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मंगलवार, 27 सितंबर 2022

कृतज्ञता का महत्व 2

{ह्रीं}
*🙏🌺⚔️❤️ ॐ श्रीं दुर्गाये नमः ❤️🔱🌺🙏*

*माता दुर्गा की दया कृपा से उनके द्वारा प्रेरित होने पर मैं दुर्गा पाठ सपस्ती का सार बताना चाहूंगा। जब आप इस सार को समझ जायेंगे। तब इस के लिए मैया को गहराई से धन्यवाद करे क्योंकि उन्ही की कृपा दृष्टि से इस पाठ के विज्ञान का रहस्य समझ पाया हूं। उन्ही की दी हुई बुद्धि से समझ पाया हूं। नही तो हजार बार पढ़ कर भी कोई इस सपस्ती को समझने में असमर्थ हो जाता है। उन्ही की दी शक्ती से मैं राहुल झा ये सार लिख रहा हूं।* 

*दुर्गा सपस्ती का पाठ करने से पहले उसे समझना अवस्यक है। तभी हमारे मोह का नाश और उसका फल संभव है।*

*प्राचीन समय में पूरी पृथ्वी पर सनातन धर्म ही था। उसी सनातनी में एक राजा सुरथ नामक एक राजा थे वो पूरी पृथ्वी के राजा थे। जब उन्हे परमात्मा के प्रति कृतज्ञ होने का ज्ञान नही था तब उनके शत्रु धीरे धीरे उनके राज्य को हड़पने लगे और शत्रु राजा से हारने लगे फिर एक समय ऐसा आया पूरी पृथ्वी से सिर्फ अपने छोटे राज्य का राजा बनकर रह गए। उसमे भी उनके मंत्री महामंत्री आदि उनके शत्रुओं के प्रभाव में आकर पीठ पीछे उनके विरुद्ध षडयंत्र रचने लगे ये सब देख राजा स्वयं की रक्षा के लिए अपना राज्य त्याग कर घना वन की ओर चल दिए। चलते चलते उन्हें एक नदी और ऋषि की कुटिया मिली। राजा ऋषि के शरणागत होकर वही अपना डेरा बना लिया और रहने लगे। एक दिन राजा सूरथ एक वैश्य को देखा वो काफ़ी उदास होकर शोक में डूबा था। राजा सुरथ उसके समीप जाकर उसके दुःख का कारण पूछने लगे। तभी उस वैश्य ने कहा मेरे द्वारा अर्जित किए धन समाप्ति के लालच में आकर मेरी पत्नी बेटे ने मुझे घर से निकाल दिया फिर भी मेरा मोह उससे से नही हटता जबकि जानता हूं उन्हे हम से संबंध नही था अपितु उनका सम्बन्ध मेरे धन संपत्ति से था ये सब जानकर कर भी उसके प्रति मेरा मोह नही हटता।*

*वैश्य का ये कारण जानकर धर्मात्मा राजा को स्वयं के राज्य की याद आ गई और वो भी मोह में पड़ गए और आश्चर्य में पड़कर वो अपने प्यारे प्रजा की हाल के बाड़े में सोच कर चिंतित हो गए।*

*उन्होंने वैश्य को अपने साथ ऋषि के समीप लाया और अपनी और उस वैश्य की व्यथा सुनाई और अपने मोह को लेकर प्रश्न किया – हे प्रभु जो राज मेरे हाथ निकल चुका है अब वो वास्तव में हमारा नही है ये जानकर भी मैं क्यो अपने प्यारे प्रजा के बारे में चिंतित हूं। उन्हे दुष्ट राजा न जाने किस किस प्रकार से प्रताड़ना करते होंगे। मेरे हाथी घोड़े को परतंत्र होकर न जाने किन किन कष्टों को शाहना परता होगा। ये सब सोच मैं अपने प्रजा के लिए बहुत दुःख को प्राप्त हुआ हुआ हूं प्रभू मेरे मोह के नाश का मार्ग हो तो बताए।*

*तभी ऋषि बोले: हे राजन ये पूरी सृष्टि महामाया का ही स्वरूप है उसी ने इस जगत को धारण कर रखा है वहीं इस अनंत ब्रह्मांड को धारण कर स्थित है उसी ने जगत को मोह में डाल रखा है ।वो जब चाहती तब राजा बना देती है जब चाहती है तब राजा को रंक बना देती है। वो जब चाहती है भिक्षुक को दुनियां का सम्राट बना देती और वो जब चाहती है तब सम्राट को भिक्षुक बना देती है। ये भगवती आदिशक्ति महाज्ञानियों के चित्त को भी बल पूर्वक खीच कर मोह डाल देती है। ये श्री हरि विष्णु के चित्त को भी बल पूर्वक खीच कर मोह रूपी नींद में सुला देती है। पूर्व काल में विष्णु जी के कान से दो दानव उत्पन्न हुए। और ब्रम्हा जी को खाने के लिए दौर पड़े तभी ब्रम्हा जी स्वयं की रक्षा के लिए श्री हरि विष्णु जी को जगाने बहुत प्रयत्न किया किंतु श्री विष्णु जी को जगाने में असमर्थ रहे। फिर उन्होंने उनके योगनिद्रा रुपी भगवती महामाया का ध्यान किया। कृतज्ञता पूर्वक उनके गुणों के साथ उनकी स्तुति करना सुरू किया। फिर माता भगवती विष्णु जी के योगनिंद्र रूपी से निकल कर आकाश में स्थित हो गई और विष्णु जी जाग गए। तभी उन्होंने ने ब्रम्हा और उस मधु कैटभ नामक दो दानव को देखा । फिर विष्णु जी ने ब्रम्हा जी को बचाने के उद्देश्य से मधु – कैटभ से कई हजार वर्षों तक युद्ध किया अंत में माता भगवती ने दोनो दानव को मोह में दाल दिया। दोनो मोहित दानव विष्णु जी के पराक्रम से प्रसन्न होकर कहने लगा मैं तुम्हारी युद्ध कौशल से प्रसन्न हूं तुम वर मांगो क्या चाहते हो तभी भगवान विष्णु ने कहा यदि तुम वर देना ही चाहते हो तो अभी मेरे हाथों से मारा जाओ तभी दोनों असुरों ने कहा जहां पृथ्वी सुखी हो हमारी मृत्यु वहीं पर होगी तभी भगवान विष्णु ने उस दोनों को पकड़ कर अपने जांघ पर रखा और अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया इसी के साथ ब्रह्मा जी स्वयं को रक्षा करने में सफल हुए ।*

