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गुरुवार, 22 सितंबर 2022

कृष्ण रासलीला कोई कामुक भोग नही अपितु एक रहस्य है।


6 वर्ष 9 माह की आयु में कालिया नाग का घमंड चूर करना।

राजा परीक्षित ने यहां प्रश्न कर दिया- शुकदेवजी से पूछते हैं गुरुदेव! मेरी समझ में नहीं आया, सज्जनों! बहुत बहुत ध्यान से पढ़े, परीक्षित कहते हैं- श्रीकृष्ण ने परायी स्त्रियों के साथ रास किया, परायी स्त्रियों के गले में गलबहियाँ डालकर कृष्ण नाचे, ये कहां का धर्म है? मेरी समझ में नहीं आया?


परीक्षित के समय में कलयुग आ गया था, परीक्षित कहते हैं- कलयुग आगे आ रहा है, शुकदेवजी बोले- अब तो घोर कलियुग आने वाला है और कलयुग के लोगों को तो जरा सी बात चाहिये, फिर देखों, शास्त्रार्थ पर उतर आते हैं- ऐसा क्यों लिखा? ऐसा क्यों किया? मनुस्मृति में लिखा है कि धर्म का तत्व गुफा में छुपा हुआ है, इसलिये बड़े जिस रास्ते से जायें, छोटों को उसी रास्ते से जाना चाहिये।


ईश्वर अंश जीव अविनाशी।

चेतन अमल सहज सुखराशी।।


हम लोग ईश्वर के अंश हैं, जीव ईश्वर का दश है तो कलयुग के लोगों को लीक प्वाइंट मिल गया, ऐसे ही जो ईश्वर कोटि के पुरूष होते हैं, यदि धर्म के विपरीत भी वो कोई काम करे, उन्हें कोई दोष नहीं लगता, क्योंकि वे ईश्वर है, कर्तु, अकर्तु अन्यथा "कर्तु समर्थ ईश्वरः" ईश्वर वो है जो नहीं करने पर भी सब कुछ करे और करने के बाद भी कुछ नहीं करे।


नैतत् समाचरेज्जातु मनसापि ह्रानीश्वरः।

विनश्यत्याचरन् मौढयाधथा रूद्रोऽब्धिजं विषम्।।


दूसरी बात- तुमने कहां, जो ईश्वर ने किया वो हम करेंगे, मैं इसका विरोध करता हूँ, शुकदेवजी कहते हैं- जो ईश्वर होता है उनका अनुकरण हमें कभी नहीं करना चाहिये, तुम ये बताओ शंकरजी कौन है? परीक्षित ने कहा शंकरजी ईश्वर है, तुम कहते हो- ईश्वर ने जो किया वो हम करेंगे तो समुद्र में से जितना जहर निकला था, पूरे जहर को शंकरजी पी गये।


शंकरजी ईश्वर है इसलिये दस-बीस हजार टन जहर पी गये, तुम उनके अंश हो तो तुम तौले-दो तौले ही पीकर देखो, शिवजी ने विष पी लिया, उन्हें बुखार भी नहीं आया और हम एक बूंद भी विषपान करेंगे तो डेढ़ मिनट में ही हमारा राम नाम सत् हो जायेगा, जो कार्य ईश्वर ने किया वो हम कैसे कर सकते हैं।


ईश्वराणां वचः सत्यं तथैवाचरितं क्वचित्।

तेषां यत् स्ववचोयुक्तं बुद्धिमांस्तत् समाचरेत्।।


ईश्वर के वचन को मानो, ईश्वर के वचन सत्य है, देखो सज्जनों! रामजी और कृष्णजी के चरित्र में अन्तर क्या है? जो रामजी ने किया है वो हम कर सकते हैं और कृष्णजी ने जो कहा वो हम कर सकते हैं, रामजी के किये हुए को करो और कृष्णजी के कहे हुए को करो।


कृष्णजी के किये हुए को हम नहीं कर सकते, क्योंकि राम का जो चरित्र है वो विशुद्ध मानव का चरित्र है और कृष्णजी का जो चरित्र है वो विशुद्ध ईश्वरी योगेश्वर का चरित्र है, दोनों ही भगवान् हैं, लेकिन रामजी के चरित्र में मानवता का प्रदर्शन ज्यादा है और कृष्णजी के चरित्र योगेश्वरता का प्रदर्शन है।


प्रातः काल उठ के रघुनाथा।

मात-पिता गुरु नावहिं माथा।।


रघुवर प्रातः उठकर माता-पिता गुरुजनों को प्रणाम करते हैं, ये तो काम हम कर सकते हैं कि नहीं? हम भी कर सकते हैं और सब को करना ही चाहिये, लेकिन सात दिन के कृष्ण ने पूतना को मार दिया, ये तो हम नहीं कर सकते, छः महीना के कृष्ण ने शकटासुर मार दिया, ये तो हम नहीं कर सकते, पूरे ब्रजमंडल में आग लग गयी और ब्रजवासीयों के देखते-देखते कृष्ण ने उस दावाग्नि का पान कर लिया, ये हम कर सकते हैं क्या? 


