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गुरुवार, 23 जून 2022

किसी भी दुःख विपत्ती से मुक्ति कैसे पाए.

भगवाद्गीता 

*तातपर्य*

*श्लोक ५-१०*


आपकी दृष्टि जहाँ तक जा रही है या जहाँ तक नहीं भी जा रही है वहाँ तक परमत्मा ही परमत्मा है उसके शिवाय यहाँ कुछ नहीं है जिस प्रकार एक सूर्य की प्रकाश से अनेको रंग दीखते है उसी प्रकार से यहाँ परमत्मा भिन्न भिन्न रूपों में विराजमान है जिस प्रकार दूध से घी दही मिठाई छाछ लस्सी बनते है इन सभी में दूध का ही अंश होता है उसी प्रकार से परमत्मा से ही ये समस्त जगत बना है अर्थात परमत्मा अपने एक अंश मात्र में धारण किए हुए है जिस प्रकार मकड़ी से उसके जाल निकलते है फिर वही जाल को मकड़ी अपने भीतर समा लेती है उसी प्रकार भगवती मूल प्राकर्तिक अर्थात परमत्मा से ये समस्त जगत प्रकट होते है और फिर उसी में विलीन हो जाते हैं


*हम यहाँ क्यों आते है*

हम जीव शरीर धारण क्यों करते हैं


जिस प्रकार बच्चे अपने उम्र के अनुसार विद्यालय शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं उसी प्रकार हम अज्ञानी जीव यहाँ स्वयं और परमात्मा के विषय में अध्यात्म ज्ञान प्राप्ति के लिए आते हैं अगर इस जन्म में ज्ञान की प्राप्ति या परमत्मा की भक्ति नहीं हुई तों ये जीवन व्यर्थ हैं अनुभव के आधार पर और कुछ नहीं कहूंगा आप सिर्फ इतना विश्वास रखो यहाँ वहाँ दाया बाया ऊपर निचे जहाँ देखो वहाँ परमत्मा ही परमत्मा हैं उसके शिवाय कुछ नहीं हैं यहाँ हमें अज्ञानता की माया ने हमें अंधा बना दिया हैं जिसके कारण परमत्मा को नहीं देख पाते हैं जिस प्रकार एक वृक्ष का अस्तित्व जड़ से पत्ती तक होता हैं उसी प्रकार परमत्मा का अस्तित्व अनंत ब्रह्माण्ड में हैं उसके शिवाय और कुछ नहीं हैं।


जिस प्रकार एक गुलाब के पौधे से कांटे  और फूल उतपन्न होते हैं उसी प्रकार एक परमत्मा से देव- असुर, अच्छे -बुरे लोग उतपन्न होते हैं उसी प्रकार एक माँ से असुर और देव प्रकृति के संतान उतपन्न होते हैं। इन दोनों में परमत्मा का ही अंश हैं माया के द्वारा जिसका ज्ञान नेत्र अंधा हो गया वो स्वयं को या परमत्मा को नहीं जानता हैं इसलिए वो अच्छे बुरे कर्मो में भेद नहीं कर पाते हैं


इन्द्रियों के विषय में आप कितना ही विषयी हो आप उस पर ध्यान मत दो आप सिर्फ अपने आस पास परमत्मा के अनंत रूपों पर ध्यान दो आप अपने हृदय सिर्फ  इतना ही धारण कर लो " मैं परम् ब्रम्ह परमत्मा माँ काली -दुर्गे, माँ राधेकृष्ण माँ गौरीशंकर माँ सीताराम, माँ सरस्वती - ब्रम्हा जी का प्रिय संतान हूँ और ये सब मुझ पवित्र आत्मा के माता पिता जी हैं 

आप कितना ही इन्द्रियों के विषयी हो आपका नाश नहीं हो सकता हैं।


हम करोड़ो जन्मों से भटक रहे हैं अज्ञानता के कारण....

हमारी इन्द्रियों ने यहाँ फसा रखा हैं हमारी व्यर्थ इक्षाओं ने यहाँ फसा रखा हैं जबकि आप स्वयं सब कुछ से परिपूर्ण आत्मा हो आप सब कुछ पा सकते हो


बस आवश्यकता हैं तों सिर्फ इतना की आप दुःख सुख नाकारत्मक ऊंच नीच गरीब अमीर को समान समझने की... समझने की आवशयकता इतनी हैं की आपके किसी विषय पर केंद्रित ध्यान से प्रवाह होने वाली ऊर्जा का सही उपयोग करने की... अगर आप दुःख पर ध्यान देते हैं तों वो और बढ़ेगा जिससे आप स्वयं परेशान होकर सुखी होने के लिए वहाँ से ध्यान हटा कर मन बहलाने की कोसिस करते हो, अगर आप सुख पर सिर्फ ध्यान देते हो तों वो और बढ़ता जाता हैं उसमे आपके केंद्रित ध्यान से प्रवाहित होने वाली ऊर्जा ही हैं ज़ो सुख दुःख वाली घटना को निर्माण करता हैं


अब आप सुख दुख धन दौलत शांति अशांति पर ध्यान देते कैसे हो 

अगला व्यख्यान इस लिंक पर है


https://rahuljha014797.blogspot.com/2022/06/blog-post.html?m=1

 तब तक के लिए आज आपको अपने ऊर्जा का सही उपयोग करने का मार्ग बताने का प्रयास करूंगा।