*इसी तरह पूर्व काल देवताओं ने भी परमात्मा के प्रति कृतज्ञ न होकर अपना स्वर्ग और अपने अपने अधिकार को खो बैठे महिषासुर को मारने में ब्रह्मा विष्णु महेश भी असमर्थ हो चुके थे क्योंकि उसकी मृत्यु एक स्त्री के हाथों लिखी थी भगवती के द्वारा ब्रह्मा जी की बुद्धि मोहित होकर उनके मुख से महिषासुर को वरदान दे रखा था तभी सभी देवताओं ने भगवती महामाया को याद करने लगे महामाया प्रकट होकर महिषासुर को नाश किया इसी तरह चंड मुंड रक्तबीज आदि का विनाश हुआ देवता जब-जब अभिमान के वशीभूत होकर परमात्मा के प्रति कृतज्ञ ना हुए तब तब उनके स्वर्ग आदि पर से अधिकार हट गया फिर जब जब परमात्मा के प्रति अर्थात माता दुर्गा के प्रति भगवती मूल प्राकृतिक के प्रति कृतज्ञ होने लगे तब तब प्रकट होकर उनके शत्रुओं का नाश करती और उनके अधिकार को दोबारा देकर उन्हें वरदान दिया करती। हे राजा सूरत आप उसी भगवती की शरण में जाओ पूर्ण रूप से स्वयं को समर्पित कर दो उनके प्रति कृतज्ञ हो जाओ वह जो देती है उसके लिए उसका स्तुति करते रहो भक्ति करते रहो वह स्वयं प्रसन्न होकर आपको मोह से मुक्त कर देगी आपके अधिकार को दोबारा देकर वरदान देगी तभी उस राजा और व्यस्य ने नवरात्रि के समय में 9 दिन व्रत पूरी जीवन में जो कुछ मिला उसके लिए भगवती महामाया को गहराई से धन्यवाद रूपी पूजा-पाठ स्तुति किया वह अपने अभिमान को त्याग अपनी माता सर्व स्वरूप में अपनी माता दुर्गा को ही देखने लगे तभी माता ने प्रकट होकर उन दोनों को इक्षित वरदान दिया और अंतर्ध्यान हो गई।*

*पूरे सप्तशती पाठ में हमने यही सीखा मनुष्य जीवन या देवता जीवन मैं कभी भी परमात्मा के प्रति कृतज्ञता को नहीं त्यागना चाहिए ना ही कभी अभिमान करना चाहिए हमें जो कुछ मिला उसके लिए परमात्मा को धन्यवाद करते रहना चाहिए भगवती माता को धन्यवाद करते रहना चाहिए हमारे शरीर आदि के लिए माता को धन्यवाद करते रहना चाहिए छोटी छोटी चीजों पर हमें धन्यवाद करते रहना चाहिए हम जितना प्रेम पूर्वक माता को कृतज्ञ भाव देंगे उतनी ही तीव्र गति से वह हमें अपने अधिकार को प्राप्त करेगी । ये सृष्टि का विज्ञान है। आप जब भी पाठ करे प्रार्थना करे तो 3,6,9 बार करें। ये सृष्टि का वैज्ञानिक सिक्योरिटी कोड है। सपस्ति पाठ के हर एक शब्दों में रहस्यमय जादू है। आप जब भी मैया से प्रार्थना करे तो पूरी भावना के साथ देवताओं की भांति, ब्रम्हा जी की भांति प्रार्थना करें । मैया के गुणों का बखान करें। आपका कृतज्ञ भाव ईधन की भांति है , आपका विचार किसी यान की भांति है। यदि ईंधन न हो तो यान एक पग भी आगे नही जा पाएगा। आप जो कुछ मैया से मागना चाहते हो उसके लिए पहले मैया के प्रति कृतज्ञ होना परेगा। इस संसार में आपको अभिमान का त्याग कर अपने को प्रभु का निमित्त मात्र बनकर जीना सीखना होगा।*

*आप जब भी प्रार्थना करें तो तो अपने साथ अन्य भक्तो के लिए प्रार्थना करें जैसे अर्गला स्त्रोत में अन्य भक्तो के लिए प्रार्थना किया गया है , जैसे 4 अध्याय के अंत में देवता गण मनुष्य के लिए मैया से वरदान मागते है। इनमे जीतना भी क्रिया करने को बताया हूं इसमें एक भी नहीं छुटना चाहिए सभी महत्त्वपूर्ण क्रिया है।*

🙏 *ॐ नमो माता दुर्गे* 🙏

    *🌺जय माता दी 🌺*
                 🪷
बागेश्वर धाम सरकार 

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