समस्त जगत है राम ही तीनो काल है। आपका सब कुछ राम है उसके सिवाय कुछ नही है। हे माता आप दुर्गति का भय त्याग दे । आपने राम की प्रेरणा से मुझे प्रेम से बेटा कहा है और मैं राम की प्रेरणा से आपको मां कहा है तो मेरा स्वामी मालिक मेरा गुरु राम का इतना भी धर्म नही की आपको अपनी शरण ले । आप शोक दुःख भय का सर्वथा त्याग कर दे । आप राम को इस स्वप्न संसार में नित्य अपने लिए और दूसरो में स्थित अच्छे गुण के लिए प्रार्थना और धन्यवाद रूपी नमस्कार किया करों। आप राम के लिए नही रो सकती तो राम से कहो की वो आपके भीतर ऐसी प्रेमभक्ति आग प्रकट हो की आपके जीते जी आपको राम मिल जाए और उनके चरणो में फूट फूट कर रो लो और खुशी की आंसू उसके चरणो में बहा दो । राम ही आपका ईश्वर है । राम ही आपके प्राण है । राम ही आपके तन मन में स्वस्थ रूप में स्थित हैं। राम ही आपके आनंद हैं । राम ही आपकी आत्मा का विराट रूप परमात्मा है । अर्थात् राम ही आप में आत्मा है । आप दुःख से मत घबराओ क्योंकि राम के इतने दुःख आपने नही झेला फिर भी देखो वो अपने दुखों का नाश के साथ अपने भक्तो के भी कर डालते हैं। राम परम् आनन्द स्वरुप हैं उन्हें दुख छू भी नहीं सकता वो मनुष्य रुप अवतार लेकर हमलोग को शिक्षा देते हैं सुख दुःख आत्मा के नही शरीर के होते हैं । पाप– पुन्य अपना– पराया आत्मा के नही है शरीर के होते हैं । माता जी आप वही आत्म स्वरूप है उसी प्रकार आपको भी स्वयं के साथ सभी के कल्याण के लिए अपने हृदय में राम को मनाना चाहिए। माता जी आप मृत्यू के भी मृत्यु हैं आप अविनाशी हैं ईश्वरी हैं आप पर ब्रह्म स्वरूप हैं क्योंकी राम से भिन्न नहीं है । आप शरीर का पर्दा हटा कर देखे तो सर्व्यप्त राम ही दिखेंगे आप भी राम से बने तो आप राम से भिन्न नहीं है महात्मा अर्जुन महराज ने कुरुक्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण के विराट रूप में स्वयं को भी देखे थे। आप राम रूपी महासागर में बूंद रूप में हैं और आप बूंद में राम रूपी महासागर स्थित हैं । इसका अनुभव किजिए आनंद में मगन हो जाइए। आप परम् आनंद स्वरूप है । आपको प्रेम भक्ति चाहिए तो आप गोपी मईया के लिए धन्यवाद और प्रणाम करें क्योंकि उन्होंने कृष्ण रूप में गोपियों को प्रेम भक्ति देकर दर्शन दिए। किन्ही महापुरुष को भगवत प्राप्ति हुई है तो उनके लिए राम को धन्यवाद करो । कोई भगवत प्राप्ति की चेष्टा कर रहा है तो उसके लिए राम को धन्यवाद किजिए। किसी को धन दौलत और अच्छे पुत्र पति पत्नि मिली है तो उसके लिए धन्यवाद नमस्कार करो । यदि आपको राम चाहिए तो सबसे पहले उनके लिए राम को धन्यवाद करो जिसने राम को पाया । कोई राम को प्राप्त कर रहा है तो उसके लिए राम को धन्यवाद करो । फिर देखो राम क्यो नही मिलेंगे । राम आपके हर एक बात को सुनते है राम आपके हर एक प्रार्थना को सुनते हैं आप जो व्यथा लिखते है वो आपके भीतर और मेरे भीतर या हमलोग से पड़े में स्थित होकर राम पढ़ते है माता सीता और राम आपके हर एक भाव को समझते हैं। आप प्रसन्नता पूर्वक राम का नाम लिया कर महावीर बजरंगी के चरण कमल को अपने हृदय में धारण कर ले । सीता मैया की कृपा से जब जब हम "राम" नाम लिखते हैं तो उसमे आप अपने बिहारी जी को देखिए । क्योंकि राम ही बिहारी रूप में हैं राम ही तो वृंदावन और अयोध्या में हैं । और श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 श्लोक 31 में भगवान वासुदेव श्री कृष्ण भी अर्जुन जी को कहते हैं। मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ तथा मछलियों में मगर हूँ और नदियों में श्री भागीरथी गंगा हूँ। श्रीरामभक्त इस राहुल नामक शरीर से आपके साथ आपके हृदय में माता जानकी प्रभु श्री राम जी को दंडवत प्रणाम करता है। 🙏🌷❤️ ≪━─━─━─━─◈─━─━─━─━≫ जय सिया राम जय राम जय राम जय जय राम जय सिया राम जय राम जय राम जय जय राम हर हर शंकर हर हर महादेव जय हनुमान ≪━─━─━─━─◈─━─━─━─━≫

