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गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022

भोजन के लिए कृतज्ञता , अभ्यास – 9

 

भोजन के लिए कृतज्ञता



भोजन के लिए कृतज्ञता : भोजन करने से पहले धन्यवाद देना एक ऐसी परंपरा है, जो अनादि काल से चली आ रही है। प्राचीन भारत और मिस्र जैसे राष्ट्र में आज के समय से इक्कीसवीं सदी में जिंदगी की रफ़्तार इतनी तेज़ हो चुकी है कि लोग अक्सर भोजन के लिए धन्यवाद देने का समय नहीं निकाल पाते हैं। लेकिन खाने-पीने जैसे आसान काम का इस्तेमाल अगर आप कृतज्ञ होने के अवसर के रूप में करते हैं, तो इससे आपके जीवन में जादू कई गुना बढ़ जाएगा!


यदि आप उस समय के बारे में सोचते हैं, जब आपको सचमुच बहुत तेज़ भूख लग रही थी, तो आपको याद आएगा कि तब आप सामान्य ढंग से सोच भी नहीं पा रहे थे, ठीक से काम नहीं कर पा रहे थे, शरीर में कमज़ोरी महसूस हो रही थी, हो सकता है आप काँपने भी लगे हों, आपका दिमाग दुविधा में पड़ गया था और आपकी भावनाएँ रसातल को छूने लगी थीं। और यह सब चंद घंटों तक कुछ न खाने से ही हो सकता है। दरअसल, आपको जीने, सोचने और अच्छा महसूस करने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, इसलिए भोजन के लिए कृतज्ञ होना सचमुच बड़ी बात है।


भोजन के लिए अधिक कृतज्ञता महसूस करने की ख़ातिर एक पल का समय निकालें और उन सभी लोगों के बारे में सोचें, जिन्होंने आपके खाने के लिए भोजन उपलब्ध कराया। आपको ताज़े फल और सब्जियाँ मिलें, इसके लिए किसानों को फल और सब्जियाँ उगानी पड़ीं, उन्हें लगातार सींचना पड़ा और कई महीनों तक उनकी रक्षा करनी पड़ी, तब कहीं जाकर वे कटने के लिए तैयार हुईं। फिर फ़सल काटने वाले, पैक करने वाले, वितरण और परिवहन करने वाले लोग, जो दिन-रात बहुत लंबी दूरियाँ तय करते हैं। ये सभी लोग मिलकर पूरे सामंजस्य में काम करते हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो जाए कि हर फल और सब्ज़ी आप तक ताज़ी पहुँचे और साल भर उपलब्ध रहे।

भोजन के लिए कृतज्ञता

सब्जी अनाज उपलब्ध कराने वालों, वेटर , दूध-दही बेचने वालों, चाय-कॉफी उगाने वालों और सभी फूड पैकेजिंग कंपनियों के बारे में सोचें, जो हमारे भोजन को तैयार करने के लिए अथक श्रम करते हैं। दरअसल, विश्व का आहार उत्पादन एक अद्भुत ऑर्केस्ट्रा है, जो हर दिन होता है और यह समझ से परे है कि यह सब काम करता है, जब आप इस बारे में विचार करते हैं कि स्टोर्स, रेस्तराँओं, सुपरमार्केट्स, कॉफी हाउसेस, हवाई जहाजों, स्कूलों, अस्पतालों और संसार के हर घर के लिए भोजन और पेय पदार्थ की आपूर्ति को बनाए रखने में कितने सारे लोग शामिल होते हैं।


भोजन एक उपहार है! यह प्रकृति का उपहार है, क्योंकि यदि प्रकृति भोजन उगाने के लिए हमें मिट्टी, पोषक पदार्थ और पानी उपलब्ध न कराए, तो हममें से किसी के पास भी खाने के लिए कुछ न रहे। पानी के बिना कोई भोजन, वनस्पति, पशु या मानव जीवन संभव नहीं है। हम अपना भोजन पकाते समय, उगाते समय, बगीचे की देखभाल करते वक़्त और बाथरूम में पानी का इस्तेमाल करते हैं। हम हर वाहन में, अस्पतालों में, ईंधन, खनन और उत्पादन करने वाले उद्योगों में, परिवहन को संभव बनाने में, सड़कें बनाने में, कपड़े और संसार के हर उपभोक्ता उत्पाद तथा उपकरण बनाने में, प्लास्टिक, काँच व धातु बनाने में, जीवन बचाने वाली दवाएँ बनाने में और हमारे मकान तथा हर अन्य इमारत बनाने में पानी का इस्तेमाल करते हैं। और पानी हमारे शरीर को जीवित रखता है। पानी, पानी, जीवनदायक पानी!


