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मंगलवार, 20 सितंबर 2022

कृतज्ञता का महत्व

 🌷 *जय श्री कृष्णा* 🌷



*नीचे दिया गया वाक्य-समूह न्यू टेस्टामेंट में वर्णित गॉस्पेल ऑफ़ मैथ्यूज़ से लिया गया है। और बहुत से लोग सदियों से इसे ग़लत समझते आए हैं, जिस वजह से यह उन्हें बहुत दुविधापूर्ण तथा अबूझ लगता रहा है।*


*"जिसके भी पास है, उसे अधिक दिया जाएगा और वह समृद्ध होगा। जिसके पास नहीं है, उसके पास जो है वह सब भी उससे ले लिया जाएगा।"*


*आपको मानना होगा कि जब आप इन वाक्यों को पढ़ते हैं, तो ये अन्यायपूर्ण लगते हैं। यह एक तरह से ऐसा कहने जैसा लगता है कि अमीर लोग ज़्यादा अमीर बनेंगे और ग़रीब लोग ज़्यादा ग़रीब। लेकिन इस वाक्य-समूह में एक पहेली है, एक रहस्य है। जब आप इसे सुलझा लेते हैं और इसका सही अर्थ जान लेते हैं, तो आपके सामने एक नया संसार खुलने लगेगा।*


*इस गुत्थी का जवाब सदियों तक बहुत से लोगों के लिए अबूझ रहा है, और इसका जवाब एक शब्द में छिपा हुआ है : कृतज्ञता ।*


*" जिसके भी पास कृतज्ञता है, उसे अधिक दिया जाएगा और वह समृद्ध होगा।*


*कृतज्ञता नहीं है, उसके पास जो है वह सब भी उससे ले लिया जाएगा।"*


*छिपे हुए शब्द को उजागर करते ही जटिल वाक्य समूह आईने की तरह एकदम साफ़ हो जाता है । जब ये शब्द लिखे गए थे, तब से दो हज़ार साल का समय बीत चुका है, लेकिन ये आज भी उतने ही सच हैं, जितने कि वे तब थे : दुर्भाग्य से, यदि आप कृतज्ञ होने का समय नहीं निकाल पाते हैं, तो आपको कभी अधिक नहीं मिलेगा और आपके पास जो है, उसे भी आप खो देंगे। कृतज्ञ होने पर जो जादू हो सकता है, उसका वादा इन शब्दों में है : यदि आप कृतज्ञ हैं, तो आपको अधिक दिया जाएगा और आप समृद्ध होंगे!*


*सनातन धर्म के हर एक मंत्र में कृतज्ञता भी इतनी ही प्रबलता से किया गया है। वेदों के मंत्र और पुराणों के स्त्रोत में कृतज्ञता प्रचुर मात्रा से दिया गया है। कृतज्ञता अर्थात इश्वर के प्रति एहसानमंद होना,उनके गुणों का चिन्तन करना तथा उनके द्वारा निःस्वार्थ भाव से किया गया उपकार के बदले प्रार्थना स्त्रोत और मंत्र के द्वारा उनके प्रति एहसानमंद महसूस या अनुभव करना । जब हम कृतज्ञता महसूस करने लगते है तब हमारे भीतर द्वेष, ईर्ष्या और दुखो का नाश होने लगता है। हमारे जिवन में चमत्कार की बाढ़ सी आने लगती है। आप चाहे किसी भी रूप में इश्वर के प्रति कृतज्ञता महसूस करे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप किस धर्म के अनुयायी हैं या आप धार्मिक हैं भी या नहीं। ये विज्ञान और सृष्टि के एक मूलभूत नियम को बता रहे हैं। यदि आप पूजा पाठ भजन कीर्तन यज्ञ आदि में कृतज्ञता श्रद्धा महसूस नही करते तो वो पूजा पाठ यज्ञ आदि व्यर्थ हो जायेगी । भारत में अनेकों ऐसे संत ऋषि मुनि या स्वयं इश्वर अवतार लिए इन सभी ने अपने समय के लोगों की समझ के अनुसार कृतज्ञता होना सिखाया था संत कबीर, गुरु नानक, संत रविदास, भक्त प्रह्लाद इन सभी ने कृतज्ञतापूर्वक भक्ति के बदौलत ऊंचे शिखर को प्राप्त हुए हैं जब आप प्रार्थना करते हैं तब आपका ध्यान या श्रद्धा ईश्वर के प्रति न हो तब वो प्रार्थना व्यर्थ हो जाती है।*