मेरा राम और मेरा कृष्ण

हे राम अब मैं तेरे भक्तों को चिंतित देख कर मैं भी चिंतित हो गया हूं । मैं स्वाभाव से नटखट चंचल अवश्य हूं पर मैं तेरा बेटा हूं ये मां भी तेरी ही सनातन पुत्री है । मैं सभी ज्ञान से अधिक तेरे उपर ही पूरा भरोसा किया है । मेरे प्यारी माता जानकी इस मां के बदले मुझे बांध दो पर इस मां की उद्धार के लिए तेरे चरणों का आश्रय लिया है। माता यदि इन माताओं पर दया दृष्टि नही दिखाएगी तो मैं किनकी शरण जाऊंगा । माता सीता मैं ने स्वयं से अधिक तेरे उपर ही भरोसा किया है । माता राधिके तुम तो अपने पुत्र पर दया और प्रेम बरसाने वाली हो तू सभी मैया के हृदय में अपने चरण भक्ति बढ़ा कर उन पर कृपा करो । तथा मेरे हृदय की चिंता को मिटा दो । मेरी प्यारी मां ब्रिजेस्वरी मुझे तो सबसे अधिक तेरे उपर ही पूरा विश्वास है। मेरे हृदय की चिंता को दूर कर दो । मां दुर्गा महारानी मुझे तुम से बहुत डर भी लगता है कही तू मुझ से रूठ गई तो मैं अनाथ किनकी शरण जाऊंगा । मेरी मां दुर्गे मैं ने कभी तुम्हे कृतज्ञता पूर्वक तेरी पूजा नही की ... फिर तू मुझ पर दया कर क्षमा कर देती हैं । माता दुर्गे मैं ने स्त्रियों का संग किया पर तेरी अंशरूपा जानकार इस माता से मूंह न मोर पाया। मैया कृष्ण स्वरूपिणी श्यामा मैया मैं तुम से मिलने को इतना बैचेन हो गया की मुझे किसी बात की कोई परवाह नही रही तेरे भक्त से उतपटांग प्रश्न कर बैठा उसके उपरान्त फिर इन लोगो के पास पहुंच गया। मैया जगद्मबिके माता तू अब कब तक मुझे भटकाती रहेगी । मुझ पर एक कृपा कर दे अपने पास बुला मणि द्वीप ले तू इन माताओं को मेरे दोष दुर्गुणों से बचा कर इन्हे सारे प्रपंच बचा लो और अपने चरणो की भक्ति दान करों। मैया मैं तो अकेला असंग हूं । मेरी पराजय और विजय तू ही है । मेरी मां राधिका मैं ने तुम्हे कभी वैसे स्मरण नही किया जैसे संत जन और भक्त जन करते हैं मेरी मां मुझ पर दया करो मेरे अपराध को क्षमा करो और अब मेरी कोई ठीक नही कब हू कब हूं कब नही हूं । जन्म लेते जन्मदाता मैया को कष्ट दिया। माता दुर्गे माता पार्वती माता लक्ष्मी माता परम ब्रह्म स्वरूपिणी यदि भूल से भी मेरी काली दृष्टी इन माताओं के उपर पड़ी है तो ढाल बनकर इनकी रक्षा करो। माता मैं तो तुम्हे ढूढते ढूढते यात्रियों की भांति आपके भक्तो के पास पहुंच गया। यदि इसमें अपराध हुई है तो सजा या क्षमा देदो । माता मैं ने किसी को ठगने के उद्देश्य कभी किन्ही भक्त के पूछने पर मार्गदर्शन नही दिया है। मेरे हृदय में स्थित ज्ञान तेरा ही रूप है मेरी बुद्धि की मालकिन तू ही है । फिर यदि मुझ से कोई गलती होती है तो मैं किस पर प्रश्न करू ? मेरे हृदय की बात को तुम भली भांति जानती हो। सब का कल्याण हो । सब का मंगलमय हो सम्पूर्ण पृथ्वी पर सनातन धर्म से सजी रहे । पृथ्वी पर सभी हीन भावना से दूर भीतर से हिन्दू हो। सूर्य की भांति विश्वगुरु भारत चमकता रहे। सच्चे साधू संतो से मेरी भारत माता और पृथ्वी मां सजी सजी रहे । मां दुर्गे सभी तेरे कृपापत्र का अधकारी हो । गौ माता की रक्षा हो । इसके सिवाय और मुझे इस पृथ्वी पर कुछ नही चाहिए । वृंदावन और बरसाना की महारानी मां राधिके मैं तेरी शरण आया हूं। तुम अब कृपा करेगी । राधा मैया तू मेरी मां है और मैं तेरा बेटा हूं बस इतना ही मंत्र जानता हूं । मेरे प्यारे गोबिंद काश मैं तेरे माखन चोरी का आरोप अपने सर लेता । मेरे प्यारे गोविंद काश मै तेरे बदले यशोदा मैया की थप्पड़ खाता मेरे प्यारे गोविंद काश मै तेरे साथ गेंद खेलता मेरे प्यारे गोविंद काश मै भी तेरे साथ गौ चराता मेरे प्यारे गोबिंद काश मै भी तेरे साथ मथुरा में होता मेरे प्यारे गोबिंद काश मै भी तेरे बचपन का यार होता मेरे गोबिंद काश मै भी मैया को ठगने में माहिर होता मेरे प्यारे गोबिंद काश मै भी तेरे साथ राक्षसों का वध करता मेरे प्यारे गोबिंद काश मै भी तेरे साथ सोता जागता खेलता रोता और गुरुकुल में शिक्षा लेता । मेरे प्यारे गोबिंद काश मै भी उस घने जंगल में बुढ़िया की दी हुई चने खाता । मेरे प्यारे गोबिंद काश मै भी तेरे सीने से लिपटा होता । मेरे प्यारे गोबिंद काश मै भी तेरे साथ बार बार जन्मता और शरीर त्यागता । मेरे प्यारे गोबिंद ये भाव विचार कहां से और क्यो लिख रहा मुझे पता नही मैं तो बस तेरे प्रेम में तेरे साथ जीना मरना चाहता । मेरे प्यारे गोबिंद माना तो था तेरा अर्जुन हूं पर धीरे धीरे मेरा मन इतना बढ़ गया पता नही तेरे सखा क्यों बनना चाहता । मेरे प्यारे गोबिंद मेरे को मुक्ति ब्रह्म ज्ञान और न बंधन चाहता मैं तो बस तेरे साथ हंसना रोना चाहता ।

