कुल पेज दृश्य

बुधवार, 9 अगस्त 2023

भक्ति

तेरी हर एक वाणी दिव्य है माता तेरी हर एक लीला दिव्य है। जो किसी को समझ न आए तेरे चरण प्रेम का वो आनंद भी दिव्य है तेरे हाथ में जो त्रिशूल है वो भी दिव्य है तेरे हाथ में जो तलवार है वो भी दिव्य है तेरे मस्तक पर अर्धचंद्रमा भी दिव्य है । तेरे हाथ में गदा सुदर्शन धनुष बाण शंख हैं वो भी दिव्य है। तेरे हाथ में तो अनंत अभय आशिर्वाद और वरदान है माता । तेरे गले की हार और तेरे मस्तक पर सुंदर मुकुट हैं वो भी दिव्य है माता है । तेरे स्नेह और प्रेम भरी नेत्र हैं वो भी दिव्य है माता । तेरे सुंदर मुखड़े के आगे तो करोड़ो सुंदरियों फीकी पड़ जाए । तेरे हाथ की चूड़ियां और तेरे श्रृंगार की सुंदरता तो करोड़ो मुखों से भी वर्णन नही किया जा सकता । तेरे सिंह को देख काल भी दूर दूर तक नजर नहीं आते । वो तो साक्षात् मृत्यु का भी मृत्यु है । तेरे भाग को देख साक्षात् यमदूत भी डर से थर थर कांपते हैं । मैं तेरी दिव्य कथा कहां से प्रारंभ करू कहां अंत करू माता तू अनादि अनंत स्वरूप और गुणों को जननी है माता । माता तेरी सदा जय जय कार है तेरे चरणो में अन्नत कोटि दंडवत प्रणाम है माता .... तुम्हे हर दिशा हर ओर से नमस्कार है माता ...... माता तुम्हे हर रूप में दंडवत प्रणाम है। – श्रीरामभक्त वत्स 🙏♥️🙏 मैया तू मुझे इतना वरदान दे । कैसा भी भक्त हो किसी के लिए मन में कोई मतभेद न हो मुझे सभी सम्प्रदाय सभी मत पंथ के भक्त गुरुजन और संत प्यारे लगे । तू सब की माता है तू सब की जननी है तू सब की स्वामिनी है। तू सब की ईश्वरी है तू सब की प्यारी है तू मुक्त स्वरूपिणी है तू कैव्यलय प्रदान करने वाली है तू आत्म स्वरूप देने वाली है किसी भक्त और उसके संग में कोई दोष न दिखे सभी मुझे प्यारे लगे । जहां जाऊ सब को प्रेम दू जहां जाऊ सब को आदर सम्मान दू। जय मां वैष्णो महारानी 🙏 वैष्णो महारानी जी का परिवार ए मेरे आत्मा के खुदा आदिगुरु महादेव तू सबसे बड़ा है। हे विकारों को नाश करने वाला है तू सब पे मेहर करने वाला है । हे जगत के मालिक पार ब्रह्म तू करोड़ो सूर्य को अपनी प्रकाश देता है तू करोड़ो चंद्र को अपनी प्रकाश देकर उसे आजमाता है तू ही सारें जगत को अपने में लीन करता है। एक तू ही विकारों से मुक्त है एक तू जगत का आश्रय है । ये उसी में खो जाता है ये विकार भरी मन किसे नहीं छला। जिसने तेरा नाम लेकर अपना उद्धार न किया उसका ये मानव शरीर बर्बाद है । हे मेरे स्वामी हे निरंकार तू ही वेदों को रचा कर वैदिक धर्म की स्थापना करता है । तू ही सारे सत्य शास्त्रों को बनाया है । तू ही उसकी रक्षा करता है तू सभी प्राणियों के हृदय में निवास करने वाला है। तू सारे जीवो प्राण देकर जीवित रखता है । तू ही संपूर्ण जगत को अपने अधीन में रखने वाला है । हे मधुसूदन हे वासुदेव श्री कृष्ण हे अंतर्यामी तू ही मन में गंगा की नदी बहाकर मन को निर्मल बनाता है । हे जगत का पालन करने वाले हरि हे वेदों में पुरुषुत्तम कहलाने वाले हरि तू ही जीवो को बुध्दि विवेक देकर आजमाता है तू ही अच्छे बुरे राह पे लगाता तू सबकुछ जानने वाला है । ये दास तेरा ही गुणगान करता हैं । जय मां भगवती दुर्गा भवानी सत वाहेगुरू हरि नाम 🙏🙏🌷 हरि ॐ तत् सत् 🌷🙏🙏 –श्रीरामभक वत्स हे मेरे भीतर के आत्म देव तू बादशाहो का बादशाह और राजाओं का राजा है तू सम्राटो का सम्राट है । तुझे कोई माया नही क्षल तू सभी प्रपंचों से मुक्त है तू सभी विकारों से मुक्त है । तू प्रकृति से पड़े है। तू जीवन मुक्त है तू आदि अंत से रहित है तू अनेकों माया रचता है तू अनेकों माया को अपने लीन करने वाला है । तू साक्षात प्रेम का मूरत है । इस शरीर को प्राण तू ही देता है इस शरीर में चेतना तू ही डालता है । इस शरीर को तू ही त्यागता है तू रस रूप गंध स्पर्श से सदा मुक्त है । तू न सोता है न जागता है तू न कही जाता है तू न कही आता है तू वैरागों का महासगर है। तू सारे से निर्लिप्त है। तू अपनी मां दुर्गा को याद कर वो तुम्हे सदा याद करती रहती है। तू अपनी मैया राधा को याद कर वो तुम्हे सदा याद किया करती है । तेरी मां सावर्याप्त है । वो कही नही गई है वो सदा तेरे साथ है। तू सभी भय को नाश करने वाला है तू अमृत स्वरुप है। तू सब के हृदय में बसता है। निर्गुण स्वरुप सगुण स्वरुप त्रिमूर्त स्वरूप अमूर्त स्वरूप दुर्गति नाशक कल्याण स्वरुप कैवल्य स्वरूप प्राण स्वरूप निर्विकार स्वरूप मुक्त स्वरूप आनन्द स्वरुप आदी अनादि स्वरूप परब्रह्म स्वरूप अविनाशी स्वरूप महेश्वर स्वामी आपकी जय हो । आपकी जय हो आपकी जय हो। आपको बार बार प्रणाम है आपको बार बार दंडवत प्रणाम हैं। आदिगुरु विशेश्वर आपके चरणो में दंडवत प्रणाम । 🙏 [24/07, 4:11 pm] श्रीरामभक्त: प्रेम स्वरूप कृष्ण करुणा स्वरूप कृष्ण दया स्वरूप कृष्ण क्षमा स्वरुप कृष्ण सरल स्वरूप कृष्ण संतोष स्वरूप कृष्ण सत्य स्वरूप कृष्ण । 🙏🙏🙏🌷🌷🌷♥️♥️♥️ [24/07, 4:11 pm] श्रीरामभक्त: भूमि स्वरूप कृष्ण जल स्वरूप कृष्ण अग्नि स्वरूप कृष्ण वायु स्वरूप कृष्ण आत्मा स्वरूप कृष्ण पीपल रूप कृष्ण । 