जैसा की आप जानते हैं परमत्मा सर्व व्याप्त हैं और आपके भीतर आत्मा उन्ही का अंश है 


आँख बंद करें हाथ पाव मोड़ कर बैठ जाए पीठ सीधी या ढीली कर ले हाथ पाँव भी ढीली कर ले घरी का समय देख ले ५ -१० मिनट सिर्फ अपने साँसो पर ध्यान केंद्रित कीजिये , सांस को अपने अनुसार चलने दीजिये आप सिर्फ अपने सांस पर ध्यान केंद्रित कीजिए और उस प्राण वायु को परमत्मा का स्वरुप समझ कर ग्रहण करें। किसी विचारो पर ध्यान मत दीजिए आपनी ऊर्जा व्यर्थ के विचारो पर बर्बाद न करें आप सिर्फ चल रहे शांसे पर ध्यान दे शांति महसूस कीजिए


१० मिनट के बाद आप कहने के साथ दिमाग़ में तस्वीर देखिए " मैं परमत्मा का प्रिय पुत्र हूँ मुझ में परमत्मा का प्रेम भक्ति और प्रेम शक्ति समा रही हैं मैं आत्म शांति को इसी समय प्राप्त कर रहा हूँ मैं परमत्मा के चरणों में मस्तक झुक कर प्रणाम और धन्यवाद करता हूँ अपनी प्रेम भावनाओ को बढ़ने दे।


मेरे और भगवत भक्तो के सभी विघ्न को भगवान गणेश नाश कर रहे हैं मैं उनके चरणों में हृदय से प्रणाम और धन्यवाद अर्पण करता हूँ


मेरे और भगवत भक्त के भीतर माँ दुर्गा और माँ काली सभी दुर्गनो का नाश कर धर्म की स्थापना कर रही हैं मेरे और भगवत भक्तो के दुष्ट शत्रु को नाश कर रही हैं मैं माता दुर्गा और माता काली के चरणों में हृदय से प्रणाम और धन्यवाद कर रहा हूँ।


मुझे और सृस्टि के सभी ज्ञानियों को माता सरस्वती के कृपा से ज्ञान प्राप्त हो रहा हैं मैं माता सरस्वती और ब्रम्हा जी के चरणों में हृदय से प्रणाम और धन्यवाद अर्पण करता हूँ 


मुझे और भगवत भक्तो को माता लक्ष्मी धन सम्पदा सुख समृद्धि शांति इसी समय प्रदान कर रही हैं मैं माता लक्ष्मी और श्री हरि के चरणों में हृदय से प्रणाम और धन्यवाद अर्पण करता हूँ।


मुझे और भगवत भक्तो को माता पार्वती इसी समय जन्म मृत्यु से मुक्त कर रही हैं मैं माता पार्वती और महादेव के चरणों में हृदय से प्रणाम और धन्यवाद करता हूँ।


इस व्यख्यान को ध्यान में 9 बार दोहराए। रात्रि को शीघ्र सोए ब्रम्ह मुहूर्त तीन बजे जागकर शौच आदि होकर मुँह पर पानी मारे हो सके तों स्नान कर ले फिर ध्यान में बैठे। 

आप ध्यान कभी भी कर सकते हैं कही भी कर सकते हैं किसी समय में कर सकते हैं किन्तु अपने शरीर और मन को किसी मंदिर  की भांति पवित्रता बनाए रखे। ध्यान करने से पहले मुँह हाथ पाँव अवश्य धोए ।


ये ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण हैं आप इसे अपने हृदय में धारण कर ले


ऊर्जा के सही उपयोग के विषय में आपको ध्यान के दौरान ज़ो कहने के लिए बताया हूँ वो आप प्रत्येक दिन नियमित रूप से प्रातः काल और रात्रि में सोते समय अवश्य कहे।


जिस प्रकार एक मरीज को दवा नियमित रूप से दिया जाता हैं और वो नियमित रूप से दवा लेने के बाद स्वस्थ हो जाता हैं उसी प्रकार नियमित रूप से अपने ऊर्जा का सही उपयोग करने के लिए ध्यान के दौरान कहे।


जिस प्रकार मरीज को सही समय पर इलाज नहीं मिलता और बहुत देर हो जाती हैं फिर दवा मिल भी जाए तों असर नहीं करता उसी प्रकार देर न करें मानव शरीर बहुत दुर्लभ हैं उसमे भी ब्रह्मण शरीर बहुत दुर्लभ हैं इसलिए अपने जीवन को व्यर्थ के दुःख में न कटने दे अपने आप को दुःख भरी संसार में फिर से न गिड़ने दे ।


आप सभी भगवत भक्तो और आपके भीतर आत्मा राम के चरणों में प्रणाम 🙏❤️


🚩धर्म की जय हो🚩

🚩अधर्म का नाश हो🚩

🚩गौ माता की रक्षा हो🚩

🚩विश्व का कल्याण🚩


🙏❤️जय श्री सीता राम ❤️🙏


🚩जय श्री राम 🚩


- rahul jha

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