मईया राधे

हृदय में प्रेम की ज्योत जलाने वाली मैया राधे तू मुझे दर्शन दे । मेरे हृदय में निवास करने वाली मां राधे तू मुझे दर्शन देकर मेरे चित्त को शांत करो मेरी प्यारी मां राधे जितना सीघ्र हो सके तू मुझे अपनी गोद में लेकर दुलार दे दे । मेरी प्यारी मां राधे अब मैं बड़ा चंचल हो गया हूं दर्शन देकर मेरे चंचल मन को शांत करो । मेरी प्यारी मां राधे मुझ भटकने वाले बालक को अपनी गोद में लेकर मेरे आंसू पोंछ दे। मेरी प्यारी मां राधे अब तेरे बिना नही रह पाऊंगा तू अब मुझे दर्शन दे । हे गोप पुत्री श्री राधे आप तो दीन हीन पर भी कृपा करती हो मुझ पर कृपा करो । हे ब्रज की सुंदरी मां राधे तुम सभी पर दया करती हो मुझ पर भी दया करो । हे ब्रिजेस्वरी मैया राधे गोपियों की अधिश्वरी सब का कल्याण करती हो मेरा भी कल्याण करो । हे वृन्दावनेश्वरी मैया राधे तुम सब को प्रेम दान देती हो मुझे भी अपने चरणो की प्रेम दान दो । हे श्री कृष्ण की प्राण तुम मृत जीवो को भी प्राण देती हो मुझे भी आत्मिक जीवन का प्राण प्रदान करो । हे मृदुलभाषिणी मैया तुम ही मधुर भाषा जननी हो मुझे भी मधुर बोलने की शक्ति प्रदान करो । हे मधुसूदन प्यारी मैया राधे तुम सभी बालको को क्षमा कर देती हो मुझे भी क्षमा करो । हे गोलोक स्वामिनी तुम सभी प्यारे बालको को मार्ग दिखाने वाली हो मुझे भी उत्तम मार्ग दिखा कर अपने पास बुला लो। हे हरि प्रिय परम पुनीत श्री राधे तुम सभी के दोषों को हर लेती हो तुम मेरे भी सारे दोषों का नाश करो। हे नवल किशोरी मईया तुम सभी के पाप को नाश करने वाली हो तुम मेरे भी पाप का नाश करो । हे रास विलाशिनी मैया श्री राधे तुम तो अपने भक्तो को हाथ पकड़ उत्तम मार्ग पर ले जाने वाली हो मुझे भी उत्तम मार्ग पर ले चलो । हे कंचन वर्णी श्री राधे मैया तुम सब को शरण देने वाली हो मुझे भी अपनी शरण लेलो । हे सुभग भामिनी मैया श्री राधे मेरे भीतर के दुर्गुण दोषों को दूर करो । श्री राधे मां की कृपा से