🙏🙏🙏🌷🌷🌷♥️♥️♥️ [24/07, 9:11 pm] श्रीरामभक्त: भक्त जैसा भी हो सब भगवान के प्यारे हैं। हरे राम हरे हरे राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। 🙏मैं भगवान में हूं। 🙏 [24/07, 9:11 pm] श्रीरामभक्त: हरि सचिदानंद स्वरूप है हरि सत स्वरूप है हरि ही सत पुरुष है। हरि ही असत स्वरूप है । हरि ही पूर्ण ब्रह्म है हरि परम् ब्रह्म स्वरूप है । 🙏🙏🙏 [24/07, 9:11 pm] श्रीरामभक्त: भगवान दया और क्षमा के मूरत हैं । वो सब पर कृपा करते हैं भगवान सब के स्वामी हैं। अपमान करने वाले सम्मान करने वाले सुख दुख देने वाले सब में भगवान है भगवान में सब है। उनसे पड़े कुछ नही है। [24/07, 9:12 pm] श्रीरामभक्त: हरि सचिदानंद स्वरूप है हरि सत स्वरूप है हरि ही सत पुरुष है। हरि ही असत स्वरूप है । हरि ही पूर्ण ब्रह्म है हरि परम् ब्रह्म स्वरूप है । 🙏🙏🙏 [24/07, 9:12 pm] श्रीरामभक्त: बस जहां रहे वहां हरि के सिवाय कुछ भी स्मरण न रहे । हरि का दास हरि पर आश्रित है। क्योंकि एक हरि ही सत है और सब कुछ असत है । [24/07, 9:12 pm] श्रीरामभक्त: बस जहां रहे वहां हरि के सिवाय कुछ भी स्मरण न रहे । हरि का दास हरि पर आश्रित है। क्योंकि एक हरि ही सत है और सब कुछ असत है । [24/07, 9:13 pm] श्रीरामभक्त: विकार अविकार से पार निर्विकार , गति दुर्गति से पार अविगत , ब्रम्ह आदि ब्रम्ह से पार ब्रम्हतीत , आदि अंत से पार आनादि , जन्म मरण से पार अजन्मा ( विदेह) , व्यापी अव्यापी से पार सर्वव्यापी सनातन परमात्मा🙏 [24/07, 9:13 pm] श्रीरामभक्त: हरि स्वयं अपनी इक्षा से संसार चला रहा है वो हर स्थान में है । हरि सभी में है सब कोई हरि में है। हरि के सिवाय कुछ नही है । ऐसे हरि को सभी रूपो में प्रणाम 🙏 [20/07, 10:48 am] श्रीरामभक्त: प्रेम बहुत अनमोल रत्न है। इसे किसी धन से खरीदा या नहीं बेचा जा सकता । प्रेम कोई कमजोर या नाजुक नही वस्तु नहीं है । प्रेम कोई व्यापार नही है प्रेम में कोई शुद्र पंडित नही है। प्रेम की यही [20/07, 6:57 pm] श्रीरामभक्त: हे राम मैं ने तेरी कभी सेवा नही मैं ने कभी तेरा ध्यान नहीं किया मैं ने कभी मन से तेरा सम्मान नही किया हे हरि अब तू ही मेरा गुरु रूप में आजा तू ही मुझे स्वयं को पहचानने की शक्ति दे । [20/07, 7:00 pm] श्रीरामभक्त: हे हरि तू अपने चरण की प्रेम भक्ति दे मै सदा तेरा ही चिंतन में डूबा रहूं। मेरे पापो का नाश कर मैं तेरे पास आने का अधिकारी हूं तू सब के हृदय में रहता है तू सब का स्वामी है । [20/07, 7:00 pm] श्रीरामभक्त: रे मन तू बड़ा बहरूपिया है तू बार बार रंग बदलता है तू बार बार संग बदलता है तू एक हरि नाम को गुरु बना ले हरि स्वयं तेरे सारे दुखों का नाश करेगा । तू जब जब हरि का ध्यान करेगा तब तब हरि तेरा ध्यान करेगा । [20/07, 7:01 pm] श्रीरामभक्त: हे त्रिपुरांत कारी हे त्रिलोचन हे महाकाल हे हरि हे कृष्ण हे श्याम सुंदर मैं अपनी हाथ तेरी ओर बढ़ा रहा हूं मेरा हाथ थाम ले मुझे इस जगत में चलने नही आती। अब मैं स्वयं को संभालने में असमर्थ हूं । [20/07, 7:01 pm] श्रीरामभक्त: हे नागेंद्र हे विशेश्वर हे दया के महान सागर आदिगुरु महादेव हे जटाधारी हे भास्मधारी हे त्रिशूल धारण करने वाले तुम मुझ बालक को गोद लेलो । मैं सदा तेरे चरणो का दास बना रहूं मैं अपनी शक्ति से तुम्हे नही पहचान सकता । [20/07, 7:01 pm] श्रीरामभक्त: हे जगत के सिरजन हार हे सगुण रूप में प्रकट होने वाले देवकी नंदन हे यशोदा नंदन मैं तेरे चरणों की धूल अपने सर पर धारण करता हूं जब मैं ने स्वयं को तेरे आगे सौप दिया फिर क्यों चिंता करू। [20/07, 7:01 pm] श्रीरामभक्त: हे भगवती मां दुर्गे हे भगवती मां राधे हे जगत के स्वामिन तेरे बनाए जगत में स्वयं कर्तार ने घोर दुःख को पाया है । मैं किस खेत का मूली हूं। श्रीराम जानकी के दुख के आगे मेरा दुःख कुछ भी नही है। मुझे इतना ही वरदान दे मै सब प्रेम दू [20/07, 7:01 pm] श्रीरामभक्त: हे तुलसी माता हे गंगा माता हे श्री राधिका माता मैं तेरा बालक हूं । मेरे विचारो को तू ही पवित्र करती है मेरे क्रोध को तू ही अपने वश में रखती है मेरी प्यारी मां मैं तुम्हे कभी न भूलूं मैं तेरे एहसान को कभी न भूलूं। मैं तेरा लाल हूं [20/07, 7:02 pm] श्रीरामभक्त: हे प्यारे गोविंद हे मलिक हे मधुसूदन जितना मैं स्वयं को नही जानता उससे अधिक तू मेरे हृदय को जानता है । मैं तेरे शरण हूं मैं तेरे वश में हूं हे प्यारे मैं तेरे निगरानी से बाहर कभी न जाऊ। [20/07, 7:02 pm] श्रीरामभक्त: हे हरि सभी जीवो को जीवनशक्ति भी तू ही है प्राण शक्ति भी तू ही अपने प्रेमियों में भी आनंद तू ही प्रकट करता है तेरी वश के बाहर कुछ नही है जन्मों जन्मों साथ तू ही निभाता है। तेरा एहसान मैं कभी नही भूलूं। [20/07, 7:02 pm] श्रीरामभक्त: हे राम विकार भरी उपदेशों से तू ही मुझे बचाता है हे गोविन्द मोह रूपी नींद से तू ही मुझ दास को जगाता