वेदों में कई जगह जल की कृतज्ञता पूर्वक स्तुति की गाई है , भगवदगीता में स्वयं भगवान कृष्ण ने स्वयं को जल स्वरूप बताया है ।

भोजन और पानी के बिना हमारा क्या होगा? जाहिर है, हम इस संसार में रह ही नहीं पाएँगे। हमारा कोई परिजन या मित्र भी यहाँ नहीं रह पाएगा। हमें यह दिन नहीं मिलेगा और आने वाला कल भी नहीं। लेकिन हम इस सुंदर ग्रह पर एक साथ रह रहे हैं, जीवन को इसकी चुनौतियों और आनंददायी पलों के साथ जी रहे हैं, क्योंकि प्रकृति ने हमें भोजन और पानी का उपहार दिया है! कुछ भी खाने-पीने से पहले जादुई शब्द धन्यवाद कहना भोजन और पानी के चमत्कार को पहचानने और कृतज्ञ होने का कार्य है।


अविश्वसनीय बात यह है कि जब आप भोजन और पानी के लिए कृतज्ञ होते हैं, तो इससे केवल आपके जीवन पर ही असर नहीं होता; आपकी कृतज्ञता संसार की आपूर्ति पर भी असर डालती है। यदि पर्याप्त लोग भोजन और पानी के लिए कृतज्ञ महसूस करें, तो इससे दरअसल उन लोगों को मदद मिलेगी, जो भूख से दम तोड़ रहे हैं और बहुत अधिक ज़रूरतमंद हैं। आकर्षण के नियम के अनुसार तथा न्यूटन के क्रिया व प्रतिक्रिया के नियम के अनुसार सकल कृतज्ञता की क्रिया से समान मात्रा में प्रतिक्रिया उत्पन्न होगी, जो संसार के हर व्यक्ति के लिए भोजन और पानी की कमी की परिस्थितियों को बदल देगी।


इसके अलावा, भोजन के लिए कृतज्ञता आपके जीवन में जादू को क़ायम रखती है। यह आपकी हर प्रिय चीज़ में अपना सुखद सुनहरा धागा पिरो देगी, जिससे आप प्रेम करते हैं और जिसके आप सपने देख रहे हैं।



"नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौंदर्यरत्नाकरी।

निर्धूताखिल-घोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।

प्रालेयाचल-वंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी।

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपुर्णेश्वरी।।"

"अर्थात्- हे देवि अन्नपूर्णा ! आप सदैव सबका आनन्द बढ़ाया करती हो, आपने अपने हाथ में वर तथा अभय मुद्रा धारण की हैं, आप ही सौंदर्यरूप रत्नों की खान हो, आप ही भक्तगणों के समस्त पाप विनाश करके उनको पवित्र करती हो, आप साक्षात् माहेश्वरी हो और आपने ही हिमालय का वंश पवित्र किया है, आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी हो, आप अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।"


पुराने ज़माने में लोग यक़ीन करते थे कि जब वे अपने  पानी और भोजन के लिए कृतज्ञता के लिए कृतज्ञतावश प्रार्थना करते थे, तो इससे वह शुध्द हो जाता था। जब आप क्वांटम फिज़िक्स की प्रेक्षक प्रभाव जैसी नवीन अवधारणाओं और खोज को देखते हैं, तो पुराने ज़माने के लोग सही साबित हो सकते हैं। क्वांटम फिज़िक्स में प्रेक्षक प्रभाव बताता है कि अवलोकन की प्रक्रिया उस वस्तु या व्यक्ति में कई परिवर्तन कर देती है, जिसे देखा जा रहा है। कल्पना करें कि यदि अपने भोजन और पेय पदार्थ पर कृतज्ञता को केंद्रित करने से उनकी ऊर्जा संरचना बदल जाती है और वे शुध्द हो जाते हैं, तो आपके द्वारा खाई जाने वाली हर चीज़ आपके शरीर को सर्वश्रेष्ठ लाभ पहुँचाएगी!


