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शुक्रवार, 26 मई 2023

हरि जी की कृतज्ञता पूर्वक स्तुति

हरि जी की कृतज्ञता पूर्वक गुणगान हे हरि एक तू ही इस दास का सहारा है हे हरि एक मात्र तू ही सब का दिशा है तू ही माया और माया से परे है । हे गुरुदेव मैं ने सदा तेरा तिरस्कार किया । मैं ने कभी तुझे अपने सर से नही नवाया । हे गोबिंद एक तू इस अर्जुन का सारथी है । अपने अंतः कारण में मैं ने कभी तेरी आवाज न सुनी । बाहर सदा माया के द्वारा ठगा गया । माया के वशीभूत होकर मैं ने तुझे कभी नही पढ़ा । तू माया है तू ही माया से पड़े है। हे श्रीराम हे गोबिंद तू मुझ में स्थित होकर मेरे मैले मन को निर्मल बना । तू सब को जीवन दान देता है । तू ही सब की रक्षा करता है । मैं ने तुझे कभी नही धयाया। सदा मैं झूठे संसार को अपना सहारा समझता रहा । तू ही अंतः करण में स्थित होकर जीवो को अपने माया के द्वारा नचाता है । मैं तो तेरे चरणो का ऋणी हूं । तेरा सब कुछ तुझे अर्पण कर निश्चिंत हूं । तुझे जैसे अच्छा लगता है वैसा कर । हे विष्णो हे एक तू ही मुझ हारे हुए के हरि है । तू ही इस अर्जुन के अंतः स्थित कलयुग रूपी सेना का नाश करने में समर्थ है । जीवन के जुवा में तू ही हार और जीत है । ये अर्जुन तेरा मुख देख कर जीता है तेरी दया के भीख से ही तुझे सब रूपो में व्याप्त स्मरण करने में समर्थ हुआ है । तुझे अपने अंतः करण से लेकर सभी प्राणियों के हृदय में स्थित बार बार नमस्कार करता हूं। तुझे जैसा अच्छा लगे वैसा कर । मैं ने स्वयं को तुम्हे सौप दिया। मैं ने स्वयं को तुझ अनंत संसार में बहुत ढूंढा पर उसकी कोई थाह पता न लगी।। । अब ये तेरा दास हार मान तेरे दिव्य कर्मो को भांपने में असमर्थ है । इस दास के अंतः कारण में स्थित होकर भीतर जमे मैल को अपनी शक्ति से साफ कर हृदय और मन को पवित्र बना दे । जहां जाऊ तो वहां गंगाजल जैसी पवित्रता हो । जहां जाऊं तेरा ही गुण गाकर तेरे नाम का बार बार रसपान करू । तू ही इस दास दोष को प्रेम की सरोवर में नहलाता है । हे कृष्ण हे श्याम सुंदर हे मोहन हे राधा पति हे गोपी मैया के प्रीतम हे मीरा माई के प्रभु मैं भी तेरे प्रेम में बावड़ा हो गया हूं । ये दुनिया अब कुछ भी उसकी फरवाह न रही। हे अंतर्यामी हे लक्ष्मी पति आदि नारायण हे श्याम सुंदर जहां जाऊं तेरा ही गुण गाकर तेरे नाम का बार बार रसपान करू । तू ही इस दास को प्रेम की सरोवर में नहलाता है। तू ही मुझ पतित को प्रेम रस का अमृत पान करा पवित्र करता है । हे कृष्ण हे श्याम सुंदर हे मोहन हे राधा मैया के कान्हा , हे गोपी मैया के प्रीतम नटनागर हे मीरा मैया गिरधर गोपाल हे सूरदास के हृदय कमल हे नानक के स्वामी मैं कुछ नही करता जो करता है तू ही करता है। मुझे तेरे उपर पुरा भरोसा है तू हमेशा पाप से बचाता है । ये जीव माया के वशीभूत कर अपना छोटा संसार में फसा है । वो अपने परिवार में तुझे अंतर्यामी को न देखकर भूल कर बैठता है तू तो सर्व्यपत है। मैं ने तेरी कृपा से कर्म काण्ड भी देखे । जब तक मन के मैल न जाएं । तब तक मन के भूमि में पाप रूपी विचार , विकार , भाव ,स्वभाव नहीं मिटाए जा सकते । न ही कोई निर्मल मन बीना (कृतज्ञता पूर्वक , अभिमान रहित होकर पूजा पाठ तीर्थ हवन के क्रियाओं आदी में कृतज्ञ भाव) हे दीन दयाल प्रभु मेरे अहम का नाश करो । मुझे तेरे सिवाय और कुछ नही पता । तू ही जल रूप में प्राणियों का प्यास बुझाता है तू ही भोजन रूप में प्राणियों का पालन करता है तू ही जल बरसाता है तू बिजली चमकाता है । तू ही पृथ्वि को निमित्त बना कर अन्न उत्पन करता है । मैं ने तुझे इस रूप में कभी नही याद किया । तू खरबों सूर्य चंद्र ग्रह नक्षत्र और संपूर्ण जगत को अपने एक अंश में धारण कर स्थित है । मेरी क्या औकाद तुझे अपनी छोटी बुद्धि से तेरे थाह पता का विचार करू। मैं तो सदा तेरा ऋणी रहूंगा । तू ही मुझ में प्राण अपान और समान वायु है । तू ही परब्रह्म है तू ही आदि वैष्णव आदि गुरु महादेव का स्वामि है । तू स्वयं आदि गुरु सदा शिव के रूप में स्थित हैं । तू ही विद्वानों के हृदय में विज्ञान और ज्ञान स्वरूप में प्रतिष्ठित हैं । हे मुरली मनोहर तू ही हजार महाकाल को अपने जीभा से चाटता है । तू सभी विकारों से रहित है तू अनंत गुणों और सभी कालाओ से संपन्न है। एक तू ही त्रिदेवो और उनकी शक्तियों के रूप में स्थित होकर जीवो को उत्पन्न ,पालन पोषण और संहार करता हैं । हे माधव तू ने जितना समर्थ दिया तेरा ये दास उतने से ही तुझे ध्याता है । मेरी ये भौतिक नेत्र तेरे तेज को संभालने में असमर्थ है । मेरी अपनी कोई दिव्य शक्ति नही है । मेरी अपनी कोई भी चमत्कारिक शक्ति नही । न तेरे द्वारा दिया हूवा कोई सिद्धि कोई चाहता है तू ने इस दास को जितना दिया है ये दास सदा इतने में ही संतुष्ट है । ये दास तेरे करुणा मय प्रेम सागर में डूब कर तेरे चरण का आश्रय लिया है । हे प्यारे मोहन तू मैं तेरा ही लाल हूं । तू सदा सब की देखभाल करने वाला है । ये दास तुझे बार बार प्रणाम करता हैं । – श्रीरामभक्त (वत्स)

नाम जप किस प्रकार होना चाहिए ।

प्रश्न . नाम किस प्रकार जप होना चाहिए ? जिससे हमे लाभ हो ? उत्तर:– सबसे पहले नाम जप जैसे भी हो लाभ होता ही है ... फिर भी आप जानने के इक्ष...