है हृदय को पवित्र कर उसमे प्रेम भी तू ही डालता है मन को निर्मल बना तू ही उसमे निवास करता है। [20/07, 7:02 pm] श्रीरामभक्त: हे हरि तूने ही ये सृष्टि रची है चार वेद पुराण भी तू ने ही बनाया है जीवो को सुख दुःख भी तू ही देता है माया विष का मोह और प्रेम भी तू ने ही बनाया है । सारे जगत का विस्तार और जगत का स्वयं में लीन भी तू ही करता है। [20/07, 7:02 pm] श्रीरामभक्त: हरि ने इस इस जगत को स्वयं रचा है। वो अपनी रचना का स्वयं ही ध्यान रखता है । हरि ने पार्थ को घोर दुख में डाला तो उसका साथ भी नही छोड़ा । मेरा स्वामी जानता है। ये पार्थ ने स्वयं के झोली में प्रिय भक्तो का दुःख मांगा था। [20/07, 7:02 pm] श्रीरामभक्त: हे अनंत स्वरूप वाले आदिगुरु महादेव हे अनंत ज्ञान वाले सदाशिव हे अनंत नेत्र वाले त्रिकालशर्शी हे जगत के स्वामी हे अनंत ब्रह्मांड को अपने एक अंश में धारण करने वाले तू मुझे अपने चरणो की प्रेमभक्ति दे । मैं तेरे शरण आया हूं । [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे मां दुर्गे सच्चा प्यार तो केवल तुमने किया जगत के मोह में मै तो सदा ठगा गया। तू सब में रहने वाली है तू स्वयं नाम दीक्षा देने वाली है मैं तो करोड़ो मुखों से भी तेरे गुणों को बया नही कर सकता । 🙏♥️🙏 [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे मां दुर्गे जगत के सारे जीव तेरे बच्चे हैं मैं भी तेरा हूं तू ही परब्रह्म स्वरूपिणी है तू मेरी बुद्धि की मालकिन है तू पतितो को पवित्र करने वाली है हे मेरी बुद्धि को पवित्र कर अपने चरणो में लगा ले । [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे मां दुर्गे हे प्रचंड शक्ति धारण करने वाली हे अनंत गुणों वाली हे अनंत रूपो वाली मैं अपनी शक्ति से तेरे पास नही आ सकता अब तू स्वयं मुझे अपनी ओर खींच ले । [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे मां दुर्गे हे महामाई हे महामाता हे महान पराक्रम की स्वामिनी हे कृष्ण स्वरुपिणी हे राधा स्वरूपिणी अब देर न करो । मुझ पर दया करो मैं अपार शोक में हूं न जाने तुम्हे कहां कहां ढूंढा अब तू स्वयं चाहेगी तभी मिलेगी । [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे मधुसूदन हे अंतर्यामी प्रभु हे अयोध्या पति रामचंद्र हे महावीर हनुमान तू मुझे अपने चरणो की प्रेम भक्ति दे । [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे आदि गुरु महेश्वर हे आदिमाता माहेश्वरी हे आदि गणेश मुझे आप से कुछ नही चाहिए आप मुझको मेरी मैया राधा और मां दुर्गा के चरणो की प्रेमभक्ति दे दे । [20/07, 7:03 pm] श्रीरामभक्त: हे कृष्ण तू योगियों का योगी योगेश्वर है तू अपने प्रेमी को सच्चा आनन्द देने वाला है तू अन्नत आनन्द वाला है तू संसार सागर से पार लगाने वाला तू सभी दुष्टों का नाश करने वाला है तू ही अर्जुन है तू ही पार्थ अर्जुन का सारथी है । [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: हे हरि करोड़ो सूर्य की भांति जो तेरा तेज है उसे देख कर भी मुझे संतुष्टि नहीं मिली मुझे तो तेरा वो सगुण रूप ही प्रिय है जो काक और ध्रुव जी को प्रिय लगता था । मुझे तेरा वही रूप अच्छा लगता है । [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: रे मन जैसे जल से जल अलग नही होता वैसे आत्मा परमात्मा से अलग नही होता जिसे हरि स्वयं में लीन कर लिया उसे ये ज्ञान हो जाता है सब कुछ वासुदेव ही है । हरि स्वयं का ही स्वयं स्मरण कर रहा है । वो आत्मिक आनंद से डोलता रहता है [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: हे मन परमात्मा को जो अच्छा लगता है वही करता वो जिसे भक्ति देता है वही उसके गुण नाम और कीर्तन गाता है वो एक रूप है वो संतो से अलग नही है वो तेरे से अलग नही है तू अपने को पहचान तू कौन है तेरा स्वामी कौन है । [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: मैं गोपी मैया पर सदा कुर्बान हूं जिन्होंने हरि का साक्षात् दर्शन किया मैं उस सुदामा जी पर सदा कुर्बान हूं जिन्होंने हरि का साक्षात् दर्शन किया मैं उस महत्मा अर्जुन पर सदा कुर्बान हूं जिन्होने हरि को अपना सारथी बनाया । [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: रे मन जो हरि के स्मरण नही करता वो माया के प्रपंच से कभी अनंत काल तक नही छूट सकता । हरि सब का कल्याण करने वाला तेरा भी कल्याण करेगा तू शोक मत कर । [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: हे हरि मुझे तो बस तुम्हे पुकारने आता है तेरा नाम रटने आता है तेरे से प्रेम करने आता है तू मेरा स्वामी है तू ही मेरा गुरु है तेरे सिवाय अब और कुछ न भाए मुझ पर मेहर कर। 🙏 [20/07, 7:04 pm] श्रीरामभक्त: हे हरि मेरे प्रेम को तू ही जानता है तू मेरे हृदय में रहता है तू सब का स्वामी है सब रूप में अलेके व्याप्त है तू वासुदेव सर्वम है सब कुछ तुझ से उतपन्न हुवा है सब तेरे में लीन हो जाएंगे। पर मैं तो तेरे सदके जावा।