कृष्ण ने लाखों गोपियों के साथ रास किया, उसे हम नहीं कर सकते, शुकदेवजी कहते हैं- यह कोई स्त्री-पुरुष का मिलन नहीं था, जीव और ईश्वर का मिलन था, यह रासलीला छः महीनों तक चली थी, क्या छः-छः महीनों तक ब्रज गोपियाँ अपने घर से बाहर रह सकती थी, इसी बात से सिद्ध होता है कि यह तो जीव का प्रभु से मिलन था।


हम कहते हैं कि हम ईश्वर के अंश हैं, इस पर भी मैं यह कहना चाहता हूं, हम जानते हैं अंश का अर्थ होता है थोड़ा यानी छोटा जैसे हम लोग गंगाजी में नहाते हैं, गंगा स्नान करते वक्त हमारे मुंह से निकलता है हर-हर गंगे, हर-हर गंगे, यह जानते हुए भी कि भारत के जितने भी महानगर है, उन ज्यादातर महानगरों की सारी गंदगी गंगाजी में ही जाती है।


चाहे वो रूद्रप्रयाग हो या उत्तरकाशी हो, हरिद्वार हो या देवप्रयाग, ऋषिकेश हो या प्रयाग, सारा गंदा पानी गंगाजी में जाता है फिर भी हम गंगा स्नान करते हैं और बोलते हैं हर-हर गंगे•• क्यों? क्योंकि हम जानते हैं, इन सारे नगरों की गंदगी मिलकर भी गंगा को गंदा नहीं कर सकती, गंगा विशाल है, गंगा महान् है।


लेकिन आपने कहा- मोतीभाई गंगा स्नान करने चलिये, हमने गंगा स्नान करते-करते सोचा कि शालिग्रामजी की सेवा के लिए गंगाजल ले चलूं, सो मैंने एक चांदी की कटोरी में अढ़ाई सौ ग्राम गंगाजल भी लिया, स्नान करके लौटे तो धर्मशाला के कमरे का ताला खोलने के लिये मैंने गंगाजल की कटोरी नीचे रख दी, पीछे से गंदे मुँह वाला सूअर उस गंगाजल की कटोरी में मुंह लगाकर आधा गंगाजल तो पी गया।


मैंने देखा तो मन खिन्न हो गया, तो सज्जनों! अब बताओ कि क्या उस बचे हुए गंगाजल से मैं अपने शालिग्रामजी भगवान् को स्नान कराऊँ या नहीं? नहीं कराऊँगा, क्योंकि सूअर का मुंह लग जाने से वो गंगाजल गंदा हो गया, और बहती हुई गंगा में तो पूरा सूअर ही डूब जाये तो कोई असर नहीं होता, इसी कटोरी से मुंह लगाया तो असर क्यों हुआ? क्योंकि बहती हुई गंगा विशाल है और कटोरी का गंगाजल अंश है, तो जो ताकत उस विशाल गंगा में है वो अंश में नहीं रही।


इसलिये ईश्वर जो विशाल है और हम ईश्वर के अंश हैं, अंश होने के नाते जो कार्य ईश्वर करता है वो हम कैसे कर सकते हैं? इसलिये ईश्वर के चरित्र को प्रणाम करो, ईश्वर के चरित्र का वंदन करो, दूसरी बात- कुछ नास्तिक लोगों को ये कामी पुरुष की सी लीला लगती है, नहीं-नहीं कृष्ण ने जो गोपियों के साथ जो रास किया ये काम लीला नहीं- "का विजय प्रख्यापनार्थ सेयं रासलीला" काम को जीतने के लिये प्रभु ने रासलीला की।


कोई कहता है हम हलवा नहीं खाते, अरे, खाओगे कहाँ से तुम्हें मिलता ही नहीं है, नहीं खाना तो वो है जो मिलने पर भी इच्छा नहीं रहे, कहते हो कि हम तो ब्रह्मचारी है, जब शादी किसी ने करवाई नहीं, अपनी बेटी किसी ने दी ही नहीं, सगाई वाला कोई आया ही नहीं तो ब्रह्मचारी तो अपने आप हो गये।