भक्ति

तेरी हर एक वाणी दिव्य है माता तेरी हर एक लीला दिव्य है। जो किसी को समझ न आए तेरे चरण प्रेम का वो आनंद भी दिव्य है तेरे हाथ में जो त्रिशूल है वो भी दिव्य है तेरे हाथ में जो तलवार है वो भी दिव्य है तेरे मस्तक पर अर्धचंद्रमा भी दिव्य है । तेरे हाथ में गदा सुदर्शन धनुष बाण शंख हैं वो भी दिव्य है। तेरे हाथ में तो अनंत अभय आशिर्वाद और वरदान है माता । तेरे गले की हार और तेरे मस्तक पर सुंदर मुकुट हैं वो भी दिव्य है माता है । तेरे स्नेह और प्रेम भरी नेत्र हैं वो भी दिव्य है माता । तेरे सुंदर मुखड़े के आगे तो करोड़ो सुंदरियों फीकी पड़ जाए । तेरे हाथ की चूड़ियां और तेरे श्रृंगार की सुंदरता तो करोड़ो मुखों से भी वर्णन नही किया जा सकता । तेरे सिंह को देख काल भी दूर दूर तक नजर नहीं आते । वो तो साक्षात् मृत्यु का भी मृत्यु है । तेरे भाग को देख साक्षात् यमदूत भी डर से थर थर कांपते हैं । मैं तेरी दिव्य कथा कहां से प्रारंभ करू कहां अंत करू माता तू अनादि अनंत स्वरूप और गुणों को जननी है माता । माता तेरी सदा जय जय कार है तेरे चरणो में अन्नत कोटि दंडवत प्रणाम है माता .... तुम्हे हर दिशा हर ओर से नमस्कार है माता ...... माता तुम्हे हर रूप में दंडवत प्रणाम है। – श्रीरामभक्त वत्स 🙏♥️🙏 मैया तू मुझे इतना वरदान दे । कैसा भी भक्त हो किसी के लिए मन में कोई मतभेद न हो मुझे सभी सम्प्रदाय सभी मत पंथ के भक्त गुरुजन और संत प्यारे लगे । तू सब की माता है तू सब की जननी है तू सब की स्वामिनी है। तू सब की ईश्वरी है तू सब की प्यारी है तू मुक्त स्वरूपिणी है तू कैव्यलय प्रदान करने वाली है तू आत्म स्वरूप देने वाली है किसी भक्त और उसके संग में कोई दोष न दिखे सभी मुझे प्यारे लगे । जहां जाऊ सब को प्रेम दू जहां जाऊ सब को आदर सम्मान दू। जय मां वैष्णो महारानी 🙏 वैष्णो महारानी जी का परिवार ए मेरे आत्मा के खुदा आदिगुरु महादेव तू सबसे बड़ा है। हे विकारों को नाश करने वाला है तू सब पे मेहर करने वाला है । हे जगत के मालिक पार ब्रह्म तू करोड़ो सूर्य को अपनी प्रकाश देता है तू करोड़ो चंद्र को अपनी प्रकाश देकर उसे आजमाता है तू ही सारें जगत को अपने में लीन करता है। एक तू ही विकारों से मुक्त है एक तू जगत का आश्रय है । ये उसी में खो जाता है ये विकार भरी मन किसे नहीं छला। जिसने तेरा नाम लेकर अपना उद्धार न किया उसका ये मानव शरीर बर्बाद है । हे मेरे स्वामी हे निरंकार तू ही वेदों को रचा कर वैदिक धर्म की स्थापना करता है । तू ही सारे सत्य शास्त्रों को बनाया है । तू ही उसकी रक्षा करता है तू सभी प्राणियों के हृदय में निवास करने वाला है। तू सारे जीवो प्राण देकर जीवित रखता है । तू ही संपूर्ण जगत को अपने अधीन में रखने वाला है । हे मधुसूदन हे वासुदेव श्री कृष्ण हे अंतर्यामी तू ही मन में गंगा की नदी बहाकर मन को निर्मल बनाता है । हे जगत का पालन करने वाले हरि हे वेदों में पुरुषुत्तम कहलाने वाले हरि तू ही जीवो को बुध्दि विवेक देकर आजमाता है तू ही अच्छे बुरे राह पे लगाता तू सबकुछ जानने वाला है । ये दास तेरा ही गुणगान करता हैं । जय मां भगवती दुर्गा भवानी सत वाहेगुरू हरि नाम 🙏🙏🌷 हरि ॐ तत् सत् 🌷🙏🙏 –श्रीरामभक वत्स हे मेरे भीतर के आत्म देव तू बादशाहो का बादशाह और राजाओं का राजा है तू सम्राटो का सम्राट है । तुझे कोई माया नही क्षल तू सभी प्रपंचों से मुक्त है तू सभी विकारों से मुक्त है । तू प्रकृति से पड़े है। तू जीवन मुक्त है तू आदि अंत से रहित है तू अनेकों माया रचता है तू अनेकों माया को अपने लीन करने वाला है । तू साक्षात प्रेम का मूरत है । इस शरीर को प्राण तू ही देता है इस शरीर में चेतना तू ही डालता है । इस शरीर को तू ही त्यागता है तू रस रूप गंध स्पर्श से सदा मुक्त है । तू न सोता है न जागता है तू न कही जाता है तू न कही आता है तू वैरागों का महासगर है। तू सारे से निर्लिप्त है। तू अपनी मां दुर्गा को याद कर वो तुम्हे सदा याद करती रहती है। तू अपनी मैया राधा को याद कर वो तुम्हे सदा याद किया करती है । तेरी मां सावर्याप्त है । वो कही नही गई है वो सदा तेरे साथ है। तू सभी भय को नाश करने वाला है तू अमृत स्वरुप है। तू सब के हृदय में बसता है। निर्गुण स्वरुप सगुण स्वरुप त्रिमूर्त स्वरूप अमूर्त स्वरूप दुर्गति नाशक कल्याण स्वरुप कैवल्य स्वरूप प्राण स्वरूप निर्विकार स्वरूप मुक्त स्वरूप आनन्द स्वरुप आदी अनादि स्वरूप परब्रह्म स्वरूप अविनाशी स्वरूप महेश्वर स्वामी आपकी जय हो । आपकी जय हो आपकी जय हो। आपको बार बार प्रणाम है आपको बार बार दंडवत प्रणाम हैं। आदिगुरु विशेश्वर आपके चरणो में दंडवत प्रणाम । 🙏 [24/07, 4:11 pm] श्रीरामभक्त: प्रेम स्वरूप कृष्ण करुणा स्वरूप कृष्ण दया स्वरूप कृष्ण क्षमा स्वरुप कृष्ण सरल स्वरूप कृष्ण संतोष स्वरूप कृष्ण सत्य स्वरूप कृष्ण । 🙏🙏🙏🌷🌷🌷♥️♥️♥️ [24/07, 4:11 pm] श्रीरामभक्त: भूमि स्वरूप कृष्ण जल स्वरूप कृष्ण अग्नि स्वरूप कृष्ण वायु स्वरूप कृष्ण आत्मा स्वरूप कृष्ण पीपल रूप कृष्ण । 🙏🙏🙏🌷🌷🌷♥️♥️♥️ [24/07, 9:11 pm] श्रीरामभक्त: भक्त जैसा भी हो सब भगवान के प्यारे हैं। हरे राम हरे हरे राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। 🙏मैं भगवान में हूं। 🙏 [24/07, 9:11 pm] श्रीरामभक्त: हरि सचिदानंद स्वरूप है हरि सत स्वरूप है हरि ही सत पुरुष है। हरि ही असत स्वरूप है । हरि ही पूर्ण ब्रह्म है हरि परम् ब्रह्म स्वरूप है । 🙏🙏🙏 [24/07, 9:11 pm] श्रीरामभक्त: भगवान दया और क्षमा के मूरत हैं । वो सब पर कृपा करते हैं भगवान सब के स्वामी हैं। अपमान करने वाले सम्मान करने वाले सुख दुख देने वाले सब में भगवान है भगवान में सब है। उनसे पड़े कुछ नही है। [24/07, 9:12 pm] श्रीरामभक्त: हरि सचिदानंद स्वरूप है हरि सत स्वरूप है हरि ही सत पुरुष है। हरि ही असत स्वरूप है । हरि ही पूर्ण ब्रह्म है हरि परम् ब्रह्म स्वरूप है । 🙏🙏🙏 [24/07, 9:12 pm] श्रीरामभक्त: बस जहां रहे वहां हरि के सिवाय कुछ भी स्मरण न रहे । हरि का दास हरि पर आश्रित है। क्योंकि एक हरि ही सत है और सब कुछ असत है । [24/07, 9:12 pm] श्रीरामभक्त: बस जहां रहे वहां हरि के सिवाय कुछ भी स्मरण न रहे । हरि का दास हरि पर आश्रित है। क्योंकि एक हरि ही सत है और सब कुछ असत है । [24/07, 9:13 pm] श्रीरामभक्त: विकार अविकार से पार निर्विकार , गति दुर्गति से पार अविगत , ब्रम्ह आदि ब्रम्ह से पार ब्रम्हतीत , आदि अंत से पार आनादि , जन्म मरण से पार अजन्मा ( विदेह) , व्यापी अव्यापी से पार सर्वव्यापी सनातन परमात्मा🙏 [24/07, 9:13 pm] श्रीरामभक्त: हरि स्वयं अपनी इक्षा से संसार चला रहा है वो हर स्थान में है । हरि सभी में है सब कोई हरि में है। हरि के सिवाय कुछ नही है । ऐसे हरि को सभी रूपो में प्रणाम 🙏 [20/07, 10:48 am] श्रीरामभक्त: प्रेम बहुत अनमोल रत्न है। इसे किसी धन से खरीदा या नहीं बेचा जा सकता । प्रेम कोई कमजोर या नाजुक नही वस्तु नहीं है । प्रेम कोई व्यापार नही है प्रेम में कोई शुद्र पंडित नही है। प्रेम की यही [20/07, 6:57 pm] श्रीरामभक्त: हे राम मैं ने तेरी कभी सेवा नही मैं ने कभी तेरा ध्यान नहीं किया मैं ने कभी मन से तेरा सम्मान नही किया हे हरि अब तू ही मेरा गुरु रूप में आजा तू ही मुझे स्वयं को पहचानने की शक्ति दे । [20/07, 7:00 pm] श्रीरामभक्त: हे हरि तू अपने चरण की प्रेम भक्ति दे मै सदा तेरा ही चिंतन में डूबा रहूं। मेरे पापो का नाश कर मैं तेरे पास आने का अधिकारी हूं तू सब के हृदय