प्यारे गोबिंद

[08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: प्रेम स्वरूप कृष्ण करुणा स्वरूप कृष्ण दया स्वरूप कृष्ण क्षमा स्वरुप कृष्ण सरल स्वरूप कृष्ण संतोष स्वरूप कृष्ण सत्य स्वरूप कृष्ण । 🙏🙏🙏🌷🌷🌷♥️♥️♥️ [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: भूमि स्वरूप कृष्ण जल स्वरूप कृष्ण अग्नि स्वरूप कृष्ण वायु स्वरूप कृष्ण आत्मा स्वरूप कृष्ण पीपल रूप कृष्ण । 🙏🙏🙏🌷🌷🌷♥️♥️♥️ [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: भक्त जैसा भी हो सब भगवान के प्यारे हैं। हरे राम हरे हरे राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। 🙏मैं भगवान में हूं। 🙏 [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: हरि सचिदानंद स्वरूप है हरि सत स्वरूप है हरि ही सत पुरुष है। हरि ही असत स्वरूप है । हरि ही पूर्ण ब्रह्म है हरि परम् ब्रह्म स्वरूप है । 🙏🙏🙏 [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: भगवान दया और क्षमा के मूरत हैं । वो सब पर कृपा करते हैं भगवान सब के स्वामी हैं। अपमान करने वाले सम्मान करने वाले सुख दुख देने वाले सब में भगवान है भगवान में सब है। उनसे पड़े कुछ नही है। [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: हरि सचिदानंद स्वरूप है हरि सत स्वरूप है हरि ही सत पुरुष है। हरि ही असत स्वरूप है । हरि ही पूर्ण ब्रह्म है हरि परम् ब्रह्म स्वरूप है । 🙏🙏🙏 [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: बस जहां रहे वहां हरि के सिवाय कुछ भी स्मरण न रहे । हरि का दास हरि पर आश्रित है। क्योंकि एक हरि ही सत है और सब कुछ असत है । [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: विकार अविकार से पार निर्विकार , गति दुर्गति से पार अविगत , ब्रम्ह आदि ब्रम्ह से पार ब्रम्हतीत , आदि अंत से पार आनादि , जन्म मरण से पार अजन्मा ( विदेह) , व्यापी अव्यापी से पार सर्वव्यापी सनातन परमात्मा🙏 [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: बस जहां रहे वहां हरि के सिवाय कुछ भी स्मरण न रहे । हरि का दास हरि पर आश्रित है। क्योंकि एक हरि ही सत है और सब कुछ असत है । [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: हरि स्वयं अपनी इक्षा से संसार चला रहा है वो हर स्थान में है । हरि सभी में है सब कोई हरि में है। हरि के सिवाय कुछ नही है । ऐसे हरि को सभी रूपो में प्रणाम 🙏 [08/08, 9:36 am] श्रीरामभक्त वत्स: हे अनादि अंत से रहित हे सब के स्वामी गोबिंद हे अंतर्यामी करोड़ो जीभ से भी तेरा नाम लिया जाए करोड़ो बार नाम लिया जाय और सोचे मैं इतनी बार जप कर लूंगा तो तेरी प्राप्ति हो जाएगी । मैं अपनी मेहनत से भगवान की प्राप्ति कर लूंगा ये जीवो का झूठा अहंकार है इस अहंकार से तुम्हारा कोई अता पता भी नही लगा सकता ....जब तक तू स्वयं नही दया करता तब तुम्हे कोई प्राप्त नही कर सकता। कई योगी ध्यान लगा कर तेरा पता लगा रहे हैं कई संत बनकर मन में विकार लिए प्रवचन दे रहें कोई पंथ की माया जाल में तेरी महिमा गाकर दूसरे पंथ की निंदा कर रहे हैं कोई जोड़ जोड़ से चिल्ला कर तेरे नाम का नमाज अदा कर रहे हैं कोई समाधि लगा बैठा है । हे जगत पालक यदि मन यही अहंकार लिए मैं तेरी वंदना करू तो तू भी मेरी नही सुनेगा । मैं सदा तेरे आश्रय लिया है मैं हे माधव रघुनंदन तू जैसे नचाता है मैं वैसे नाचता हूं । मुझ से तेरी शक्ति के बीना कुछ भी नही हो सकता । इस संसार में छोटा बड़ा श्रेष्ठ सर्व श्रेष्ठ की फैसला तेरे दरबार में ही होता है । तू सभी के हृदय में स्थित जानने वाला है।

मां दुर्गा और मां राधा स्तुति

हे करूणा मय जगदंब मंगल स्वरुप दुर्गे कैवल्य स्वरूप मुक्त स्वरूप आनन्द स्वरुप माता अंबिके जिसका मन तेरे नाम तेरे लीन हो गया .. उस मनुष्य का धर्म के साथ सीधा संबंध बन जाता है, वह फिर दुनिया के विभिन्न पंथ मत रास्तों पे नहीं चलता उसके अंतःकरण में ये द्वंद नहीं रहता कि ये मार्ग ठीक है और ये गलत है । हे मधुर स्वरूपिणी वैष्णवी तेरा नाम जो माया के प्रभाव से परे है वो इतना ऊंचा है कि इस में जुड़ने वाला भी उच्च आत्मिक अवस्था वाला हो जाता है पर ये बात तभी समझ में आती है जब कोई मनुष्य अपने मन में "मां काली दुर्गे राधे श्याम गौरी शंकर सीता राम वाहेगुरु" आदि किसी एक नाम में भी सच्ची श्रद्धा जाग जाए । हे निराकार साकार ओंकार निर्विकार जगत के पालनहार तारणहार भव सागर से पार माया से पार प्रपंचों से पार यदि मैं दुनिया में बहुत बड़ी हस्ती बना लू ऊंची नाम बना लू दुनिया की सारी संपदा प्राप्त कर लू..पूरी दुनिया से अपनी गुणगान बड़ाई कराऊं... माता माहेश्वरी यदि तेरी दृष्टि मुझ पर न पड़ी तो मैं तेरे आगे सूक्ष्म कीड़ा ही हूं। माता सर्वेश्वरी काल के भी काल महाकालेश्वरी मृत्यू की भी मृत्यु रूद्राणी यदि मैं तेरे नाम से विमुख होकर अपनी नाम कमा लूं अपनी मान कमा लूं दान – पुण्य कमा लूं तप करके सैकड़ो इंद्र के समान शक्तियां प्राप्त कर लू कुछ समय के लिए त्रिलोक पर शासन जमा लू सैकड़ों सूर्य चंद्र को अपने अधीन कर लू तो भी मैं तेरे यमदूत के आगे कीड़ा ही हूं । मेरी बुद्धि एक कीड़ा के समान ही है । अन्नत स्वरूपिणी माता दुर्गे प्राण स्वरूप माता राधिके आत्मा स्वरूप माता सर्वात्मन है अनंत शक्तियों की जननी आद्याशक्ति अनंता यदि मैं ऊंची अवस्था प्राप्त कर लू ऊंचे पद प्राप्त कर लू कई सिद्धियां प्राप्त कर लू बड़े बड़े ज्ञान प्राप्त कर लू यदि मैं तेरे नाम के आगे न झुकूं तो मैं तेरे बनाए संसार का मूर्ख अहंकारी जीव ही हूं। माता देवकी तुमने अनंत ब्रह्मांड को ही अपने गर्भ में आश्रय दिया है। माता यशोदा तुमने अनंत जगत को ही अपने हाथो से माखन खिला कर कृतार्थ कर दिया है माता अंबिके जो तेरे आगे नहीं झुकते वो तो कलयुगी जीव तेरे ओखल में पड़े धान के समान ही है जिसके कूटने के बाद उसमें तेरी भक्ति बन जाती है। – श्रीराम सेवक 🙏♥️🌷

