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शनिवार, 3 सितंबर 2022

चिन्तन का विषय:– चिन्तन करे और अपने सपने को पूरा करे ।

🌷श्री हरि 🌷 🔱 ॐ नमः शिवाय 🔱🚩 जय श्री राम🚩

 जो जिस जिस भाव का चिंतन ( स्मरण) करता है वो उस उस फल को प्राप्त होता है। एक भगवदभक्त इसलिए श्री भगवान को प्राप्त होता है। क्योंकि उसने अपने जीवन में सबसे ज्यादा भगवान का स्मरण किया। एक ईश्वर (शिव)भक्त ईश्वर को इसलिए प्राप्त होता है क्योंकि उसने शिव को याद किया। एक गरीब लड़का बड़ा होकर समाज का सबसे सफल व्यक्ति बनता है क्योंकि उसने जीवन में सबसे ज्यादा सफल होने के दृश्य का चिंतन किया । एक रोगी इसलिए स्वस्थ हुआ क्योंकि उसने स्वस्थ होने के दृश्य का चिंतन किया। एक सीधा बालक आगे जाकर अपराधी बन गया क्योंकि उसने अपने जीवन में सबसे ज्यादा अपराधी विचार या अपराधियों का चिंतन किया। हम हमेसा चिंतन करते है चाहे वो किसी भी मामले में हो हमारा पहला कर्म चिंतन करने से सुरु होता है उसके फल स्वरूप हम वैसे फल को प्राप्त करते हैं। इसलिए हमे विपरित परिस्थितियों में भी अपने मनचाही सपने के दृश्य का चिन्तन करते रहना चाहिए। हमे ऐसे मनचाही सपने का चिन्तन करना चाहिए जिससे किसी का नुकसान न हो नही तो सबसे पहले हमे नुकसान होगा । हमे हमेशा प्रभु के चरण का चिन्तन करते रहना चाहिए। हमे हमेशा प्रभु के नाम का चिन्तन करते रहना चाहिए। हमे हमेशा प्रभु से मिलने वाले दृश्य का चिन्तन करते रहना चाहिए। हमे हमेशा शान्ति, आनंद,सुख –समृद्धि और प्रभु भक्ति का चिन्तन करते रहना चाहिए। हमे हमेशा सफलता का चिन्तन करते रहना चाहिए। 

 — राहुल झा 

 न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्। 
 कार्यते ह्यश: कर्म सर्व प्रकृतिजैर्गुणै:।। 

 अर्थ: कोई भी मनुष्य क्षण भर भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। सभी प्राणी प्रकृति के अधीन हैं और प्रकृति अपने अनुसार हर प्राणी से कर्म करवाती है और उसके परिणाम भी देती है। 

 बुरे परिणामों के डर से अगर ये सोच लें कि हम कुछ नहीं करेंगे, तो ये हमारी मूर्खता है। खाली बैठे रहना भी एक तरह का कर्म ही है, जिसका परिणाम हमारी आर्थिक हानि, अपयश और समय की हानि के रुप में मिलता है। सारे जीव प्रकृति यानी परमात्मा के अधीन हैं, वो हमसे अपने अनुसार कर्म करवा ही लेगी। और उसका परिणाम भी मिलेगा ही। इसलिए कभी भी कर्म के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए, अपनी क्षमता और विवेक के आधार पर हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए। 

 ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। 
 मम वत्र्मानुवर्तन्ते मनुष्या पार्थ सर्वश:।। 

 अर्थ: हे अर्जुन। जो मनुष्य मुझे जिस प्रकार भजता है यानी जिस इच्छा से मेरा स्मरण करता है, उसी के अनुरूप मैं उसे फल प्रदान करता हूं। सभी लोग सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं। 

 इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण बता रहे हैं कि संसार में जो मनुष्य जैसा व्यवहार दूसरों के प्रति करता है, दूसरे भी उसी प्रकार का व्यवहार उसके साथ करते हैं। उदाहरण के तौर पर जो लोग भगवान का स्मरण मोक्ष प्राप्ति के लिए करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो किसी अन्य इच्छा से प्रभु का स्मरण करते हैं, उनकी वह इच्छाएं भी प्रभु कृपा से पूर्ण हो जाती है। कंस ने सदैव भगवान को मृत्यु के रूप में स्मरण किया। इसलिए भगवान ने उसे मृत्यु प्रदान की। हमें परमात्मा को वैसे ही याद करना चाहिए जिस रुप में हम उसे पाना चाहते हैं।

 य यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।
 तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित: ।।6।। 

 हे कुन्ती[1] पुत्र अर्जुन[2] ! यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है ।।8.6।।

 यान्ति देवव्रता देवान् पितृ़न्यान्ति पितृव्रताः। 
 भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।।9.25।। देवताओं को पूजने वाले देवताओ को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं, और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं।इसीलिये मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता ।।25।। 
 
– श्रीमद्भागवतगीता

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