में रहता है तू सब का स्वामी है । [20/07, 7:00 pm] श्रीरामभक्त: रे मन तू बड़ा बहरूपिया है तू बार बार रंग बदलता है तू बार बार संग बदलता है तू एक हरि नाम को गुरु बना ले हरि स्वयं तेरे सारे दुखों का नाश करेगा । तू जब जब हरि का ध्यान करेगा तब तब हरि तेरा ध्यान करेगा । [20/07, 7:01 pm] श्रीरामभक्त: हे त्रिपुरांत कारी हे त्रिलोचन हे महाकाल हे हरि हे कृष्ण हे श्याम सुंदर मैं अपनी हाथ तेरी ओर बढ़ा रहा हूं मेरा हाथ थाम ले मुझे इस जगत में चलने नही आती। अब मैं स्वयं को संभालने में असमर्थ हूं । [20/07, 7:01 pm] श्रीरामभक्त: हे नागेंद्र हे विशेश्वर हे दया के महान सागर आदिगुरु महादेव हे जटाधारी हे भास्मधारी हे त्रिशूल धारण करने वाले तुम मुझ बालक को गोद लेलो । मैं सदा तेरे चरणो का दास बना रहूं मैं अपनी शक्ति से तुम्हे नही पहचान सकता । [20/07, 7:01 pm] श्रीरामभक्त: हे जगत के सिरजन हार हे सगुण रूप में प्रकट होने वाले देवकी नंदन हे यशोदा नंदन मैं तेरे चरणों की धूल अपने सर पर धारण करता हूं जब मैं ने स्वयं को तेरे आगे सौप दिया फिर क्यों चिंता करू। [20/07, 7:01 pm] श्रीरामभक्त: हे भगवती मां दुर्गे हे भगवती मां राधे हे जगत के स्वामिन तेरे बनाए जगत में स्वयं कर्तार ने घोर दुःख को पाया है । मैं किस खेत का मूली हूं। श्रीराम जानकी के दुख के आगे मेरा दुःख कुछ भी नही है। मुझे इतना ही वरदान दे मै सब प्रेम दू [20/07, 7:01 pm] श्रीरामभक्त: हे तुलसी माता हे गंगा माता हे श्री राधिका माता मैं तेरा बालक हूं । मेरे विचारो को तू ही पवित्र करती है मेरे क्रोध को तू ही अपने वश में रखती है मेरी प्यारी मां मैं तुम्हे कभी न भूलूं मैं तेरे एहसान को कभी न भूलूं। मैं तेरा लाल हूं [20/07, 7:02 pm] श्रीरामभक्त: हे प्यारे गोविंद हे मलिक हे मधुसूदन जितना मैं स्वयं को नही जानता उससे अधिक तू मेरे हृदय को जानता है । मैं तेरे शरण हूं मैं तेरे वश में हूं हे प्यारे मैं तेरे निगरानी से बाहर कभी न जाऊ। [20/07, 7:02 pm] श्रीरामभक्त: हे हरि सभी जीवो को जीवनशक्ति भी तू ही है प्राण शक्ति भी तू ही अपने प्रेमियों में भी आनंद तू ही प्रकट करता है तेरी वश के बाहर कुछ नही है जन्मों जन्मों साथ तू ही निभाता है। तेरा एहसान मैं कभी नही भूलूं। [20/07, 7:02 pm] श्रीरामभक्त: हे राम विकार भरी उपदेशों से तू ही मुझे बचाता है हे गोविन्द मोह रूपी नींद से तू ही मुझ दास को जगाता है हृदय को पवित्र कर उसमे प्रेम भी तू ही डालता है मन को निर्मल बना तू ही उसमे निवास करता है। [20/07, 7:02 pm] श्रीरामभक्त: हे हरि तूने ही ये सृष्टि रची है चार वेद पुराण भी तू ने ही बनाया है जीवो को सुख दुःख भी तू ही देता है माया विष का मोह और प्रेम भी तू ने ही बनाया है । सारे जगत का विस्तार और जगत का स्वयं में लीन भी तू ही करता है। [20/07, 7:02 pm] श्रीरामभक्त: हरि ने इस इस जगत को स्वयं रचा है। वो अपनी रचना का स्वयं ही ध्यान रखता है । हरि ने पार्थ को घोर दुख में डाला तो उसका साथ भी नही छोड़ा । मेरा स्वामी जानता है। ये पार्थ ने स्वयं के झोली में प्रिय भक्तो का दुःख मांगा था। [20/07, 7:02 pm] श्रीरामभक्त: हे अनंत स्वरूप वाले आदिगुरु महादेव हे अनंत ज्ञान वाले सदाशिव हे अनंत नेत्र वाले त्रिकालशर्शी हे जगत के स्वामी हे अनंत ब्रह्मांड को अपने एक अंश में धारण करने वाले तू मुझे अपने चरणो की प्रेमभक्ति दे । मैं तेरे शरण आया हूं । [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे मां दुर्गे सच्चा प्यार तो केवल तुमने किया जगत के मोह में मै तो सदा ठगा गया। तू सब में रहने वाली है तू स्वयं नाम दीक्षा देने वाली है मैं तो करोड़ो मुखों से भी तेरे गुणों को बया नही कर सकता । 🙏♥️🙏 [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे मां दुर्गे जगत के सारे जीव तेरे बच्चे हैं मैं भी तेरा हूं तू ही परब्रह्म स्वरूपिणी है तू मेरी बुद्धि की मालकिन है तू पतितो को पवित्र करने वाली है हे मेरी बुद्धि को पवित्र कर अपने चरणो में लगा ले । [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे मां दुर्गे हे प्रचंड शक्ति धारण करने वाली हे अनंत गुणों वाली हे अनंत रूपो वाली मैं अपनी शक्ति से तेरे पास नही आ सकता अब तू स्वयं मुझे अपनी ओर खींच ले । [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे मां दुर्गे हे महामाई हे महामाता हे महान पराक्रम की स्वामिनी हे कृष्ण स्वरुपिणी हे राधा स्वरूपिणी अब देर न करो । मुझ पर दया करो मैं अपार शोक में हूं न जाने तुम्हे कहां कहां ढूंढा अब तू स्वयं चाहेगी तभी मिलेगी । [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे मधुसूदन हे अंतर्यामी प्रभु हे अयोध्या पति रामचंद्र हे महावीर हनुमान तू मुझे अपने चरणो की प्रेम भक्ति दे । [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे आदि गुरु महेश्वर हे आदिमाता माहेश्वरी हे आदि गणेश मुझे आप से कुछ नही चाहिए आप मुझको मेरी मैया राधा और मां दुर्गा के चरणो की प्रेमभक्ति दे दे । [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे कृष्ण तू योगियों का योगी योगेश्वर है तू अपने प्रेमी को सच्चा आनन्द देने वाला है तू अन्नत आनन्द वाला है तू संसार सागर से पार लगाने वाला तू सभी दुष्टों का नाश करने वाला है तू ही अर्जुन है तू ही पार्थ अर्जुन का सारथी है । [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: हे हरि करोड़ो सूर्य की भांति जो तेरा तेज है उसे देख कर भी मुझे संतुष्टि नहीं मिली मुझे तो तेरा वो सगुण रूप ही प्रिय है जो काक और ध्रुव जी को प्रिय लगता था । मुझे तेरा वही रूप अच्छा लगता है । [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: रे मन जैसे जल से जल अलग नही होता वैसे आत्मा परमात्मा से अलग नही होता जिसे हरि स्वयं में लीन कर लिया उसे ये ज्ञान हो जाता है सब कुछ वासुदेव ही है । हरि स्वयं का ही स्वयं स्मरण कर रहा है । वो आत्मिक आनंद से डोलता रहता है [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: हे मन परमात्मा को जो अच्छा लगता है वही करता वो जिसे भक्ति देता है वही उसके गुण नाम और कीर्तन गाता है वो एक रूप है वो संतो से अलग नही है वो तेरे से अलग नही है तू अपने को पहचान तू कौन है तेरा स्वामी कौन है । [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: मैं गोपी मैया पर सदा कुर्बान हूं जिन्होंने हरि का साक्षात् दर्शन किया मैं उस सुदामा जी पर सदा कुर्बान हूं जिन्होंने हरि का साक्षात् दर्शन किया मैं उस महत्मा अर्जुन पर सदा कुर्बान हूं जिन्होने हरि को अपना सारथी बनाया । [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: रे मन जो हरि के स्मरण नही करता वो माया के प्रपंच से कभी अनंत काल तक नही छूट सकता । हरि सब का कल्याण करने वाला तेरा भी कल्याण करेगा तू शोक मत कर । [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: हे हरि मुझे तो बस तुम्हे पुकारने आता है तेरा नाम रटने आता है तेरे से प्रेम करने आता है तू मेरा स्वामी है तू ही मेरा गुरु है तेरे सिवाय अब और कुछ न भाए मुझ पर मेहर कर। 🙏 [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: हे हरि मेरे प्रेम को तू ही जानता है तू मेरे हृदय में रहता है तू सब का स्वामी है सब रूप में अलेके व्याप्त है तू वासुदेव सर्वम है सब कुछ तुझ से उतपन्न हुवा है सब तेरे में लीन हो जाएंगे। पर मैं तो तेरे सदके जावा।