हरि जी प्रेम भक्ति

हरि जी तुम्हे बार बार नमस्कार जो तुमने सभी प्रेमी जनो को अपने चरणो को प्रेमभक्ति प्रदान किया । मां वृजेश्वरी श्री राधिके तुम्हे अन्नत कोटि नमस्कार जो तुमने सभी प्रेमीजनों को अपने चरणो की भक्ति प्रदान की.... मां भगवती दुर्गा तुम्हे बार बार अन्नत कोटि दंडवत नमस्कार जो तुमने सभी प्रेमी जनो की कलयुगी प्रांपचो से रक्षा की .... माता कृष्ण माता राधिके माता दुर्गे माता गोपी तुम्हे आगे से नमस्कार तुम्हे पीछे से नमस्कार तुम्हे सब रूप में नमस्कार जो तुमने सभी प्रेमी जनो को अपने चरणो की भक्ति प्रदान की... माता तुम ही सर्वात्मा सव्रेश्वरी तुम शिवा हो तुम शिव हो तुम ही आदि अनादि और मध्य हो तुम ही आदि अंत से रहित अन्नता हो। माता तुम ही जगत का संचालन करने वाली हो तुम ही अनंत सृष्टि को धारण करने वाली हो । माता तुम ही सभी जीवो रूप में स्थित हो तुम गौरी लक्ष्मी माता सरस्वती गंगा गोदावरी यमुना तथा सर्वदेव सर्वदेवी महादेव महादेवी हो । माता मैं तेरा गुणानग कहां से प्रारम्भ करू तुम ही वासुदेव सर्वम हो तुम ही राधा सर्वम और दुर्गा सर्वम हो । माता मुझे हर स्वांस से वायु के स्थान पर तेरा नाम ही नाम निकले माता मैं हर जन्म तेरा रहू। माता मुझ पर बस तेरा अधिकार हो माता मेरी श्रद्धा बस तेरे चरणो में रहे । माता मुझे मणिद्वीप गोलोक वैकुंठ लोक कुछ नही चाहिए मैं तो तेरे चरणो के प्रेम का प्यासा हूं माता मुझे अपने चरणो की प्रेम भक्ति दो । माता मुझे ज्ञान विज्ञान प्राण कुछ नही चाहिए । मुझे तो बस तेरे साथ रहने का वरदान चाहिए । माता मुझे मुक्ति शक्ति सिद्धी आदि कुछ नही चाहिए मुझे तो बस तेरे भक्तो का दुःख संकट विपत्ति अपने सर पे चाहिए । माता तुम ही अपने भक्तो रूप में स्थित है मैं तो तेरा उदंड बालक हूं । सब को परेसान करने वाला हूं संतो झगड़ने वाला हूं । पर जैसा भी हूं तेरा हूं भीतर से संतो और तेरे भक्तो के चरणो का दास हूं । माता मुझे कुछ नही चाहिए । मुझे तो बस तुम्हारे भक्तो को आदर सम्मान प्रेम देने वाली बुद्धि चाहिए । माता तुम जहां कही भी हो तुम्हे हर हृदय में पुकार पुकार कर तुझे बुला लूंगा । अब तुम मुझ से आंख मिचोलिया खेलना बंद करो मेरा हाल अब तेरे बिना बेहाल है । माता तू ही दरिद्र सुदामा का कृष्ण हो तुम ही हनुमान के रामचंद्र जानकी हो तुम ही मेरे गोबिंद श्री राधा आदिगुरु महादेव हो । माता तुम ही जल अग्नि चंद्र सूर्य गगन पशु पक्षी असुर सुर देव दानव और इन सबसे पड़े परब्रह्म स्वरूप हो । हे सर्वेशरी जगतीश्वरी परमेश्वरी भक्तवत्सला मैं जन्मों जन्मों तुम्हे ध्याऊंगा फिर तू मेरी इक्षा के अनुसार नही मिलने वाली है जब तेरी इक्षा होगी तभी मिलने वाली है अर्थात मैं तेरा पुत्र होकर भी अनाथ ही सिद्ध हुवा । माता तुम तो मैया द्रोपदी के बुलाने पा आ गई थी तुम तो गजराज को बुलाने पर आ गई थी ध्रुव प्रह्लाद के बुलाने पर आ गई थी पर मेरे नैन तेरा दर्शन कब करे तू ही जाने .... हे हरि मैं तो तेरा नाम ही जानता हूं। मैं तुम्हे ही माता पिता भाई बहन मित्र गुरु साधु संत और जगत स्वरूप में जनता हूं मैं पूजा पाठ तीर्थ स्नान कर्म काण्ड यज्ञ आदि करना कुछ नही जानता बस तेरे प्रेम और दुलार रस का भूखा हूं । करुणा माइ गोबिंद दया करो माता कृपा करो माता मुझे इस दुर्गम संसार में तेरे सिवाय और कौन समझ सकते हैं । माता इस दुर्गम संसार से पार तेरे साथ ही जाना चाहता हूं तेरे साथ ही रहना चाहता हूं । माता तुम जहां कही भी छुपी हो आने की कृपा करो । ❤️🙏🌷 – श्री राम भक्त राहुल झा

मां काली स्त्रोत्र

दिव्य स्वरूपिणी मां काली आपकी जय हो आपकी जय हो रक्तबीज सहारिणी मां काली आपको बार बार नमस्कार है आपको बार बार नमस्कार है आपको बार बार नमस्कार है दुष्ट विनाशीनी मां काली आपके चरणो में बार बार नमस्कार है माता जगद्मबीक आपको हर दिशा से हर दिव्य रूप में आपको नमस्कार है । जगत स्वरूपिणी मां काली आपको बार बार नमस्कार बार नमस्कार बार नमस्कार है । परब्रह्म स्वरूपिणी मां काली आपको बार बार प्रणाम आपको बार प्रणाम आपको बार बार प्रणाम है । आत्म स्वरूपिणी मां काली आपको बार बार नमस्कार नमस्कार बार बार नमस्कार बार नमस्कार। विराट स्वरुपिणी मां काली आपको हर रूप में नमस्कार आपको हर दिशा से नमस्कार आपको अनंत बार नमस्कार है विक्राल स्वरूपिणी मां काली आपकी जय आपकी जय हो । नर मुंडो की माला धारण करने वाली माता आपकी जय हो मृत्यु को भी मार भगाने वाली माता आपकी जय हो आपकी सदा जय हो नारियों की रक्षा करने वाली माता आपकी जय ही आपकी जय हो । अपने खंडा से सम्पूर्ण जगत के संकटों का नाश करने वाली माता आपकी जय आपकी जय हो आपकी जय हो । स्त्रियों में पतिव्रता स्वरुप में स्थित रहने वाली माता काली आपकी जय हो आपकी जय हो आपकी जय हो । महाविद्या ब्रह्म विद्या आत्म विद्या स्वरूपिणी माता आपकी जय हो आपकी जय हो आपकी सदा जय हो आपके चरणो मे बार बार नमस्कार माता चंडीके आपको बार बार प्रणाम । – श्रीराम सेवक 🙏🙏🙏 🙏🌷♥️🙏♥️🌷🙏🌷🙏♥️🌷🙏♥️🌷