भोजन और पेय पदार्थ में कृतज्ञता के जादू का अनुभव तत्काल करने का एक तरीका सचमुच उस चीज़ का स्वाद लेना है, जिसे आप खा पी रहे हैं। जब आप अपने भोजन या पेय पदार्थ का वक़ई स्वाद लेते हैं, तो आप दरअसल उनकी क़द्र कर रहे हैं या कृतज्ञ हो रहे हैं। प्रयोग के तौर पर, अगली बार जब आप कुछ खाए-पिएँ या मुँह में कुछ रखें, तो उसे निगलने से पहले अपने मुँह में भोजन या पानी के स्वाद पर ध्यान केंद्रित करें। आप पाऐंगे कि ऐसा करने पर स्वाद का वीस्फोट सा होता है। दूसरी ओर, जब आप ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं, तो स्वाद नाटकीय रूप से कम हो जाता है। यह एकाग्रता और कृतज्ञता की आपकी ऊर्जा ही है, जो स्वाद को तत्काल बढ़ा देती है! आज कुछ भी खाने-पीने से पहले, चाहे आप भोजन करें, फल खाएँ या नाश्ता करें या कोई चीज़ पिएँ, जिसमें पानी भी शामिल है, एक पल निकालकर उस चीज़ को देखें, जिसे आप खाने-पीने वाले हैं और मन ही मन या ज़ोर से जादुई शब्द धन्यवाद कहें! और यदि आप कर सकें, तो बस


एक निवाला ही लें और सचमुच उसका स्वाद लें। इससे न सिर्फ़ आपका आनंद बढ़ेगा, बल्कि


आपको कहीं अधिक कृतज्ञता महसूस होने में भी मदद मिलेगी।


आप मेरी तकनीक भी आज़मा सकते हैं, जिससे मुझे और अधिक कृतज्ञता महसूस करने में मदद मिलती है । धन्यवाद शब्द कहते वक़्त में अपनी अंगुलियाँ भोजन या पेय पदार्थ के ऊपर लहराती हूँ, मानो मैं उन पर शाक्तिशाली धूल छिड़क रहा हूँ। मैं कल्पना करता हूँ कि शाक्तिशाली धूल को जिस भी चीज़ पर छिड़का जाता है, वह उसे स्पर्श करके तत्काल शुद्ध कर देती है। मुझे सचमुच लगता है कि कृतज्ञता एक जादुई तत्व है, इसलिए में इसे अपने खाने-पीने की हर चीज़ में मिलाना चाहती हूँ! यदि आप इसे अधिक प्रभावी पाएँ, तो आप इस दृश्य की कल्पना कर सकते हैं कि आपके हाथों में जादुई धूल की एक डिब्बी (शेकर) है और आप भोजन को खाने या पेय पदार्थ को पीने से पहले उस पर जादुई धूल छिड़क रहे हैं।


यदि दिन में किसी वक़्त कुछ खाने-पीने से पहले आप शाक्तिशाली शब्द धन्यवाद कहना भूल जाते हैं, तो जैसे ही याद आए, आँखें बंद करके उस समय को याद करें, जब आप भूल गए थे। जब आपने खाया पिया था, मन ही मन उसके एक-दो पल पहले के दृश्य की कल्पना करें और धन्यवाद शब्द कहें। यदि आप दिन में कई बार भोजन और पेय पदार्थों के लिए कृतज्ञ होना भूल जाते हैं, तो इस अभ्यास को कल दोहराएँ। आपको अपनी कृतज्ञता बढ़ाने में एक दिन की भी चूक नहीं करनी चाहिए इस पर आपके सपनों का साकार होना निर्भर करता है! जीवन में भोजन तथा पानी जैसी छोटी-छोटी चीज़ों के लिए कृतज्ञ होना कृतज्ञता की गहनतम