*भगवद्गीता में अर्जुन की कृतज्ञता पूर्वक भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हे गीता ज्ञान दिया और असंभव कार्य को संभव कर दिए। ब्रम्हा जी ने पहले आदि शक्ति भगवती माता के प्रति कृतज्ञता पूर्वक ध्यान किया तभी उन्होने सृष्टि रचना करने की शक्ति मिली और वो सृष्टि रचना करने में सफल हुए। सच्ची श्रद्धा से स्तुति भक्ति ईश्वर के प्रति माता पिता वाली भाव रखना ये सब कृतज्ञता का ही स्वरूप है। कृतज्ञता भी उतना सटीकता से कार्य करती है जितना गुरुत्वाकर्षण का नियम सटीकता से कार्य करता है।*


"सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।"


"सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।"


इन्हीं मंगलकामनओं के साथ आपका दिन मंगलमय हो


*आप देख सकते है मंत्र में पूरी दुनियां के लोगों के लिए कृतज्ञता व्यक्त की गई है। आप जितना दूसरो के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता महसूस करेंगे। उतना ही दूसरे के साथ आपको दुगुनी रूप में आरोग्य, सुख समृद्धि और सुंदर भाग्य मिलता है।*


*यह सृष्टि का नियम है*


*कृतज्ञता सृष्टि के एक नियम के ज़रिए कार्य करती है, जो आपके समूचे जीवन को संचालित करता है। कृतज्ञता का नियम हमारी सृष्टि में एक अणु से लेकर ग्रहों की गतियों तक सारी ऊर्जा को शासित करता है और इस नियम के अनुसार, "समान ही समान को आकर्षित करता है। " यह सृष्टि का नियम ही है, जिसकी बदौलत हर जीवित प्राणी की कोशिकाएँ एक साथ जुड़ी रहती हैं, जिसकी बदौलत हर भौतिक वस्तु का रूप कायम है। आपके जीवन में यह नियम आपके विचारों और भावनाओं पर कार्य करता है, क्योंकि आप भी ऊर्जा ही हैं और आप जैसा भी सोचते हैं, जैसा भी महसूस करते हैं, वैसा ही परिस्थितियों घटनाओं को अपनी ओर खींचते हैं।*


*यदि आप सोचते हैं, "मैं अपनी नौकरी को पसंद नहीं करता," "मेरे पास पर्याप्त धन नहीं है,*


*"मुझे आदर्श जीवनसाथी नहीं मिल सकता," "मैं अपने बिल नहीं चुका सकता," "मैं सोचता हूँ*


*कि मुझे कोई रोग हो रहा है," "वह मेरी क़द्र नहीं करती," "मेरी अपने माता-पिता के साथ पटरी*


*नहीं बैठती," "मेरा बच्चा बहुत बड़ी समस्या है," "मेरा जीवन अस्तव्यस्त हो गया है, " या "मेरा*


*वैवाहिक जीवन संकट में है, " तो आप अपनी ओर ऐसे ही अधिक अनुभवों को आकर्षित करेंगे।*


*लेकिन यदि आप उन चीज़ों के बारे में सोचते हैं, जिनके लिए आप कृतज्ञ हैं, जैसे "में अपनी नौकरी से प्रेम करता हूँ," "मेरा परिवार बहुत मददगार है," "मेरी छुट्टियाँ बेहतरीन रहीं," "मैं आज गज़ब का अनुभव कर रहा हूँ" "मुझे अब तक का सबसे बड़ा टैक्स रिफंड मिला है, " या " बेटे के साथ कैंपिंग करने में मेरा वीकएंड बेहतरीन गुज़रा," और आप सचमुच कृतज्ञता महसूस करते हैं, तो का नियम कहता है कि आपको जीवन में ऐसी ही अधिक चीजें मिलेंगी। यह कुछ उसी तरह काम करता है, जिस तरह धातु चुंबक की ओर खिंचती है; आपकी कृतज्ञता चुंबकीय है, और आपके पास जितनी अधिक कृतज्ञता होती है, आप चुंबक की तरह उतनी ही अधिक समृद्धि को अपनी ओर आने की संभावना को बढ़ा लेते हैं। यह सृष्टि का नियम है!*


*आपने इस तरह की कहावतें सुनी होंगी, “जो भी जाता है, लौटकर आता है," "आप जो बोते हैं, वही काटते हैं, " और "आप जो देते हैं, वही पाते हैं।" देखिए, ये सारी कहावतें उसी नियम का वर्णन कर रही हैं। ये सृष्टि के उस सिद्धांत का वर्णन भी कर रही हैं, जिसे महान वैज्ञानिक सर आइज़ैक न्यूटन ने खोजा था।*