शुक्रवार, 26 मई 2023

हरि जी की कृतज्ञता पूर्वक स्तुति

हरि जी की कृतज्ञता पूर्वक गुणगान हे हरि एक तू ही इस दास का सहारा है हे हरि एक मात्र तू ही सब का दिशा है तू ही माया और माया से परे है । हे गुरुदेव मैं ने सदा तेरा तिरस्कार किया । मैं ने कभी तुझे अपने सर से नही नवाया । हे गोबिंद एक तू इस अर्जुन का सारथी है । अपने अंतः कारण में मैं ने कभी तेरी आवाज न सुनी । बाहर सदा माया के द्वारा ठगा गया । माया के वशीभूत होकर मैं ने तुझे कभी नही पढ़ा । तू माया है तू ही माया से पड़े है। हे श्रीराम हे गोबिंद तू मुझ में स्थित होकर मेरे मैले मन को निर्मल बना । तू सब को जीवन दान देता है । तू ही सब की रक्षा करता है । मैं ने तुझे कभी नही धयाया। सदा मैं झूठे संसार को अपना सहारा समझता रहा । तू ही अंतः करण में स्थित होकर जीवो को अपने माया के द्वारा नचाता है । मैं तो तेरे चरणो का ऋणी हूं । तेरा सब कुछ तुझे अर्पण कर निश्चिंत हूं । तुझे जैसे अच्छा लगता है वैसा कर । हे विष्णो हे एक तू ही मुझ हारे हुए के हरि है । तू ही इस अर्जुन के अंतः स्थित कलयुग रूपी सेना का नाश करने में समर्थ है । जीवन के जुवा में तू ही हार और जीत है । ये अर्जुन तेरा मुख देख कर जीता है तेरी दया के भीख से ही तुझे सब रूपो में व्याप्त स्मरण करने में समर्थ हुआ है । तुझे अपने अंतः करण से लेकर सभी प्राणियों के हृदय में स्थित बार बार नमस्कार करता हूं। तुझे जैसा अच्छा लगे वैसा कर । मैं ने स्वयं को तुम्हे सौप दिया। मैं ने स्वयं को तुझ अनंत संसार में बहुत ढूंढा पर उसकी कोई थाह पता न लगी।। । अब ये तेरा दास हार मान तेरे दिव्य कर्मो को भांपने में असमर्थ है । इस दास के अंतः कारण में स्थित होकर भीतर जमे मैल को अपनी शक्ति से साफ कर हृदय और मन को पवित्र बना दे । जहां जाऊ तो वहां गंगाजल जैसी पवित्रता हो । जहां जाऊं तेरा ही गुण गाकर तेरे नाम का बार बार रसपान करू । तू ही इस दास दोष को प्रेम की सरोवर में नहलाता है । हे कृष्ण हे श्याम सुंदर हे मोहन हे राधा पति हे गोपी मैया के प्रीतम हे मीरा माई के प्रभु मैं भी तेरे प्रेम में बावड़ा हो गया हूं । ये दुनिया अब कुछ भी उसकी फरवाह न रही। हे अंतर्यामी हे लक्ष्मी पति आदि नारायण हे श्याम सुंदर जहां जाऊं तेरा ही गुण गाकर तेरे नाम का बार बार रसपान करू । तू ही इस दास को प्रेम की सरोवर में नहलाता है। तू ही मुझ पतित को प्रेम रस का अमृत पान करा पवित्र करता है । हे कृष्ण हे श्याम सुंदर हे मोहन हे राधा मैया के कान्हा , हे गोपी मैया के प्रीतम नटनागर हे मीरा मैया गिरधर गोपाल हे सूरदास के हृदय कमल हे नानक के स्वामी मैं कुछ नही करता जो करता है तू ही करता है। मुझे तेरे उपर पुरा भरोसा है तू हमेशा पाप से बचाता है । ये जीव माया के वशीभूत कर अपना छोटा संसार में फसा है । वो अपने परिवार में तुझे अंतर्यामी को न देखकर भूल कर बैठता है तू तो सर्व्यपत है। मैं ने तेरी कृपा से कर्म काण्ड भी देखे । जब तक मन के मैल न जाएं । तब तक मन के भूमि में पाप रूपी विचार , विकार , भाव ,स्वभाव नहीं मिटाए जा सकते । न ही कोई निर्मल मन बीना (कृतज्ञता पूर्वक , अभिमान रहित होकर पूजा पाठ तीर्थ हवन के क्रियाओं आदी में कृतज्ञ भाव) हे दीन दयाल प्रभु मेरे अहम का नाश करो । मुझे तेरे सिवाय और कुछ नही पता । तू ही जल रूप में प्राणियों का प्यास बुझाता है तू ही भोजन रूप में प्राणियों का पालन करता है तू ही जल बरसाता है तू बिजली चमकाता है । तू ही पृथ्वि को निमित्त बना कर अन्न उत्पन करता है । मैं ने तुझे इस रूप में कभी नही याद किया । तू खरबों सूर्य चंद्र ग्रह नक्षत्र और संपूर्ण जगत को अपने एक अंश में धारण कर स्थित है । मेरी क्या औकाद तुझे अपनी छोटी बुद्धि से तेरे थाह पता का विचार करू। मैं तो सदा तेरा ऋणी रहूंगा । तू ही मुझ में प्राण अपान और समान वायु है । तू ही परब्रह्म है तू ही आदि वैष्णव आदि गुरु महादेव का स्वामि है । तू स्वयं आदि गुरु सदा शिव के रूप में स्थित हैं । तू ही विद्वानों के हृदय में विज्ञान और ज्ञान स्वरूप में प्रतिष्ठित हैं । हे मुरली मनोहर तू ही हजार महाकाल को अपने जीभा से चाटता है । तू सभी विकारों से रहित है तू अनंत गुणों और सभी कालाओ से संपन्न है। एक तू ही त्रिदेवो और उनकी शक्तियों के रूप में स्थित होकर जीवो को उत्पन्न ,पालन पोषण और संहार करता हैं । हे माधव तू ने जितना समर्थ दिया तेरा ये दास उतने से ही तुझे ध्याता है । मेरी ये भौतिक नेत्र तेरे तेज को संभालने में असमर्थ है । मेरी अपनी कोई दिव्य शक्ति नही है । मेरी अपनी कोई भी चमत्कारिक शक्ति नही । न तेरे द्वारा दिया हूवा कोई सिद्धि कोई चाहता है तू ने इस दास को जितना दिया है ये दास सदा इतने में ही संतुष्ट है । ये दास तेरे करुणा मय प्रेम सागर में डूब कर तेरे चरण का आश्रय लिया है । हे प्यारे मोहन तू मैं तेरा ही लाल हूं । तू सदा सब की देखभाल करने वाला है । ये दास तुझे बार बार प्रणाम करता हैं । – श्रीरामभक्त (वत्स)

शनिवार, 20 मई 2023

मेरे गोबिंद मेरे नट नागर

मेरे गोविंद मेरे नटनागर मेरा श्याम मेरे गिरधरनागर अब रहा न जाएं सुनो प्यारे हृदय की बात समझो दुलारे तेरा नित प्रेम रस लग गया मुझको अब कुछ न भाता तेरे सिवाय मुझको प्यारे न जीना न मरना आता मुझको दुलारे तेरे सिवाय कौन समझे मुझको तू घट घट बसा अन्तर्यामी सब के हृदय में बस तू ही समाई न बंधन न मुक्ति अब मिल गई चाकरी तेरी तू एक दिन आएगा आस में बैठा हूं स्वामी जैसे तूने दिया दर्शन मीरा माई को वैसे आकर दर्शन दो मेरे श्याम मुरारे जैसे तू मिला गोपी और राधा माई को जैसे तू छाती से लगाया बाल सखाई को वैसे तू हृदय से लगा अपने दास सखाइ को जैसे तूने खेला खेलाया ब्रज में बाल सखाईं को प्रभु वैसे अपना पैर दबाने दो प्रभु वैसे साथ खेलने दो प्रभु मैं न जानू लीला तुम्हारी फिर भी आवाज देता हूं प्रभू मैं न जानू खेल तुम्हारी फिर भी खेलना चाहता हूं प्रभु समझ न आता तुझे पुकारू कैसे कभी पागल रोता कभी हसता जैसे कभी गाता कभी नाचता हो जैसे कभी कुछ बोलता कुछ भी बकता जैसे अब आजा साथ ले के मईया राधा को अब आजा साथ लेकर मैया दुर्गा को अब रहा न जाई तेरे बिना मुझको अब सहा न जाए ये विरह मुझको अब दास राहुल पुकारे तुझको मैया मेरी राधे मैया तेरे सिवाय कौन मुझको स्वीकारे जग ठुकराई तू ने अपनाई हाथ पकड़ तू चलना सिखाई मैया मेरी दुर्गा माता तूने संकटों से मुझको बचाई तेरा दुलार याद आए मुझको कभी न माता भूलूं तुझको पता नही तुझ से लगी प्रीत मुझको कैसे पता नही तुझ से लगी रीत ये मुझको कैसे पता नही तुझ से इतना प्रेम हुवा मुझको कैसे पता नही अब होगा क्या बस तू ही जाने मुझको जैसे – श्रीरामभक्त रा.झा वत्स