अभिव्यक्तियों में से एक है और जब आप इस हद तक कृतज्ञता महसूस कर सकते हों, तो आप चमत्कार को होते देखेंगे।



रहस्यमय तत्व


1. अपनी नियामतें गिनें: दस नियामतों की सूची बनाएँ । लिखें कि आप क्यों कृतज्ञ हैं। अपनी सूची दोबारा पढ़ें और हर नियामत के अंत में कहें धन्यवाद, धन्यवाद, धन्यवाद। उस नियामत के लिए अधिकतम कृतज्ञता महसूस करें।


2. आज कुछ भी खाने-पीने से पहले एक पल का समय निकालकर देखें कि आप क्या खाने जा रहे हैं और उसके लिए मन ही मन या ज़ोर से शक्तिशाली शब्द धन्यवाद कहें! यदि आप चाहें, तो अपने भोजन या पेय पदार्थ पर जादुई धूल का छिड़काव भी कर सकते हैं।


3. आज रात सोने से ठीक पहले अपना अपने चाहें जाए भगवान के किसी रूप की एक फ़ोटो एक हाथ में थामें और दिन भर में हुई सबसे अच्छी चीज़ के लिए शक्तिशाली शब्द धन्यवाद कहें।

अनपूर्णा स्त्रोत 

माता अनपुर्णा सब जीवो का पेट भर रही है

दृश्याऽदृश्य-प्रभूतवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी।

लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपांकुरी।

श्री विश्वेशमन प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी।

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।


अर्थात्-हे देवि ! आप ही स्थूल और सूक्ष्म-समस्त जीवों को पवित्रता प्रदान करती हो, यह ब्रह्माण्ड आपके ही उदर में स्थित है, आपकी लीला में सम्पूर्ण जीव अपना-अपना कार्य करते हैं, आप ही ज्ञानरूप प्रदीप का स्वरूप हो, आप श्री विश्वनाथ का संतोषवर्द्धन करती हो । हे माता अन्नपूर्णेश्वरी ! आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।


उर्वी सर्वजनेश्वरी भगवती माताऽन्नपूर्णेश्वरी।

वेणीनील-समान-कुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी।

सर्वानन्दकरी दृशां शुभकरी काशीपुराधीश्वरी।

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।



अर्थात्-हे अन्नपूर्णे ! आप पृथ्वीमण्डल स्थित जनसमूह की ईश्वरी हो, आप षडेश्वर्यशालिनी हो, आप ही जगत् की माता हो, आप सबको अन्न प्रदान करती हो । आपके नीलवर्ण केश वेणी रूप से शोभा पाते हैं, आप ही प्राणीगण को नित्य अन्न प्रदान करती हो और आप ही लोकों को अवस्था की उन्नति प्रदान करती हो । हे माता ! आप ही काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।


आदिक्षान्त-समस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी।

काश्मीरा त्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्यांकुरा शर्वरी।

कामाकांक्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी।

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।


अर्थात्-हे देवि अनपुर्णा ! लोग तन्त्रविद्या में दीक्षित होकर जो कुछ शिक्षा करते हैं, वह आप ही ने वर्णन करके उपदेश प्रदान किया है । आप ही ने सदाशिव के तीनों भाव (सत्, रज, तम) का विधान किया है, आप ही काश्मीर वासिनी शारदा, अम्बा, भगवती हो, आप ही स्वर्ग, मर्त्य और पाताल इन तीनों लोकों में ईश्वरीरूप से विद्यमान रहती हो । आप गंगा, यमुना और सरस्वती-इन तीन रूपों से पृथ्वी में प्रवाहित रहती हो, नित्य वस्तु भी सब आप ही से अंकुरित होती है, आप ही शर्वरी (रात्रि) के समान चित्त के सभी व्यापारों को शांत करने वाली हो, आप ही सकाम भक्तों को इच्छानुसार फल प्रदान करती हो और आप ही सभी जनों का उन्नति साधन करती हो । हे जननि ! केवल आप ही काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो । हे माता अन्नपूर्णेश्वरी ! आप कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।


देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुंदरी।

वामस्वादु पयोधर-प्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी।

भक्ताऽभीष्टकरी दशाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी।

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।


अर्थात्-हे देवि ! आप सर्व प्रकार के विचित्र रत्नों से विभूषित हुई हो, आप ही दक्षराज के गृह में पुत्री रूप से प्रकट हुई थीं, आप ही केवल जगत की सुन्दरी हो, आप ही अपने सुस्वादु पयोधर प्रदान करके जगत् का प्रिय कार्य करती हो, आप सबको सौभाग्य प्रदान करके महेश्वरी रूप में विदित हुई हो, तुम्हीं भक्तगणों को वांछित फल प्रदान करती हो और उनकी बुरी अवस्था को शुभ रूप मे बदल देती हो । हे माता ! केवल आप ही काशीपुरी की अधीश्वरी देवी हो, आप अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।


चर्न्द्रार्कानल कोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी।

चन्द्रार्काग्नि समान-कुन्तलहरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी।

माला पुस्तक-पाश-सांगकुशधरी काशीपुराधीश्वरी।

शिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।


अर्थात्-हे देवि ! आप कोटि-कोटि चन्द्र, सूर्य और अग्नि के समान उज्ज्वल प्रभाशालिनी हो, आप चन्द्र किरणों के तथा बिम्ब फल के समान अधरों से युक्त हो, आप ही चन्द्र, सूर्य और अग्नि के समान उज्ज्वल कुण्डलधारिणी हो, आपने ही चन्द्र, सूर्य के समान वर्ण धारण किया है, हे माता ! आप ही चतुर्भुजा हो, आपने चारों हाथों में माला, पुस्तक, पाश और अंकुश धारण किया है । हे अन्नपूर्णे ! आप काशीपुरी की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।


क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी।

साक्षान्मोक्षरी सदा शिवंकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी।

दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी।

भिक्षां देहि कृपावलंबनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी।।


अर्थात्-हे माता अनपुर्णा ! आप क्षत्रियकुल की रक्षा करती हो, आप सबको अभय प्रदान करती हो, प्राणियों की माता हो आप कृपा का सागर हो, आप ही भक्तगणों को मोक्ष प्रदान करती हो, और सर्वदा सभी का कल्याण करती हो, हे माता आप ही विश्वेश्वरी हो, आप ही संपूर्ण श्री को धारण करती हो, आप ही ने दक्ष का नाश किया है और आप ही भक्तों का रोग नाश करती हो । हे अन्नपूर्णे ! आप ही काशीपुरी की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो ।


अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे !

ज्ञान वैराग्य-सिद्ध्‌यर्थं भिक्षां देहिं च पार्वति।।


अर्थात्-हे अन्नपूर्णे ! आप सर्वदा पूर्ण रूप से हो, आप ही महादेव की प्राणों के समान प्रियपत्नी हो । हे पार्वति ! आप ही ज्ञान और वैराग्य की सिद्धि के निमित्त भिक्षा प्रदान करो, जिसके द्वारा मैं संसार से प्रीति त्याग कर मुक्ति प्राप्त कर सकूं, मुझको यही भिक्षा प्रदान करो । अन्नपूर्णा स्तोत्रम


माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।

बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्‌ II


अर्थात्-हे जननि ! पार्वती देवी मेरी माता, देवाधिदेव महेश्वर मेरे पिता शिवभक्त गण मेरे बांधव और तीनों भुवन मेरा स्वदेश है। इस प्रकार का ज्ञान सदा मेरे मन में विद्यमान रहे, यही प्रार्थना है । अनपुर्णा स्तोत्र


🙏🌹इति श्रीमद शंकराचार्य विरचित अन्नपूर्णा स्तोत्रम्🌹🙏

नाम जप किस प्रकार होना चाहिए ।

प्रश्न . नाम किस प्रकार जप होना चाहिए ? जिससे हमे लाभ हो ? उत्तर:– सबसे पहले नाम जप जैसे भी हो लाभ होता ही है ... फिर भी आप जानने के इक्ष...