नैष्ठिक ब्रह्मचारी सिवाय कृष्ण के किसी और के चरित्र में नहीं है, कृष्ण ने कामदेव से कहा- कोपीन पहन कर जंगल में समाधि लगाकर तो काम को सभी जीतते है, लेकिन असंख्य सुंदरी नारियों के गले में हाथ डालकर रासविहार करके भी मैं तुम पर विजय प्राप्त करूँगा, ये तो काम को जीतने की है रासलीला, इसलिये तो प्रभु ने काम को उल्टा लटका दिया आकाश में।


गोपियाँ कृष्ण के संग रास कर रही थी, वे तो वेद के मंत्र थे साक्षात्, जीव है गोपी और ईश्वर है स्वयं श्रीकृष्ण, तो जीव और ईश्वर का जो विशुद्ध मिलन है उसी को हम रास कहते हैं, ये काम लीला नहीं, काम को जीतने वाली लीला है, काम के मन में अभिमान था कि मैंने सबको जीत लिया, ब्रह्मा को जीत लिया, वरूण को जीत लिया, कुबेर को जीत लिया, यम को जीत लिया, वो योगेश्वर कृष्ण को जीतना चाहता था।


प्रभु ने असंख्य सुंदरी गोपियों के बीच रहकर भी काम को जीता, मन और इन्द्रियों पर जिसका नियंत्रण है उसे कोई विचलित नहीं कर सकता, इस रास लीला के प्रसंग को सुनने का मतलब क्या है? रास के मंगलमय् प्रसंग को जो व्यक्ति सुनते है, पढ़ते है और पढ़कर और चिन्तन के द्वारा इस काम विजय को जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं उन व्यक्तियों के ह्रदय में भक्ति प्रगट हो जाती है, और अंत में गोविन्द के चरणों में प्रीति हो जाती है, और ह्रदय का सबसे बड़ा रोग जो काम है वो काम हमेशा के लिये निकल जाता है।


बताओं, जिस रासलीला को सुनने से या पढ़ने से मन का काम निकल जाये, वो स्वयं कामलीला कैसे हो सकती है? परीक्षित के मन का संदेह दूर हो गया, गोविन्द ब्रजवासीयों के वश में है, इनका प्रेम इतना अगाध सागर है कि ब्रजवासीयों के प्रेम के सागर में ब्रह्मा भी गोता लगाये तो थाह नहीं पा सकते, विधाता में सामर्थ्य नहीं है थाह पाने की, एक अलौकिक बात- यहाॅ गोविन्द से मिलना भी है, गोविन्द से मिलन की आकांक्षा भी है तो गोविन्द के प्रति आशीर्वाद का भाव भी है।

 *8 वर्ष की आयु में काम देवता का अभिमान तोड़ दिया । काम देवता ने अपने पांच शक्तिशाली वाणो से पूरी शक्ति लगा दी किंतु भगवान कृष्ण को काम भाव से प्रभावित न कर सके। वहां अलग ही दृश्य दिखने को मिला.. कोई गोपियां कृष्ण का रूप हो जाती और दूसरी गोपियां के संग नृत्य संगीत करने लगती, कोई गोपियां स्वयं को कृष्ण रूप देखकर आश्चर्य से अपनी सखी को कहती ये देखो मैं श्याम सुंदर कृष्ण हूं। ये सब देखते हुऐ काम देवता अचंभित हो गए। वो पहचान ही नही पा रहे थे इसमें असली कृष्ण कौन है। तब उन्हे ज्ञान हुआ। कृष्ण में तो सम्पूर्ण चराचर जगत है। ये लाखों गोपियां कृष्ण का ही रूप है। जो गोपियां वहां मौजूद थीं उसका शरीर उसी समय उसके घर पर भी था क्योंकि उस समय कोई माता पिता अपने बच्चे को रात्रि में नही निकलने देते । उसकी आत्मा परमात्मा के साथ स्थिर था। वो सब गोपियां पिछले जन्म में ऋषियों मुनि ही थे जो अपनी योग भक्ति के बौदौलत भगवान कृष्ण को प्राप्त हो चुके थे। जब भगवान अवतार लेते हैं तो उनके साथ उनके प्रेमी भक्त भी


अवतरित होते है। जैसे त्रेता युग में प्रभु श्री राम के साथ वानर के रूप में देव सेना अवतरित हुए थे। 