प्यारे गोबिंद

[08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: प्रेम स्वरूप कृष्ण करुणा स्वरूप कृष्ण दया स्वरूप कृष्ण क्षमा स्वरुप कृष्ण सरल स्वरूप कृष्ण संतोष स्वरूप कृष्ण सत्य स्वरूप कृष्ण । 🙏🙏🙏🌷🌷🌷♥️♥️♥️ [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: भूमि स्वरूप कृष्ण जल स्वरूप कृष्ण अग्नि स्वरूप कृष्ण वायु स्वरूप कृष्ण आत्मा स्वरूप कृष्ण पीपल रूप कृष्ण । 🙏🙏🙏🌷🌷🌷♥️♥️♥️ [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: भक्त जैसा भी हो सब भगवान के प्यारे हैं। हरे राम हरे हरे राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। 🙏मैं भगवान में हूं। 🙏 [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: हरि सचिदानंद स्वरूप है हरि सत स्वरूप है हरि ही सत पुरुष है। हरि ही असत स्वरूप है । हरि ही पूर्ण ब्रह्म है हरि परम् ब्रह्म स्वरूप है । 🙏🙏🙏 [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: भगवान दया और क्षमा के मूरत हैं । वो सब पर कृपा करते हैं भगवान सब के स्वामी हैं। अपमान करने वाले सम्मान करने वाले सुख दुख देने वाले सब में भगवान है भगवान में सब है। उनसे पड़े कुछ नही है। [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: हरि सचिदानंद स्वरूप है हरि सत स्वरूप है हरि ही सत पुरुष है। हरि ही असत स्वरूप है । हरि ही पूर्ण ब्रह्म है हरि परम् ब्रह्म स्वरूप है । 🙏🙏🙏 [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: बस जहां रहे वहां हरि के सिवाय कुछ भी स्मरण न रहे । हरि का दास हरि पर आश्रित है। क्योंकि एक हरि ही सत है और सब कुछ असत है । [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: विकार अविकार से पार निर्विकार , गति दुर्गति से पार अविगत , ब्रम्ह आदि ब्रम्ह से पार ब्रम्हतीत , आदि अंत से पार आनादि , जन्म मरण से पार अजन्मा ( विदेह) , व्यापी अव्यापी से पार सर्वव्यापी सनातन परमात्मा🙏 [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: बस जहां रहे वहां हरि के सिवाय कुछ भी स्मरण न रहे । हरि का दास हरि पर आश्रित है। क्योंकि एक हरि ही सत है और सब कुछ असत है । [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: हरि स्वयं अपनी इक्षा से संसार चला रहा है वो हर स्थान में है । हरि सभी में है सब कोई हरि में है। हरि के सिवाय कुछ नही है । ऐसे हरि को सभी रूपो में प्रणाम 🙏 [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: हे अनादि अंत से रहित हे सब के स्वामी गोबिंद हे अंतर्यामी करोड़ो जीभ से भी तेरा नाम लिया जाए करोड़ो बार नाम लिया जाय और सोचे मैं इतनी बार जप कर लूंगा तो तेरी प्राप्ति हो जाएगी । मैं अपनी मेहनत से भगवान की प्राप्ति कर लूंगा ये जीवो का झूठा अहंकार है इस अहंकार से तुम्हारा कोई अता पता भी नही लगा सकता ....जब तक तू स्वयं नही दया करता तब तुम्हे कोई प्राप्त नही कर सकता। कई योगी ध्यान लगा कर तेरा पता लगा रहे हैं कई संत बनकर मन में विकार लिए प्रवचन दे रहें कोई पंथ की माया जाल में तेरी महिमा गाकर दूसरे पंथ की निंदा कर रहे हैं कोई जोड़ जोड़ से चिल्ला कर तेरे नाम का नमाज अदा कर रहे हैं कोई समाधि लगा बैठा है । हे जगत पालक यदि मन यही अहंकार लिए मैं तेरी वंदना करू तो तू भी मेरी नही सुनेगा । मैं सदा तेरे आश्रय लिया है मैं हे माधव रघुनंदन तू जैसे नचाता है मैं वैसे नाचता हूं । मुझ से तेरी शक्ति के बीना कुछ भी नही हो सकता । इस संसार में छोटा बड़ा श्रेष्ठ सर्व श्रेष्ठ की फैसला तेरे दरबार में ही होता है । तू सभी के हृदय में स्थित जानने वाला है।

