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सोमवार, 22 अगस्त 2022

शंका का त्याग क्यों आवश्यक हैं ?

 


*शंका* से शोक,निराशा , अंध विश्वास और दुःख उत्पन्न होता है...कोई भी कर्म हमारे मन में उठे विचार से प्रारम्भ होता है... हम जिस प्रकार के विचार पर अपने मन को केन्द्रित करेंगे उसी प्रकार की भावना हमारे अंदर आयेंगे और यही भावना हमे परिणाम के रूप मे शीघ्र ही दुःख या सुख का अनुभव कराता है यही सुख दुःख भावना और विचार हमारे आगे के भविष्य को निर्माण करता है यदि हम दुःख देने वाले विचार पर ध्यान केंद्रित करते है तो हमारे साथ और ऐसी घटना होती है जिससे हमे दुःख ही मिलता है प्रभु की रचना ऐसी है जीव हमेशा दुखी नहीं रह सकता ... जीव अज्ञानता  वश  दुःख  अनुभव करें जब दुःख  से परेसान  हो जाते तब  वो अपना ध्यान कहीं और लगाने का प्रयास करते है जिससे वो शांति का अनुभव कर सके..... हमे हमेशा शांति का ही अनुभव करना चाहिए... चाहे वो हमे बाहरी दुनिया मे न भी दिखे... हमारी शांति हमारे ह्रदय में निवास करने वाले श्री कृष्ण के पास है। वो प्रत्यक्ष आनंद स्वरुप है वो साक्षात शांत स्वरुप हैं उनके पास आपको देने के लिए दुनिया भर की संपत्ति है कोई भी जीव संपत्ति अर्जन इसलिए करना चाहता है क्योंकि वो जिवन में आनंद और शांति का अनुभव करें ... किन्तु जीव लाख सम्पति अर्जन करने उपरांत भी उन्हें जो चाहिए था वो नहीं मिल रहा है वो रजोगुण और तमोगुण से प्रभावित होकर जिस आनंद और शांति के लिए सम्पत्ति अर्जन किए थे वो काम नहीं आ रहा है... इसलिए भगवान कहते है जीवों को निस्वार्थ होकर अपने भीतर बसे आदि नारायण (श्री कृष्ण) की शरण में जाये... सोते - जागते निरन्तर अन्तर्यामी श्री कृष्ण में मन लगाये जब ऐसा हो जाता तब भगवान कृष्ण स्वयं भगवद्गीता 9.22 के अनुसार जीवों के योगक्षेम(अभाव की पूर्ति करना तथा प्राप्त वस्तु की रक्षा करना।) को वाहन करते हैं ... जब हमारा विश्वास परमात्मा पर से डगमग होने लगे तब  हमे  ईश्वर को पंच भूत के रूप मे देखना चाहिए.... हम जैसी कल्पना पर विश्वास करेंगे परिणाम उसी से मिला जुला मिलता है...इसलिए हमे स्वयं को परमात्मा प्राप्त के लिए कल्पना करना चाहिए और उस पर विश्वास रखना चाहिए ऐसे विश्वास रखना चाहिए जैसे आप सच मे परमात्मा की सेवा मे लिन है उनके अनन्त गुणों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए... उनके प्रति कृतज्ञता (एहसानमंद)महसूस करें उन्होंने हमे अति दुर्लभ मनुष्य शरीर दिया है खाने को भोजन दिया है. रहने को घर दिया है. जिससे  करोडों जन्मों से भटकते हुए हम जीवों  शांति और मुक्ति प्राप्त कर सके .... कृतज्ञता ही भक्ति है इसमे ऐसी अनंत शक्ति छिपी है हम अक्सर देखते है देवता मनुष्य दानव इसी कृतज्ञता की सहायता से परमात्मा को प्रशन्न करते हैं और अपने लिए वरदान प्राप्त करते हैं..आप जिस चीज के लिए परमात्मा के प्रति कृतज्ञता महसूस करेंगे वो अक्सर बढ़ता हुआ नजर आयेगा... यदि आप भविष्य के लिए शोक कर रहे हैं तो शीघ्र ही शोक का त्याग करें और अच्छे भविष्य की कल्पना कर परमात्मा के प्रति कृतज्ञता महसूस करें जैसे आपको उसी क्षण मिल गया हो उन्हें धन्यावाद कहिए उनके गुणों को याद कीजिए अपने भविष्य को उनके उपर छोड़ दे... फिर निश्चिंत होकर अपने दैनिक कार्यो मे लग जाये ..... विश्वास करे और परमात्मा के प्रति कृतज्ञता भक्ति प्रेम की सम्पत्ति मे वृद्धि कीजिए..करोडों जन्मों से जो भटक रहे हो आपको शांति इसी जन्म मे मिलेगी....

 अच्युतम केशवम राम नारायणम

जानकी वल्लभम कृष्ण दामोदरम
🙏❤️🌷🔱🚩

 - Rahul jha 


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प्रश्न . नाम किस प्रकार जप होना चाहिए ? जिससे हमे लाभ हो ? उत्तर:– सबसे पहले नाम जप जैसे भी हो लाभ होता ही है ... फिर भी आप जानने के इक्ष...