4 वर्ष 4 माह की आयु में अघाशुर वध।

7 वर्ष 2 माह की आयु में गोवर्धन पर्वत को अपने अंगूली पर धारण करना।

3 वर्ष की आयु में अग्निपान कर बृजवासियों की अग्नि से रक्षा करना।

11 वर्ष 1 माह की आयु में कंस के कुश्ती मैदान में भगवान कृष्ण द्वारा कालरीपट्टू ( मार्सल आर्ट) का जन्म ।

11 वर्ष 1 माह की आयु में कंस को उसके घर में घुस कर उसका वध करना ।

6 दिन पूर्ण होने बाद 7 वे दिन की आयु में पूतना वध अर्थात पूतना पर कृपा उसे स्वर्ग लोक भेजना।

कृष्ण गोपियों के कपड़े क्यों छुपाए ?

 



एक समय कुछ गोपियां स्नान करने के लिए यमुना नदी पहुंची । स्नान से पूर्व नदी के तट पर भागवती जगत जननी माता की मूरत बना कर प्रार्थना में उनसे कृष्ण जैसा पति मागने लगी। फिर वहां 5 वर्षीय कृष्ण सीघ्र ही पहुंचे और माता भागवती की मूर्ति और गोपियां के बीच खड़े होकर गोपियां से नटखटता पूर्वक पूछने लगे " क्यों री वानरी क्या मांग रही थीं माता से " अभी तो प्रार्थना कर रही, फिर मेरे घर जाके मैया से शिकायत करेगी "कान्हिया मुझे परेशान करता है।" रूक आज तुझे मज़ा चखाता हूं। इतना सुनते ही सभी गोपियां वहां से भाग निकली और नदी में जाकर स्नान करने लगीं, नदी या कहीं भी नग्न होकर स्नान करना वेद विरुद्ध महापाप है। शास्त्रों में इसकी घोर निन्दा की गई है। और जल भगवान कृष्ण का ही एक तत्व स्वरूप है जिस प्रकार अग्नि वायु पृथ्वी आकाश कृष्ण का ही पंच तत्व स्वरूप होता है उसी तरह ये नदी सागर और जल भी श्री कृष्ण का रूप है। वो सर्व्यपत है जब नदी में गोपियां स्नान करने गई थीं तब किशोर अवस्था होने के कारण उसे ज्ञान नही था नग्न होकर नदी जल में स्नान करना महापाप है। चाहे वो छोटा बच्चा ही क्यों न हों। भगवान कृष्ण ढूढते हुए नदी के किनारे पहुंचे गोपियों के कपड़े देखे उस कपड़े को छुपा दिया। स्वयं अंतर्ध्यान हो गए। जब गोपियां स्नान कर बाहर निकली तो उसके कपडे गायब थे अब वो शर्म के मारे नदी में फिर प्रवेश हो गई और जगत जननी माता से प्रार्थना करने लगी। क्योंकि कृष्ण सिर्फ विष्णु अवतार ही नही थे वो माता पार्वती का भी अवतार था । अर्थात परमात्मा तत्व एक ही है अनेक नही। जब गोपियां प्रार्थना कर थक गई कुछ भी संकेत न मिला तब उसे कृष्ण कभी जल में दिखते तो कभी पेड़ की टहनियों पर कभी नदी के तट पर दिखते और उनके साथ उसके कपडे।  


अब वो कृष्ण से क्षमा मागने लगी की अब से वो दुबारा ऐसा अपराध नही करेगी। शास्त्रविरुद्ध कर्म का त्याग करेगी । क्षमा का भाव आते ही उसके कपडे जहां वो रखी उसी स्थान पर फिर से पड़ा हुआ मिला। 


गोपियों को ज्ञान हो गया की परमात्मा चरण को वो तभी प्राप्त कर सकेगी जब वो शास्त्र विरुद्ध कर्म का त्याग करेगी। अन्यथा जन्म जन्मांतर तरह तरह के अंजाने में पाप के बंधन के कारण संसार बंधन भी बना रहेगा शास्त्र विरुद्ध कर्म करते हुए जीव कभी पाप से मुक्त नही हो सकता। उसे एक दिन परमात्मा की शरण जाना ही होगा।

नाम जप किस प्रकार होना चाहिए ।

प्रश्न . नाम किस प्रकार जप होना चाहिए ? जिससे हमे लाभ हो ? उत्तर:– सबसे पहले नाम जप जैसे भी हो लाभ होता ही है ... फिर भी आप जानने के इक्ष...