*न्यूटन की वैज्ञानिक खोजों में सृष्टि में गति के मूलभूत नियम शामिल थे, जिनमें से एक यह है : हर क्रिया की हमेशा विपरीत और समान प्रतिक्रिया होती है।*


*जब आप कृतज्ञता के विचार को न्यूटन के नियम पर लागू करते हैं, तो यह इस प्रकार होता है। धन्यवाद देने की हर क्रिया हमेशा पाने की विपरीत प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है, यानी कि आप पाते हैं। और आप जो पाते हैं, वह हमेशा आपके द्वारा दी गई कृतज्ञता की मात्रा के समान होगा। इसका अर्थ है कि कृतज्ञता की क्रिया पाने की प्रतिक्रिया को शुरू कर देती है! और आप जितनी ईमानदारी और गहराई से कृतज्ञता महसूस करते हैं (दूसरे शब्दों में, जितनी अधिक कृतज्ञता देते हैं), आप उतना ही अधिक पाएँगे।*


प्रति दिन कृतज्ञता के महत्व को आवश्य पढ़े इसमें ऐसी शक्ति छुपी है जिसका अनुसरण करने पर आप चौक जायेंगे आपके भीतर इतनी बड़ी शक्ति है। जिसका उपयोग आप अपने विरुद्ध भी करते हैं और अपने कल्याण के लिए करते हैं इसलिए भगवान कृष्ण भगवद्गीता अ०6 श्लोक 5 में कहते हैं  


" अपने द्वारा अपना संसार समुद्र से उद्धार करे और अपने को अधोगति में न डाले, क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है ।।5।।


इस श्लोक का अर्थ अनंत है संसार भर के विद्वान अपने अपने समझ के अनुसार इस श्लोक का अर्थ समझते हैं। फिर भी मुझ जैसा तुच्छ बालक जो कुछ समझा आप से साझा किया


परमात्मा हमे हर प्राकृतिक वस्तु मुफ्त प्रदान करते हैं । इसलिए हमारा कर्त्तव्य है उनके प्रति हर छोटी से छोटी चीजों के लिए प्रेम पूर्वक श्रद्धा पूर्वक धन्यवाद करें। शिकायत कभी न करें। तभी हम अपनें शक्तियों का सही उपयोग कर पाएंगे। भगवान श्री कृष्ण भगवद्गीता अध्याय 9 श्लोक 22 में खुद आप से वादा कर रहें है जो उनके चिन्तन में प्रेम पूर्वक कृतज्ञता पूर्वक डूबा रहता है उनका योगक्षेम वो स्वयं वहन करते हैं । 


*अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते ।*

*तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।।22।।*


जो अनन्य प्रेमी भक्त जन मुझ परमेश्वर को निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से भजते हैं, उन नित्य-निरन्तर मेरा चिन्तन करने वाले पुरुषों का योग क्षेम में स्वयं प्राप्त कर देता हूँ ।।22।।


ये शरीर जहाज है इस जहाज का चालक हमारा मन है । जब हमारा मन भगवान कृष्ण के प्रति कृतज्ञता महसुश करने लगता है तब इस शरीर रुपी जहाज के चालक स्वयं श्री कृष्ण से मार्गदर्शन पा कर इस भवसागर रुपी संसार से पार कर जाता है। इस दुनिया में आप और आपका परमात्मा है। तीसरा कोई नही है। आप जितना ज्यादा परमात्मा के प्रति कृतज्ञता होंगे उतनी ही तेजी से अपने जीवन में चमत्कार पाएंगे आप चौक जायेंगे। 


आप बिना कृतज्ञता के अपने अभिमान , द्वेष, ईर्ष्या, प्रमाद, आलस्य आदि को नाश नही कर सकते आप बिना कृतज्ञता के कुछ पा नही सकते। बिना कृतज्ञता का कोई पूजा पाठ यज्ञ भजन कीर्तन सफल नही होता। 



– राहुल झा 

नाम जप किस प्रकार होना चाहिए ।

प्रश्न . नाम किस प्रकार जप होना चाहिए ? जिससे हमे लाभ हो ? उत्तर:– सबसे पहले नाम जप जैसे भी हो लाभ होता ही है ... फिर भी आप जानने के इक्ष...