मां दुर्गा और मां राधा स्तुति

हे करूणा मय जगदंब मंगल स्वरुप दुर्गे कैवल्य स्वरूप मुक्त स्वरूप आनन्द स्वरुप माता अंबिके जिसका मन तेरे नाम तेरे लीन हो गया .. उस मनुष्य का धर्म के साथ सीधा संबंध बन जाता है, वह फिर दुनिया के विभिन्न पंथ मत रास्तों पे नहीं चलता उसके अंतःकरण में ये द्वंद नहीं रहता कि ये मार्ग ठीक है और ये गलत है । हे मधुर स्वरूपिणी वैष्णवी तेरा नाम जो माया के प्रभाव से परे है वो इतना ऊंचा है कि इस में जुड़ने वाला भी उच्च आत्मिक अवस्था वाला हो जाता है पर ये बात तभी समझ में आती है जब कोई मनुष्य अपने मन में "मां काली दुर्गे राधे श्याम गौरी शंकर सीता राम वाहेगुरु" आदि किसी एक नाम में भी सच्ची श्रद्धा जाग जाए । हे निराकार साकार ओंकार निर्विकार जगत के पालनहार तारणहार भव सागर से पार माया से पार प्रपंचों से पार यदि मैं दुनिया में बहुत बड़ी हस्ती बना लू ऊंची नाम बना लू दुनिया की सारी संपदा प्राप्त कर लू..पूरी दुनिया से अपनी गुणगान बड़ाई कराऊं... माता माहेश्वरी यदि तेरी दृष्टि मुझ पर न पड़ी तो मैं तेरे आगे सूक्ष्म कीड़ा ही हूं। माता सर्वेश्वरी काल के भी काल महाकालेश्वरी मृत्यू की भी मृत्यु रूद्राणी यदि मैं तेरे नाम से विमुख होकर अपनी नाम कमा लूं अपनी मान कमा लूं दान – पुण्य कमा लूं तप करके सैकड़ो इंद्र के समान शक्तियां प्राप्त कर लू कुछ समय के लिए त्रिलोक पर शासन जमा लू सैकड़ों सूर्य चंद्र को अपने अधीन कर लू तो भी मैं तेरे यमदूत के आगे कीड़ा ही हूं । मेरी बुद्धि एक कीड़ा के समान ही है । अन्नत स्वरूपिणी माता दुर्गे प्राण स्वरूप माता राधिके आत्मा स्वरूप माता सर्वात्मन है अनंत शक्तियों की जननी आद्याशक्ति अनंता यदि मैं ऊंची अवस्था प्राप्त कर लू ऊंचे पद प्राप्त कर लू कई सिद्धियां प्राप्त कर लू बड़े बड़े ज्ञान प्राप्त कर लू यदि मैं तेरे नाम के आगे न झुकूं तो मैं तेरे बनाए संसार का मूर्ख अहंकारी जीव ही हूं। माता देवकी तुमने अनंत ब्रह्मांड को ही अपने गर्भ में आश्रय दिया है। माता यशोदा तुमने अनंत जगत को ही अपने हाथो से माखन खिला कर कृतार्थ कर दिया है माता अंबिके जो तेरे आगे नहीं झुकते वो तो कलयुगी जीव तेरे ओखल में पड़े धान के समान ही है जिसके कूटने के बाद उसमें तेरी भक्ति बन जाती है। – श्रीराम सेवक 🙏♥️🌷