बुधवार, 12 अप्रैल 2023

जब मैं स्तुति करता हूं।

जब मैं श्री हरि विष्णु की स्तुति करता हूं तब उन्हें ही समस्त जगत को अपने एक अंश में धारण किए हुए हैं उन्ही को कारण मानता हु। जब मैं शिव की स्तुति करता हूं तब शिव को समस्त जगत को अपने एक अंश में धारण कर स्थित किए हुए हैं उन्ही को कारण मानता हूं । जब मैं भगवती मूल प्राकृतिक माता आदिशक्ति जगदम्बा महालक्ष्मी राधिका की स्तुति करता हूं तब उन्हें ही जगत का कारण मानता हूं अर्थात ये माताएं समस्त जगत को एक अंश में धारण कर स्थित हैं । जब मैं गुरुजनों की स्तुति करता हूं तब उन्ही को ब्रम्हा विष्णु महेश समस्त देव और पर ब्रह्म उन्ही को मानता हूं बशर्ते गुरु जन शिव भक्त हरि भक्त या अध्यशक्ति भक्त होना चाहिए। (गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः | गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ||) कोई भी सच्चा संत द्वारा लिखित प्रभु के किसी रूप का स्तुति देखो तो ऐसे परमतत्व की पहचान करते हुए उनकी स्तुति गाते हैं । समस्त पुराणों में भी देवता लोग ऐसे ही स्तुति करते हैं । – श्रीरामभक्त राहुल झा

मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

संक्षिप्त महाभारत

॥ श्रीहरिः ॥ संक्षिप्त महाभारत महाभारतका सरल, सचित्र हिंदी - अनुवाद त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥ ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ आदिपर्व ग्रन्थका उपक्रम नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् । देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥ अन्तर्यामी नारायणस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण, उनके सखा नर-रत्न अर्जुन, उनकी लीला प्रकट करनेवाली भगवती सरस्वती और उसके वक्ता भगवान् व्यासको नमस्कार करके आसुरी सम्पत्तियोंका नाश करके अन्तःकरणपर विजय प्राप्त करानेवाले महाभारत ग्रन्थका पाठ करना चाहिये । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । ॐ नमः पितामहाय । ॐ नमः प्रजापतिभ्यः । ॐ नमः श्रीकृष्णद्वैपायनाय । ॐ नमः सर्वविघ्नविनायकेभ्यः । लोमहर्षणके पुत्र उग्रश्रवा सूतवंशके श्रेष्ठ पौराणिक थे। एक बार जब नैमिषारण्य क्षेत्रमें कुलपति शौनक बारह वर्षका सत्संग-सत्र कर रहे थे, तब उग्रश्रवा बड़ी विनयके साथ सुखसे बैठे हुए व्रतनिष्ठ ब्रह्मर्षियोंके पास आये। जब नैमिषारण्यवासी तपस्वी ऋषियोंने देखा कि उग्रश्रवा हमारे आश्रममें आ गये हैं, तब उनसे चित्र-विचित्र कथा सुननेके लिये उन लोगोंने उन्हें घेर लिया। उग्रश्रवाने हाथ जोड़कर सबको प्रणाम किया और सत्कार पाकर उनकी तपस्याके सम्बन्धमें कुशल- प्रश्न किये। सब ऋषि-मुनि अपने-अपने आसनपर विराजमान हो गये और उनके आज्ञानुसार वे भी अपने आसनपर बैठ गये। जब वे सुखपूर्वक बैठकर विश्राम कर चुके, तब किसी ऋषिने कथाका प्रसंग प्रस्तुत करनेके लिये उनसे यह प्रश्न किया- ' सूतनन्दन! आप कहाँसे आ रहे हैं? आपने अबतकका समय कहाँ व्यतीत किया है ?" उग्रश्रवाने कहा, ‘मैं परीक्षित्-नन्दन राजर्षि जनमेजयके सर्प-सत्रमें गया हुआ था। वहाँ श्रीवैशम्पायनजीके मुखसे मैंने भगवान् श्रीकृष्णद्वैपायनके द्वारा निर्मित महाभारत ग्रन्थकी अनेकों पवित्र और विचित्र कथाएँ सुनीं। इसके बाद बहुत-से तीर्थों और आश्रमोंमें घूमकर समन्तपंचक क्षेत्रमें आया, जहाँ पहले कौरव और पाण्डवोंका महान् युद्ध हो चुका है। वहाँसे मैं आपलोगोंका दर्शन करनेके लिये यहाँ आया हूँ । आप सभी चिरायु और ब्रह्मनिष्ठ हैं। आपका ब्रह्मतेज सूर्य और अग्निके समान है। आपलोग स्नान, जप, हवन आदिसे निवृत्त होकर पवित्रता और एकाग्रताके साथ अपने-अपने आसनपर बैठे हुए हैं। अब कृपा करके बतलाइये कि मैं आपलोगोंको कौन-सी कथा सुनाऊँ ।' ऋषियोंने कहा— सूतनन्दन ! परमर्षि श्रीकृष्ण द्वैपायनने जिस ग्रन्थका निर्माण किया है और ब्रह्मर्षियों तथा देवताओंने जिसका सत्कार किया है, जिसमें विचित्र पदोंसे परिपूर्ण पर्व हैं, जो सूक्ष्म अर्थ और न्यायसे भरा हुआ है, जो पद-पदपर वेदार्थसे विभूषित और आख्यानोंमें श्रेष्ठ है, जिसमें भरतवंशका सम्पूर्ण इतिहास है, जो सर्वथा शास्त्रसम्मत है और जिसे श्रीकृष्णद्वैपायनकी आज्ञासे वैशम्पायनजीने राजा जनमेजयको सुनाया है, भगवान् व्यासकी वही पुण्यमयी पापनाशिनी और वेदमयी संहिता हमलोग सुनना चाहते हैं । उग्रश्रवाजीने कहा – भगवान् श्रीकृष्ण ही सबके आदि हैं। वे अन्तर्यामी, सर्वेश्वर, समस्त यज्ञोंके भोक्ता, सबके द्वारा प्रशंसित, परम सत्य ॐकारस्वरूप ब्रह्म हैं। वे ही सनातन व्यक्त एवं अव्यक्तस्वरूप हैं। वे असत् भी हैं और सत् भी हैं, वे सत्-असत् दोनों हैं और दोनोंसे परे हैं। वे ही विराट् विश्व भी हैं। उन्होंने ही स्थूल और सूक्ष्म दोनोंकी सृष्टि की है। वे ही सबके जीवनदाता, सर्वश्रेष्ठ और अविनाशी हैं। वे ही मंगलकारी, मंगलस्वरूप, सर्वव्यापक, सबके वांछनीय, निष्पाप और परम पवित्र हैं। उन्हीं चराचरगुरु नयनमनोहारी हृषीकेशको नमस्कार करके सर्वलोकपूजित अद्भुतकर्मा भगवान् व्यासकी पवित्र रचना महाभारतका वर्णन करता हूँ । पृथ्वीमें अनेकों प्रतिभाशाली विद्वानोंने इस इतिहासका पहले वर्णन किया है, अब करते हैं और आगे भी करेंगे। यह परमज्ञानस्वरूप ग्रन्थ तीनों लोकोंमें प्रतिष्ठित है। कोई संक्षेपसे, तो कोई विस्तारसे इसे धारण करते हैं । इसकी शब्दावली शुभ है। इसमें अनेकों छन्द हैं और देवता तथा मनुष्योंकी मर्यादाका इसमें स्पष्ट वर्णन है। जिस समय यह जगत् ज्ञान और प्रकाशसे शून्य तथा अन्धकारसे परिपूर्ण था, उस समय एक बहुत बड़ा अण्डा उत्पन्न हुआ और वही समस्त प्रजाकी उत्पत्तिका कारण बना। वह बड़ा ही दिव्य और ज्योतिर्मय था। श्रुति उसमें सत्य, सनातन, ज्योतिर्मय ब्रह्मका वर्णन करती है। वह ब्रह्म अलौकिक, अचिन्त्य, सर्वत्र सम, अव्यक्त, कारणस्वरूप तथा सत् और असत् दोनों हैं। उसी अण्डे से लोकपितामह प्रजापति ब्रह्माजी प्रकट हुए । तदनन्तर दस प्रचेता, दक्ष, उनके सात पुत्र, सात ऋषि और चौदह मनु उत्पन्न हुए। विश्वेदेवा, आदित्य, वसु, अश्विनीकुमार, यक्ष, साध्य, पिशाच, गुह्यक, पितर, ब्रह्मर्षि, राजर्षि, जल, द्युलोक, पृथ्वी, वायु, आकाश, दिशाएँ, संवत्सर, ऋतु, मास, पक्ष, दिन, रात तथा जगत्में और जितनी भी वस्तुएँ हैं, सब उसी अण्डेसे उत्पन्न हुईं। यह सम्पूर्ण चराचर जगत् प्रलयके समय जिससे उत्पन्न होता है, उसी परमात्मामें लीन हो जाता है। ठीक वैसे ही, जैसे ऋतु आनेपर उसके अनेकों लक्षण प्रकट हो जाते और बदलनेपर लुप्त हो जाते हैं। इस प्रकार यह कालचक्र, जिससे सभी पदार्थोंकी सृष्टि और संहार होता है, अनादि और अनन्त रूपसे सर्वदा चलता रहता है। संक्षेपमें देवताओंकी संख्या तैंतीस हजार तैंतीस सौ तैंतीस (छत्तीस हजार तीन सौ तैंतीस ) है । विवस्वान्के बारह पुत्र हैं - दिवः पुत्र, बृहद्भानु, चक्षु, आत्मा, विभावसु, सविता, ऋचीक, अर्क, भानु, आशावह, रवि और मनु । मनुके दो पुत्र हुए- देवभ्राट् और सुभ्राट् । सुभ्राट्के तीन पुत्र हुए - दशज्योति, शतज्योति और सहस्रज्योति। ये तीनों ही प्रजावान् और विद्वान् थे। दशज्योतिके सारे भगवान् व्यास समस्त लोक, भूत-भविष्यत् - वर्तमानके रहस्य, कर्म- उपासना-ज्ञानरूप वेद, अभ्यासयुक्त योग, धर्म, अर्थ और काम, शास्त्र तथा लोक-व्यवहारको पूर्णरूपसे जानते हैं। उन्होंने इस ग्रन्थमें व्याख्याके साथ सम्पूर्ण इतिहास और सारी श्रुतियोंका तात्पर्य कह दिया है। भगवान् व्यासने इस महान् ज्ञानका कहीं विस्तारसे और कहीं संक्षेपसे वर्णन किया है, क्योंकि विद्वान् लोग ज्ञानको भिन्न-भिन्न प्रकारसे प्रकाशित करते हैं। उन्होंने तपस्या और ब्रह्मचर्यकी शक्तिसे वेदोंका विभाजन करके इस ग्रन्थका निर्माण किया और सोचा कि इसे शिष्योंको किस प्रकार पढ़ाऊँ ? भगवान् व्यासका यह विचार जानकर स्वयं ब्रह्माजी उनकी प्रसन्नता और लोकहितके लिये उनके पास आये। भगवान् वेदव्यास उन्हें देखकर बहुत ही विस्मित हुए और मुनियोंके साथ उठकर उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया तथा आसनपर बैठाया। स्वागत-सत्कारके बाद ब्रह्माजीकी आज्ञासे वे भी उनके पास ही बैठ गये। तब व्यासजीने बड़ी प्रसन्नतासे मुसकराते हुए कहा, 'भगवन्! मैंने एक श्रेष्ठ काव्यकी रचना की है। इसमें वैदिक और लौकिक सभी विषय हैं। इसमें वेदांगसहित उपनिषद्, वेदोंका क्रिया- विस्तार, इतिहास, पुराण, भूत, भविष्यत् और वर्तमानके वृत्तान्त, बुढ़ापा, मृत्यु, भय, व्याधि आदिके भाव - अभावका निर्णय, आश्रम और वर्णोंका धर्म, पुराणोंका सार, तपस्या, ब्रह्मचर्य, पृथ्वी, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा और युगोंका वर्णन, उनका परिमाण, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वण, अध्यात्म, न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, दान, पाशुपतधर्म, देवता और मनुष्योंकी उत्पत्ति, पवित्र तीर्थ, पवित्र देश, नदी, पर्वत, वन, समुद्र, पूर्व कल्प, दिव्य नगर, युद्धकौशल, विविध दस हजार, शतज्योतिके एक लाख और सहस्रज्योतिके दस लाख पुत्र उत्पन्न हुए। इन्हींसे कुरु, यदु, भरत, ययाति और इक्ष्वाकु आदि राजर्षियोंके वंश चले। बहुत से वंशों और प्राणियोंकी सृष्टिकी यही परम्परा है। ...................शेष भाग कल । सम्पादक तथा संशोधक श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका गीताप्रेष ,गोरखपुर

नाम जप किस प्रकार होना चाहिए ।

प्रश्न . नाम किस प्रकार जप होना चाहिए ? जिससे हमे लाभ हो ? उत्तर:– सबसे पहले नाम जप जैसे भी हो लाभ होता ही है ... फिर भी आप जानने के इक्ष...