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बुधवार, 9 अगस्त 2023

रामपाल का पर्दाफाश।

*श्रीमद्भगवद्गीता के कुछ ऐसे श्लोक जिसका उपयोग उम्र कैद की सजा काट रहे हठी मुर्खो के जगत गुरु नकली कबीर पंथी रामपाल जी महराज स्वयं को भगवान और श्री कृष्ण को आम मनुष्य घोषित करने में लगे है। तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत । तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ।। *हे भारत[१] ! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शान्ति को तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा । – B.G 18.62* *कौन से परमात्मा की शरण में जाना है ?* *श्रीभगवानुवाच* अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थित: । अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ।। *हे अर्जुन[१] ! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अन्त भी मैं ही हूँ ।।– BG 10.20* सर्वस्य चाहं हृदि संनिविष्टो मत्त: स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च । वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ।। *मैं ही सब प्राणियों के हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित हूँ तथा मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन होता है और सब वेदों[१] द्वारा मैं ही जानने के योग्य हूँ तथा वेदान्त का कर्ता और वेदों को जानने वाला भी मैं ही हूँ । – BG.15.15* मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा । निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वर: ।। *मुझ अन्तर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मुझ में अर्पण करके आशा रहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर युद्ध कर।* ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देश्ऽर्जुन तिष्ठति । भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ।। *हे अर्जुन[१] ! शरीर- रूप यन्त्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है । – B.G 18.61* *जैसे इंजिनियर प्रत्येक मसीनो को घुमाता है , भगवानरूपी इंजीनियर इंजन (माया) के द्वारा सारे जीवो के गले में पट्टा डालकर घुमा रहा है । इंजीनियर जिस का पट्टा निकाल देता है वह नहीं घूमता उसकी शरण में जाओ तो वह पट्टा निकाल देता है पट्टा निकाल देने पर शांत हो जाता यही शांति प्राप्ति होती है।* इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्राद्गुह्रातरं मया । विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु ।। *इस प्रकार यह गोपनीय से भी अति गोपनीय ज्ञान मैंने तुझसे कह दिया। अब तू इस रहस्य युक्त ज्ञान को पूर्णतया भलीभाँति विचार कर, जैसे चाहता है वैसे ही कर । –B.G18.63* सर्वगुह्रातमं भूय: श्रृणु मे परमं वच: । इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ।। *सम्पूर्ण गोपनीयों से अति गोपनीय मेरे परम रहस्य युक्त वचन को तू फिर भी सुन तू मेरा अतिशय प्रिय है, इससे यह परम हितकारक वचन मैं तुझसे कहूँगा ।। –BG.18.64* सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ।। *सम्पूर्ण धर्मों को अर्थात् सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर ।। –B.G – 18.66* *संस्कृत व्याकरण के अनुसार "वज्र" का अर्थ "आ" और "जा" दोनो होता है इसलिए इस श्लोक के अनुवाद में "आ"और "जा" दोनो बताए गए हैं। इसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को स्वयं की शरण में आने को कह रहे हैं न की किसी अन्य अजर अमर से रहित नशवान शरीरधारी मनुष्य की शरण में जाने को कह रहे हैं । श्री हरि विष्णु अवतार भगवान कृष्ण और भगवान श्री राम मनुष्य शरीर रूप आजीवन युवा रहे हैं अर्थात वो अजर है वही श्री हरि विष्णु के मनुष्य रूप में अवतार भगवान परशुराम और महर्षी वेदव्यास चिरंजीवी है अर्थात अमर हैं। उसी प्रकार पर ब्रह्म शिव जी भी हनुमान जी अवतार में अजर और अमर हैं।* यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तम: । अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथित: पुरुषोत्तम: ।। *क्योंकि मैं नाशवान् जडवर्ग क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूँ, इसलिये लोक में और वेद[१] में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ ।। – B.G – 15.18* ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन: । मन:षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ।। *इस देह में यह सनातन जीवात्मा मेरा ही अंश है और वही इन प्रकृति में स्थित मन और पाँचों इन्द्रियों को आकर्षण करता है ।।B.G 15.7* मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु । मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ।। *मुझमें मनवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर। इस प्रकार आत्मा को मुझ में नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा ।। – BG 9.34* अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।। *जो अनन्य प्रेमी भक्त जन मुझ परमेश्वर को निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से भजते हैं, उन नित्य-निरन्तर मेरा चिन्तन करने वाले पुरुषों का योग क्षेम में स्वयं प्राप्त कर देता हूँ ।। – BG.9.22* येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता: । तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्।। *हे अर्जुन[१] ! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैं, वे भी मुझको ही पूजते हैं, किंतु उनका वह पूजन अविधिपूर्वक अर्थात् अज्ञानपूर्वक है ।। – BG 9.23* अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च । न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्यवन्ति ते ।। *क्योंकि सम्पूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूँ; परंतु वे मुझ परमेश्वर को तत्त्व से नहीं जानते, इसी से गिरते हैं अर्थात् पुनर्जन्म को प्राप्त करते हैं ।। – BG 9.24* *आदि नारायण भगवान श्री कृष्ण स्वयं अपने मुख से भगवदगीता अध्याय 7 और अध्याय 10 में अर्जुन को तत्वज्ञान प्रदान कर रहे हैं जिसको जान कर कोई भी जीव उस तत्त्वज्ञान के अनुशार प्रेम भक्ति करते हुए परमात्मा को प्राप्त हों सकता है जिसके बाद वो पुनर्जन्म से मुक्त हो जाएगा।* यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रता: । भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् *देवताओं को पूजने वाले देवताओ को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं, और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसीलिये मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता । – BG 9.25* न रूपमस्येह तथोपलभ्यते नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा । अश्वत्थमेनं सुविरूढमूलमसग्ङशस्त्रेण दृढेन छित्वा ।। तत: पदं तत्परिमार्गितव्यं यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूय: । तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यत: प्रवृत्ति: प्रसृता पुराणी ।। *इस संसार वृक्ष का स्वरूप जैसा कहा है वैसा यहाँ विचार काल में नहीं पाया जाता। क्योंकि न तो इसका आदि है, न अन्त है तथा न इसकी अच्छी प्रकार से स्थिति ही है। इसलिये इस अहंता, ममता और वासना रूप अति दृढ मूलों वाले संसार रूप पीपल के वृक्ष को दृढ वैराग्य रूप शस्त्र द्वारा काटकर उसके प्रश्चात् उस परम पद रूप परमेश्वर को भली-भाँति खोजना चाहिये, जिसमें गये हुए पुरुष फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परमेश्वर से इस पुरातन संसार-वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है, उसी आदि पुरुष नारायण के मैं शरण हूँ- इस प्रकार दृढ निश्चय करके उस परमेश्वर का मनन और निदिध्यासन करना चाहिये ।। – BG.15.3,4* न मां दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा: । माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता: ।। *माया के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किये हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते हैं ।।– BG 7.15* *पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामह: ।* *वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक्साम यजुरेव च ।। *इस सम्पूर्ण जगत् का धाता अर्थात् धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, पवित्र ओंकार तथा ॠग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ ।।17।।* – BG 9.17 अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धय: । परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ।। *बुद्धिहीन पुरुष मेरे अनुत्तम अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मन-इन्द्रियों से परे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा को मनुष्य की भाँति जन्म कर व्यक्ति भाव को प्राप्त हुआ मानते हैं ।–BG.7.24* ❤️🙏 👉रामभक्त (राहुल झा)

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