हरि जी प्रेम भक्ति

हरि जी तुम्हे बार बार नमस्कार जो तुमने सभी प्रेमी जनो को अपने चरणो को प्रेमभक्ति प्रदान किया । मां वृजेश्वरी श्री राधिके तुम्हे अन्नत कोटि नमस्कार जो तुमने सभी प्रेमीजनों को अपने चरणो की भक्ति प्रदान की.... मां भगवती दुर्गा तुम्हे बार बार अन्नत कोटि दंडवत नमस्कार जो तुमने सभी प्रेमी जनो की कलयुगी प्रांपचो से रक्षा की .... माता कृष्ण माता राधिके माता दुर्गे माता गोपी तुम्हे आगे से नमस्कार तुम्हे पीछे से नमस्कार तुम्हे सब रूप में नमस्कार जो तुमने सभी प्रेमी जनो को अपने चरणो की भक्ति प्रदान की... माता तुम ही सर्वात्मा सव्रेश्वरी तुम शिवा हो तुम शिव हो तुम ही आदि अनादि और मध्य हो तुम ही आदि अंत से रहित अन्नता हो। माता तुम ही जगत का संचालन करने वाली हो तुम ही अनंत सृष्टि को धारण करने वाली हो । माता तुम ही सभी जीवो रूप में स्थित हो तुम गौरी लक्ष्मी माता सरस्वती गंगा गोदावरी यमुना तथा सर्वदेव सर्वदेवी महादेव महादेवी हो । माता मैं तेरा गुणानग कहां से प्रारम्भ करू तुम ही वासुदेव सर्वम हो तुम ही राधा सर्वम और दुर्गा सर्वम हो । माता मुझे हर स्वांस से वायु के स्थान पर तेरा नाम ही नाम निकले माता मैं हर जन्म तेरा रहू। माता मुझ पर बस तेरा अधिकार हो माता मेरी श्रद्धा बस तेरे चरणो में रहे । माता मुझे मणिद्वीप गोलोक वैकुंठ लोक कुछ नही चाहिए मैं तो तेरे चरणो के प्रेम का प्यासा हूं माता मुझे अपने चरणो की प्रेम भक्ति दो । माता मुझे ज्ञान विज्ञान प्राण कुछ नही चाहिए । मुझे तो बस तेरे साथ रहने का वरदान चाहिए । माता मुझे मुक्ति शक्ति सिद्धी आदि कुछ नही चाहिए मुझे तो बस तेरे भक्तो का दुःख संकट विपत्ति अपने सर पे चाहिए । माता तुम ही अपने भक्तो रूप में स्थित है मैं तो तेरा उदंड बालक हूं । सब को परेसान करने वाला हूं संतो झगड़ने वाला हूं । पर जैसा भी हूं तेरा हूं भीतर से संतो और तेरे भक्तो के चरणो का दास हूं । माता मुझे कुछ नही चाहिए । मुझे तो बस तुम्हारे भक्तो को आदर सम्मान प्रेम देने वाली बुद्धि चाहिए । माता तुम जहां कही भी हो तुम्हे हर हृदय में पुकार पुकार कर तुझे बुला लूंगा । अब तुम मुझ से आंख मिचोलिया खेलना बंद करो मेरा हाल अब तेरे बिना बेहाल है । माता तू ही दरिद्र सुदामा का कृष्ण हो तुम ही हनुमान के रामचंद्र जानकी हो तुम ही मेरे गोबिंद श्री राधा आदिगुरु महादेव हो । माता तुम ही जल अग्नि चंद्र सूर्य गगन पशु पक्षी असुर सुर देव दानव और इन सबसे पड़े परब्रह्म स्वरूप हो । हे सर्वेशरी जगतीश्वरी परमेश्वरी भक्तवत्सला मैं जन्मों जन्मों तुम्हे ध्याऊंगा फिर तू मेरी इक्षा के अनुसार नही मिलने वाली है जब तेरी इक्षा होगी तभी मिलने वाली है अर्थात मैं तेरा पुत्र होकर भी अनाथ ही सिद्ध हुवा । माता तुम तो मैया द्रोपदी के बुलाने पा आ गई थी तुम तो गजराज को बुलाने पर आ गई थी ध्रुव प्रह्लाद के बुलाने पर आ गई थी पर मेरे नैन तेरा दर्शन कब करे तू ही जाने .... हे हरि मैं तो तेरा नाम ही जानता हूं। मैं तुम्हे ही माता पिता भाई बहन मित्र गुरु साधु संत और जगत स्वरूप में जनता हूं मैं पूजा पाठ तीर्थ स्नान कर्म काण्ड यज्ञ आदि करना कुछ नही जानता बस तेरे प्रेम और दुलार रस का भूखा हूं । करुणा माइ गोबिंद दया करो माता कृपा करो माता मुझे इस दुर्गम संसार में तेरे सिवाय और कौन समझ सकते हैं । माता इस दुर्गम संसार से पार तेरे साथ ही जाना चाहता हूं तेरे साथ ही रहना चाहता हूं । माता तुम जहां कही भी छुपी हो आने की कृपा करो । ❤️🙏🌷 – श्री राम भक्त राहुल झा

मां काली स्त्रोत्र

दिव्य स्वरूपिणी मां काली आपकी जय हो आपकी जय हो रक्तबीज सहारिणी मां काली आपको बार बार नमस्कार है आपको बार बार नमस्कार है आपको बार बार नमस्कार है दुष्ट विनाशीनी मां काली आपके चरणो में बार बार नमस्कार है माता जगद्मबीक आपको हर दिशा से हर दिव्य रूप में आपको नमस्कार है । जगत स्वरूपिणी मां काली आपको बार बार नमस्कार बार नमस्कार बार नमस्कार है । परब्रह्म स्वरूपिणी मां काली आपको बार बार प्रणाम आपको बार प्रणाम आपको बार बार प्रणाम है । आत्म स्वरूपिणी मां काली आपको बार बार नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार बार नमस्कार। विराट स्वरुपिणी मां काली आपको हर रूप में नमस्कार आपको हर दिशा से नमस्कार आपको अनंत बार नमस्कार है विक्राल स्वरूपिणी मां काली आपकी जय आपकी जय हो । नर मुंडो की माला धारण करने वाली माता आपकी जय हो मृत्यु को भी मार भगाने वाली माता आपकी जय हो आपकी सदा जय हो नारियों की रक्षा करने वाली माता आपकी जय ही आपकी जय हो । अपने खंडा से सम्पूर्ण जगत के संकटों का नाश करने वाली माता आपकी जय आपकी जय हो आपकी जय हो । स्त्रियों में पतिव्रता स्वरुप में स्थित रहने वाली माता काली आपकी जय हो आपकी जय हो आपकी जय हो । महाविद्या ब्रह्म विद्या आत्म विद्या स्वरूपिणी माता आपकी जय हो आपकी जय हो आपकी सदा जय हो आपके चरणो मे बार बार नमस्कार माता चंडीके आपको बार बार प्रणाम । – श्रीराम सेवक 🙏🙏🙏 🙏🌷♥️🙏♥️🌷🙏🌷🙏♥️🌷🙏♥️🌷

नाम जप किस प्रकार होना चाहिए ।

प्रश्न . नाम किस प्रकार जप होना चाहिए ? जिससे हमे लाभ हो ? उत्तर:– सबसे पहले नाम जप जैसे भी हो लाभ होता ही है ... फिर भी आप जानने के इक्ष...